मैं और मेरे अह्सास
दिनकर
मानवता का दिनकर लोगों के दिलों में उगना जरूरी हो गया हैं l
हर समय हर लम्हा चौकन्ना रहकर जगना
जरूरी हो गया हैं ll
एक दिन तो पंचभूत में ही मिल जाना है
ये स्वीकार करके l
मिट्टी से भले बने हो पर सोने का लगना
जरूरी हो गया हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह