नियम और कानून में क्या अंतर है ?
क्या करने की अनुमति है, एवं क्या करने की अनुमति नहीं है की सूचना देने वाले पाठ्य को नियम या क़ानून कहते है। विशिष्ट एवं संक्षिप्त होने के कारण इन्हें हमेशा बिन्दुओ के रूप में लिखा जाता है।
नियम एवं कानून में अंतर :
नियम निजी संस्थाओ द्वारा बनाए जाते है, जबकि क़ानून बनाने की शक्ति सिर्फ सरकार के पास होती है
नियमों को तोड़ने पर आर्थिक या करावासीय दंड का सामना नहीं करना पड़ता, जबकि क़ानून तोड़ने पर हमेशा दंड का सामना करना पड़ता है।
मूल अंतर इतना ही है। इससे सम्बंधित कुछ अन्य मूल्यपरक विवरण निचे दिए गए है
(1) सरकार किसे कहते है ?
अमुक क्षेत्र में जिस संस्था के पास सेना रखने की शक्ति होती है, उस संस्था को सरकार कहते है।
(2) सरकार में कौन लोग होते है ?
मुख्यत: सांसदो और विधायको के समूह से सरकार बनती है। सांसद संसद में बैठते है, और विधायक विधानसभाओ में।
(3) सरकार का मुख्य काम क्या है ?
सरकार का एक मात्र काम क़ानून बनाना है। क़ानून बनाने के अलावा उन्हें कुछ नहीं करना होता। संसद और विधानसभा उनके दफ्तर है, जहाँ बैठकर वे क़ानून बनाते है।
(4) जो लोग क़ानून तोड़ते है क्या उन्हें पकड़ना सरकार का काम नहीं है ?
नहीं। सरकार का काम उन्हें पकड़ना नहीं है। सरकार उन्हें पकड़ने के लिए पुलिस के क़ानून बना देगी और पुलिस वाले कानून तोड़ने वालो को पकड़ते रहेंगे। इसी तरह जो भी काम करना हो सरकार उस काम को करने के लिए क़ानून बनाती है बस। क़ानून बनाने के अलावा सरकार और कुछ नहीं करती, और न ही कुछ कर सकती है।
क़ानून बनाने के अलावा आप सरकार के अंगो (सांसद, विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री एवं प्रधानमंत्री) को जो भी करते देखते है, वह एक तमाशा होता है। तमाशे से ज्यादा उसमें कोई कीमत नहीं होती।
(5) व्यवस्था (System) किसे कहते है ?
नियमों एवं कानूनों के समुच्चय (Set) को व्यवस्था कहते है।
(6) क्या सरकार व्यवस्था नहीं बनाती ?
नहीं। सरकार व्यवस्था नहीं बनाती। दरअसल व्यवस्था अपने आप में स्वतन्त्र रूप से कुछ नहीं होता। व्यवस्था का मूल तत्व क़ानून है। सरकार सिर्फ क़ानून बनाती है, और कानूनों के सेट को आप व्यवस्था कहने लगते है। तो दरअसल जब आप कहते है कि, भारत की व्यवस्था (System) खराब है, तो आप कह रहे होते है कि भारत के क़ानून ख़राब है।
यह बात दीगर है कि जब आप कहते है कि अमुक क़ानून खराब है, तो इसमें एक विशिष्टता होती है। जबकि व्यवस्था खराब है, वक्तव्य एक नारा बन कर रह जाता है !!
(7) किसी व्यवस्था में परिवर्तन कैसे किया जा सकता है ?
जैसा ऊपर बताया है कि व्यवस्था अपने आप में कानूनों का एक सेट है, अत: जैसे ही कानून में बदलाव किया जायेगा वैसे ही व्यवस्था बदल जायेगी। क़ानून को बदले बिना आप व्यवस्था बदल ही नहीं सकते। क्योंकि व्यवस्था जैसा कुछ होता ही नहीं है, जिसे कानून को बदले बिना बदला जा सके।
भारत की ट्रेफिक व्यवस्था के उदाहरण से इसे समझते है :
भारत में सड़कें बनाने और टोल वसूलने के कुछ कानून है, गाड़ी खरीदने और इसे चलाने के फिर से कुछ क़ानून है। इसी तरह चालको के सड़क पर व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए RTO एवं ट्रेफिक पुलिस विभाग है, और इन विभागों में काम करने वाले अधिकारीयों के लिए सेवा शर्तो के फिर से कुछ क़ानून है।
इस तरह भारत भर में कुछ 100 से ज्यादा तरह के क़ानून मिलकर भारत में ट्रेफिक व्यवस्था का निर्माण करते है। और इसी तरह से पुलिस व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, बिजली व्यवस्था, जलदाय व्यवस्था आदि सैंकड़ो व्यवस्थाएं है, और प्रत्येक व्यवस्था के पीछे फिर से सैंकड़ो क़ानून है।
इन सैंकड़ो कानूनों में से आप जैसे ही किसी एक कानून को छेड़ेंगे वैसे ही व्यवस्था बदल जायेगी। उदारहण के लिए ट्रेफिक व्यवस्था का एक क़ानून यह कहता है कि – जब भी आप कोई वाहन सड़क पर लायेंगे तो इसके आगे पीछे वाहन का नंबर लिखा होना चाहिए।
अब यदि आप इस बिंदु को निकाल देते है, तो सड़क पर अनियंत्रित गति से दौड़ने वाले वाहनों की संख्या बढ़ जायेगी और लोग बेतहाशा ट्रेफिक रूल तोड़ने लगेंगे। क्योंकि अब ट्रेफिक रूल तोड़ने वालो को चिन्हित करके पकड़ा नहीं जा सकता। इस तरह क़ानून के सिर्फ एक बिंदु में बदलाव करने से पूरी व्यवस्था में दोष आना शुरू हो जाता है।
यदि कानूनों में दोष नहीं है तो व्यवस्था में भी दोष नहीं रहेगा, और यदि कानून दोषपूर्ण है तो व्यवस्था भी दोषपूर्ण हो जाएगी। और एक दोषपूर्ण व्यवस्था हमेशा दोषपूर्ण ढंग से ही काम करगी। क्योंकि प्रक्रिया एवं नतीजो का दोहराव ही व्यवस्था की मुख्य विशेषता है।
सार : यदि आपको देश का सिस्टम सुधारना है तो आपको क़ानून सुधारने होंगे। जैसे जैसे क़ानून सुधरेंगे वैसे वैसे सिस्टम में सुधार आएगा।
और क़ानून सुधारने की दिशा में काम करने का पहला कदम यह है कि राजनैतिक विमर्श करने वाले ऐसे बुद्धिजीवियों से दूरी बनाकर रखें जिन्हें व्यवस्था बदलनी चाहिए, भारत का सिस्टम ही खराब है, पूरा सिस्टम भ्रष्ट हो चूका है टाइप की बौद्धिक जुगाली करने का व्यसन है।
जब भी आपका सामना किसी ऐसे व्यक्ति से हो जो देश की व्यवस्था में बदलाव लाने की बात कर रहा हो तो उससे पूछे भारत की अमुक व्यवस्था में बदलाव लाने के लिए वे किन क़ानूनो को बदलने का प्रस्ताव कर रहे है ?
और आप देखेंगे कि उसके पास कानूनों में बदलाव की न तो कोई रूप रेखा है और न ही प्रस्तावित कानूनों के ड्राफ्ट है। वह सिर्फ व्यवस्था परिवर्तन शब्द बेचकर तमाशा खड़ा कर रहा है