माँ, मुस्कुराती रहे घर सजाती रहे
गलतियों पे वो आँखें दिखाती रहे
वो डाटे तो ईश्वर की डाट लगे
कर दुआ हर विपत्ति मिटाती रहे।
करके सब कुछ, न कुछ भी जताती रहे
पाके सबकुछ, वो 'कुछ में' बिताती रहे
वो हँसदे तो घर भी इक मन्दिर लगे
वो गंगा सी, कुल-काशी बनाती रहे।
~ प्रह्लाद पाठक