औरत और आग
औरत हूँ आग की तरह पवित्र मगर अपने पर आयी तो जला कर खाक कर दूँगी ।
दिये की तरह रोशन करुँगी घर आँगन को मगर स्वाभिमान को चोट पहुंची तो राख कर दूँगी।
तुलसी की तरह पवित्र हूँ सम्मान मिला तो सम्मान पाओगे वर्ना रावण की तरह नाश कर दूँगी।
ज्वालामुखी हूँ लावा मन में दफ्न किए चलती हूँ, जिस दिन फूट गयी सर्वनाश कर दूँगी।