लाशें कई मिली थी मुझको बोलती सी
वहां आने जाने वालों को टटोलती सी
राज वे-दर्द ज़माने के कुछ खोलती सी
मशीनी आदमियों के कानों बोलती सी
मरे तो हम हैं यहां तुम क्यों मरे हुए हो
देखी हैं लाशें ऐसी भी मैंने बोलती सी

Hindi Shayri by Deepak Bundela AryMoulik : 111838155

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