कोई  राह  हमें  भी  दिखा दो
चलना  तो  हमें  भी सिखा दो 
भटक रही है दर-बदर जिंदगी
किसी ठिकाने हमें भी लगा दो। 
कब तक रहेंगे मजधार में ख़ुदा
किसी किनारे हमें भी लगा दो। 
सोया सोया स है ये जुनून मेरा
अब तो नींद से हमें भी जगा दो। 
बन्द क़िस्मत का ताला जो खोल दे
ऐसे जादूगर से हमें भी मिला दो। 
जिस प्याले को पीकर अमर हुये
दो बूंद उसका हमें भी पिला दो। 
लगाये रखा जिसने सीने से हमें
मिटा उसके सारे शिकवे गिला दो 
तेरे आशियाने में रोशनी कम हो
मेरे दिल का हर कोना जला दो। 
यूं तो मिले होंगे तुझे लाखों सनम
इक बार खुद से हमें भी मिला दो।
-रामानुज दरिया