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लघुकथा : दहेज का ज़िन्न : अंजू खरबंदा
"नमस्ते भाई साहब ! शर्मा जी से आपका फोन नंबर मिला । उन्होंने बताया कि आपका बेटा शादी लायक है !" मैंने नम्रता पूर्वक कहा ।
"जी जी शर्मा ने मुझे भी बताया आपके बारे में ।" फोन के दूसरी तरफ से वर्मा जी की आवाज अाई ।
" जी मेरी बेटी ने पिछले साल ही एम.ए. किया है । अभी वह नौकरी कर रही है ।" गर्व मिश्रित भाव से मैने कहा ।
"नौकरी मे क्या मिलता होगा जी उसे ! हमें तो वैसे भी नौकरी वाली बहू नही चाहिए ।" रुखी सी आवाज में वर्मा जी बोले ।
"पर आजकल तो बेटियों का पैरों पर खड़े होना बहुत जरूरी है भाई साहब ।" मैने समझाने वाले अंदाज़ मे कहा ।
"बहुत अच्छा कमा लेता है जी मेरा बेटा ! कोई कमी नही रखेगा वह आपकी बेटी को !!! आप निश्चिंत रहें !" उनकी आवाज मे गर्व की जगह घमंड की बू मुझे महसूस हुई ।
"जी आपकी बात तो ठीक है पर ..... !" फिर भी मैने उन्हें समझाने की कोशिश जारी रखते हुये कहा ।
"बस हमें तो अच्छे खानदान की लड़की चाहिए और चाहिए - लेविश यानि कि शानदार शादी !!!! जो शादी मे आये तो याद रखे सालों साल तक !!!" उन्होंने मेरी बात को अनसुना करते हुये अपनी बात जारी रखी ।
"और दहेज..... !!!!" मुझसे रहा ना गया तो मैने पूछ ही लिया ।
"हाहाहा .... गाडियाँ तो हमारे पास पहले से ही दो हैं पर दहेज मे मिली गाड़ी की बात ही निराली होती है ! " बेशरमी की सारी हदें पार करते हुये उन्होंने कहा ।
"जी और कुछ !!!!" मैने दिल पर पत्थर रखते हुये पूछ ही लिया ।
"बस जी बिटिया को खाना बढिया बनाना आता हो ! मेरा बेटा खाने पीने का बहुत शौकीन है !!!!! " ढीठता से वे बोले ।
"आप दस हजार में कोई कुक क्यूं नहीं रख लेते !!! "
जी मे आया कह दूं पर सामने वाला बेशर्म है तो क्या हम भी .....!
"जी भाई साहब मैं घर मे बात करके आपसे बात करता हूं । " कहकर मैंने फोन पटक दिया ।
सामने ही बेटी बैठी थी । उसकी ओर देखते हुये मन मे विचार आया - इतना पढ़ाया लिखाया बेटी को लेकिन ये दहेज का कीड़ा हमारे समाज को खोखला कर रहा हैं । बिटिया कितनी पढ़ी लिखी है इस बात से ज्यादा ये मायने रखता है कि आप शादी पर कितना खर्च कर सकते हैं !
मेरा दिल तड़प उठा !
" कैसे दे दूं अपनी फूल सी बेटी इन दहेज लोभियों को ! पता नही कब पीछा छूटेगा इस दहेज के ज़िन्न से !!!!!"