hindi Best Comedy stories Books Free And Download PDF

Stories and books have been a fundamental part of human culture since the dawn of civilization, acting as a powerful tool for communication, education, and entertainment. Whether told around a campfire, written in ancient texts, or shared through modern media, Comedy stories in hindi books and stories have the unique ability to transcend time and space, connecting people across generations and cul...Read More


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  • अथ मोबाइल कथा

    अथ मोबाइल कथा धूलिया चादर ओढ़े हुए, घुटनों चलते इस कस्बे का उतावलापन गजब है। ये छ...

  • मुर्गा

    "कूकडू --कू--------?सरदार तारासिंह यात्रियों के टिकट चेक कर रहा था,तभी उसे मुर...

  • चम्पा का मोबाइल

    चम्पा का मोबाइल “एवज़ी ले आयी हूँ, आंटी जी,” चम्पा को हमारे घर पर हमारी काम वाली,...

अड़ोस-पड़ोस By Chhavi Nigam

अड़ोस-पड़ोसछवि निगम नाइट बल्ब की रहस्यमयी रौशनी कमरे में पसरी हुई थी। मच्छरों का ऑर्केस्ट्रा बीथोवन से होड़ ले रहा था। 20 साल 2 महीने 2 दिन की उमर का मैं यानि के दीपक, अपना सबसे पसं...

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जो घर फूंके अपना - 21 - कई कई अवतार बापों के By Arunendra Nath Verma

जो घर फूंके अपना 21 कई कई अवतार बापों के बापों की इस चर्चा से याद आया कि जीवन के हर क्षेत्र में लोगों को कोई न कोई मिल जाता है ‘जो मान न मान तू मेरी संतान’ कह कर सिंदबाद जहाजी के क...

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दो बाल्टी पानी - 12 By Sarvesh Saxena

" अरे जीजी.. ओ जीजी.. " वर्माइन ने मिश्राइन को पुकारा | मिश्राइन दरवाजा खोलते हुए - "हां.. वर्माइन कहो"? वर्माइन - "अरे जीजी… कहें का, पानी भरने जा रहे हैं तो सोचा तुम्हें भी बुला...

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हटेली चुड़ैल By paresh barai

दिनेश : ए बाबूजी वो अपनें मोहल्ल्ले में कोई नया किरायेदार रहने आया लगता है ! आप नें पता किया कुछ ? बाबूजी : धीरज धर बेटा, उसकी कोई बेटी नहीं है | दो बेटे हैं | हर बात पर फुदक फुदक...

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जनता सब जानती है By Singh Srishti

जनता से नेताओ का रिश्ता आज का नहीं है जनाब हमारा इनका तो खानदानी अफसाना है हां वो बात अलग है काम निकलने के बाद नेता तो क्या अपने भी भूल जाया करते है और काम पड़ने पर तो गधे को भी बा...

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व्यंग्य के तेवर By bhagirath

वैज्ञानिक दृष्टिकोण नेहरू जी चाहते थे कि यह पुराना हिन्दुस्तान, जो विश्वास में डूबा है, विज्ञान में उन्नति के शिखर चूमे। वै...

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ढलवाँ लोहा By Deepak sharma

ढलवाँ लोहा “लोहा पिघल नहीं रहा,” मेरे मोबाइल पर ससुरजी सुनाई देते हैं, “स्टील गढ़ा नहीं जा रहा.....” कस्बापुर में उनका ढलाईघर है : कस्बापुर स्टील्ज़| “कामरेड क्या कहता है?” मैं पूछता...

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अथ मोबाइल कथा By Dr Lakshmi Sharma

अथ मोबाइल कथा धूलिया चादर ओढ़े हुए, घुटनों चलते इस कस्बे का उतावलापन गजब है। ये छोटा सा बस-स्टेण्ड, यही इस का मैन बाजार भी है और इसी के सीने से ठस-ठुंस कर आगे के मझोले शहरों की सड़क...

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हास्य By Yasho Vardhan Ojha

(भाषागत अशुद्धियां कालांतर में रूढ़ हो कर स्थान-विशेष की बोली में घुल-मिल जाती हैं। फिर ये वहां की पहचान बन जाती हैं और कभी कभी हास्य भी उत्पन्न करती हैं। इसी विषय पर एक रचना प्रस्...

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मुर्गा By Kishanlal Sharma

"कूकडू --कू--------?सरदार तारासिंह यात्रियों के टिकट चेक कर रहा था,तभी उसे मुर्गे कीआवाज सुनाई पडी। आवाज सुनकर तारासिंह समझ गया, कोई यात्री मुर्गा साथ लेकर ट्रेन मे सफर क...

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लोक डाउन के साइड इफेक्ट्स By paresh barai

समीर : ए मीरा, चाय ला... अदरक डाल के लाना... मीरा : चाय नहीं बनेगी... भूल जाओ | समीर : क्यूँ ? चीनी, पत्ती और दूध की थैली तो है ! पप्पू : छन्नी... टूट गई है | अब चाय हमारे बेटे प...

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चम्पा का मोबाइल By Deepak sharma

चम्पा का मोबाइल “एवज़ी ले आयी हूँ, आंटी जी,” चम्पा को हमारे घर पर हमारी काम वाली, कमला, लायी थी| गर्भावस्था के अपने उस चरण पर कमला के लिए झाड़ू-पोंछा सम्भालना मुश्किल हो रहा था| चम्प...

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सवाल लहराती बलखाती डेढ़ सयानी मूँछ का By राजीव तनेजा

सवाल लहराती…बलखाती ढेढ सयानी मूंछ का आज घड़ी-घड़ी रह-रह कर मेरे दिल में ये अजब-गजब सा सवाल उमड़ रहा है कि जो भी हुआ..जैसा भी हुआ...क्या वो सही हुआ? अगर सही नहीं हुआ तो फिर सही क्यों...

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ऊँट की पीठ By Deepak sharma

ऊँट की पीठ “रकम लाए?” बस्तीपुर के अपने रेलवे क्वार्टर का दरवाज़ा जीजा खोलते हैं. रकम, मतलब, साठ हज़ार रुपए..... जो वे अनेक बार बाबूजी के मोबाइल पर अपने एस.एम.एस. से माँगे रहे..... बा...

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रंगीली चुड़ैल By paresh barai

एक समय की बात है | एक छोटे से गाँव में हरिलाल नाम का नौजवान रहता था | वह पढने में काफी ख़राब था और संस्कार से बहुत हलकट और पक्का रिश्वतखोर था | पिता की शाख की वजह से उसे रेलवे में न...

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Corona House By Raaj

31 दिसम्बर ,2020 ये साल का आखरी दिन था । इन 365 दिनों में दुनिया पूरी तरह से बदल चुकी थी । खास करके इंसान , अब वो पहले जैसा नही था । क...

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काम हो गया है..मार दो हथौड़ा By राजीव तनेजा

काम हो गया है ...मार दो हथोड़ा "हैलो!…इज़ इट... 91 8076109496?”... "जी!..कहिये"... "सैटिंगानन्द महराज जी है?"… "हाँ जी!...बोल रहा हूँ..आप कौन?" "जी!…मैं..राजीव बोल रहा हूँ"… "कहाँ से...

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व्यथा कथा By राजीव तनेजा

जब व्यथा की अति हो जाती है तो शब्द खुदबखुद लोप हो जाते हैं। आप अचंभित, शॉकड हो जायज़ एवं सार्थक शब्दों को ढूँढने..तलाशने की कवायद में निशब्द हो खड़े के खड़े रह जाते हैं। ज़रूरत के वक्त...

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हाय रे विज्ञापन ! By Dr Narendra Shukl

मैं श्री कृष्ण का शुद्ध भक्त हूँ । प्रतिदिन सुबह - सुबह मंदिर अवश्य जाता हूँ । मंदिर जाने से दिल और दिमाग दोनों पवित्र हो जाते हैं । बीते दिन के पाप धुल जाते हैं । तन और मन पुनः ‘...

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बीवी संग न खेलो होली By Dr Narendra Shukl

आज मेरे मित्र राधेश्याम , सुबह से ही भांग छान आये थे । आते ही बमके - बीवी संग न खेलो होली । मैंने कहा - भैया जरा धीमे । क्यों त्योहार के दिन खुशहाल घर में मोहरम मनवाना चाहते हो...

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काश होते बारह बच्चे By Krishna manu

जिस गति से आबादी बढ़ रही है, खेती योग्य जमीन सिमटती जा रही है, मशीनी युग में जब सारा काम ऑटोमेटिक होगा। आदमी की जगह रोबोट ले लेगा। मैन पावर की जरूरत नहीं रहेगी तब निश्चित जानिए देश...

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सत्य की खोज़ में महात्मा गांधी By Dr Narendra Shukl

गांधी जी के जन्म दिवस पर स्वर्ग में टी - पार्टी चल रही थी । गांधी जी एक ओर स्वयं निर्मित चटाई पर बैठे सूत कात रहे थे । उनके दायीं ओर , गरम दल व बायीं ओर नरम दल के चुनिंदा नेता बै...

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काठ का उल्लू By Vinita Shukla

गनेसीलाल एकटक, बैठक में रखी, उलूक- प्रतिमा को देख रहे हैं. उनका बड़ा बेटा मोहित, इसे किसी मेले से ले आया था. कहता था- “पिताजी क्या नक्काशी है...दूर से देखो तो साक्षात् उलूक का भ्रम...

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अड़ोस-पड़ोस By Chhavi Nigam

अड़ोस-पड़ोसछवि निगम नाइट बल्ब की रहस्यमयी रौशनी कमरे में पसरी हुई थी। मच्छरों का ऑर्केस्ट्रा बीथोवन से होड़ ले रहा था। 20 साल 2 महीने 2 दिन की उमर का मैं यानि के दीपक, अपना सबसे पसं...

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जो घर फूंके अपना - 21 - कई कई अवतार बापों के By Arunendra Nath Verma

जो घर फूंके अपना 21 कई कई अवतार बापों के बापों की इस चर्चा से याद आया कि जीवन के हर क्षेत्र में लोगों को कोई न कोई मिल जाता है ‘जो मान न मान तू मेरी संतान’ कह कर सिंदबाद जहाजी के क...

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दो बाल्टी पानी - 12 By Sarvesh Saxena

" अरे जीजी.. ओ जीजी.. " वर्माइन ने मिश्राइन को पुकारा | मिश्राइन दरवाजा खोलते हुए - "हां.. वर्माइन कहो"? वर्माइन - "अरे जीजी… कहें का, पानी भरने जा रहे हैं तो सोचा तुम्हें भी बुला...

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हटेली चुड़ैल By paresh barai

दिनेश : ए बाबूजी वो अपनें मोहल्ल्ले में कोई नया किरायेदार रहने आया लगता है ! आप नें पता किया कुछ ? बाबूजी : धीरज धर बेटा, उसकी कोई बेटी नहीं है | दो बेटे हैं | हर बात पर फुदक फुदक...

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जनता सब जानती है By Singh Srishti

जनता से नेताओ का रिश्ता आज का नहीं है जनाब हमारा इनका तो खानदानी अफसाना है हां वो बात अलग है काम निकलने के बाद नेता तो क्या अपने भी भूल जाया करते है और काम पड़ने पर तो गधे को भी बा...

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व्यंग्य के तेवर By bhagirath

वैज्ञानिक दृष्टिकोण नेहरू जी चाहते थे कि यह पुराना हिन्दुस्तान, जो विश्वास में डूबा है, विज्ञान में उन्नति के शिखर चूमे। वै...

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ढलवाँ लोहा By Deepak sharma

ढलवाँ लोहा “लोहा पिघल नहीं रहा,” मेरे मोबाइल पर ससुरजी सुनाई देते हैं, “स्टील गढ़ा नहीं जा रहा.....” कस्बापुर में उनका ढलाईघर है : कस्बापुर स्टील्ज़| “कामरेड क्या कहता है?” मैं पूछता...

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अथ मोबाइल कथा By Dr Lakshmi Sharma

अथ मोबाइल कथा धूलिया चादर ओढ़े हुए, घुटनों चलते इस कस्बे का उतावलापन गजब है। ये छोटा सा बस-स्टेण्ड, यही इस का मैन बाजार भी है और इसी के सीने से ठस-ठुंस कर आगे के मझोले शहरों की सड़क...

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हास्य By Yasho Vardhan Ojha

(भाषागत अशुद्धियां कालांतर में रूढ़ हो कर स्थान-विशेष की बोली में घुल-मिल जाती हैं। फिर ये वहां की पहचान बन जाती हैं और कभी कभी हास्य भी उत्पन्न करती हैं। इसी विषय पर एक रचना प्रस्...

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मुर्गा By Kishanlal Sharma

"कूकडू --कू--------?सरदार तारासिंह यात्रियों के टिकट चेक कर रहा था,तभी उसे मुर्गे कीआवाज सुनाई पडी। आवाज सुनकर तारासिंह समझ गया, कोई यात्री मुर्गा साथ लेकर ट्रेन मे सफर क...

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लोक डाउन के साइड इफेक्ट्स By paresh barai

समीर : ए मीरा, चाय ला... अदरक डाल के लाना... मीरा : चाय नहीं बनेगी... भूल जाओ | समीर : क्यूँ ? चीनी, पत्ती और दूध की थैली तो है ! पप्पू : छन्नी... टूट गई है | अब चाय हमारे बेटे प...

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चम्पा का मोबाइल By Deepak sharma

चम्पा का मोबाइल “एवज़ी ले आयी हूँ, आंटी जी,” चम्पा को हमारे घर पर हमारी काम वाली, कमला, लायी थी| गर्भावस्था के अपने उस चरण पर कमला के लिए झाड़ू-पोंछा सम्भालना मुश्किल हो रहा था| चम्प...

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सवाल लहराती बलखाती डेढ़ सयानी मूँछ का By राजीव तनेजा

सवाल लहराती…बलखाती ढेढ सयानी मूंछ का आज घड़ी-घड़ी रह-रह कर मेरे दिल में ये अजब-गजब सा सवाल उमड़ रहा है कि जो भी हुआ..जैसा भी हुआ...क्या वो सही हुआ? अगर सही नहीं हुआ तो फिर सही क्यों...

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ऊँट की पीठ By Deepak sharma

ऊँट की पीठ “रकम लाए?” बस्तीपुर के अपने रेलवे क्वार्टर का दरवाज़ा जीजा खोलते हैं. रकम, मतलब, साठ हज़ार रुपए..... जो वे अनेक बार बाबूजी के मोबाइल पर अपने एस.एम.एस. से माँगे रहे..... बा...

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रंगीली चुड़ैल By paresh barai

एक समय की बात है | एक छोटे से गाँव में हरिलाल नाम का नौजवान रहता था | वह पढने में काफी ख़राब था और संस्कार से बहुत हलकट और पक्का रिश्वतखोर था | पिता की शाख की वजह से उसे रेलवे में न...

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काम हो गया है..मार दो हथौड़ा By राजीव तनेजा

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व्यथा कथा By राजीव तनेजा

जब व्यथा की अति हो जाती है तो शब्द खुदबखुद लोप हो जाते हैं। आप अचंभित, शॉकड हो जायज़ एवं सार्थक शब्दों को ढूँढने..तलाशने की कवायद में निशब्द हो खड़े के खड़े रह जाते हैं। ज़रूरत के वक्त...

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हाय रे विज्ञापन ! By Dr Narendra Shukl

मैं श्री कृष्ण का शुद्ध भक्त हूँ । प्रतिदिन सुबह - सुबह मंदिर अवश्य जाता हूँ । मंदिर जाने से दिल और दिमाग दोनों पवित्र हो जाते हैं । बीते दिन के पाप धुल जाते हैं । तन और मन पुनः ‘...

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बीवी संग न खेलो होली By Dr Narendra Shukl

आज मेरे मित्र राधेश्याम , सुबह से ही भांग छान आये थे । आते ही बमके - बीवी संग न खेलो होली । मैंने कहा - भैया जरा धीमे । क्यों त्योहार के दिन खुशहाल घर में मोहरम मनवाना चाहते हो...

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काश होते बारह बच्चे By Krishna manu

जिस गति से आबादी बढ़ रही है, खेती योग्य जमीन सिमटती जा रही है, मशीनी युग में जब सारा काम ऑटोमेटिक होगा। आदमी की जगह रोबोट ले लेगा। मैन पावर की जरूरत नहीं रहेगी तब निश्चित जानिए देश...

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सत्य की खोज़ में महात्मा गांधी By Dr Narendra Shukl

गांधी जी के जन्म दिवस पर स्वर्ग में टी - पार्टी चल रही थी । गांधी जी एक ओर स्वयं निर्मित चटाई पर बैठे सूत कात रहे थे । उनके दायीं ओर , गरम दल व बायीं ओर नरम दल के चुनिंदा नेता बै...

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काठ का उल्लू By Vinita Shukla

गनेसीलाल एकटक, बैठक में रखी, उलूक- प्रतिमा को देख रहे हैं. उनका बड़ा बेटा मोहित, इसे किसी मेले से ले आया था. कहता था- “पिताजी क्या नक्काशी है...दूर से देखो तो साक्षात् उलूक का भ्रम...

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