Quotes by Prashant Vyawhare in Bitesapp read free

Prashant Vyawhare

Prashant Vyawhare

@vyawhareprashant11gm
(83)

तेरे साये में रहना चाहता हूँ माँ! मगर क्या करूं मजबूरी है! इस जमाने की दौड़ में शामिल जो हुआ हू! घर से दूर जाना भी जरूरी है! रोज सोंचता हू के वापस लौट आऊ ! मगर आज जीने के लिए चाहिए, उस दौलत की कमी है! घर आना चाहता हूँ माँ मगर क्या बताउ मजबूरी है!

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मैं शबरी बन जीना था मगर अब ये रामयुग नहीं है!

क्यूँकी कैकई बन यहाँ रोज़ विलास सुख है!

मगर मुझे ये भी पता है कि जीवन मिथ्या और कर्म गति आख़िर में सत्य है!

मगर क्या करूँ आँख बंद मेरे कल भे थे और आज भी हैं।

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अभी वक़्त है थोड़ा हर पल जी लो यारो!
वर्ना कल जनाजा उठने से भला कौन चूक सका है!

सभी यार दोस्त परिवार को रोज समय दे जाओ यारो!
वरना वक़्त का क्या भरोसा, आज है कल नहीं।

धन जोड़ो या ना जोड़ो जिंदगी भर मगर, जितना हो सके पुण्य और भक्ति भी जोड़ लो दोस्तो।
क्योंकि आख़िरी हिसाब में वही काम आने वाला है!

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आजकल जमाना यूंही बदल गया!
जिन्होनें आँखों का तारा समझ बड़ा किया!
उन्हें कोई घर से निकल दे गया!
जिन्होनें इज्जत दी भर भर कर! उन्हें हो कोई बे आबरू कर गया!
और जिस पर था विश्वास खुदा से भी ज्यादा! आख़िर में वो जिगरी धोंका दे गया!
और आजकल जमाना यूं ही बदल गया!

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अगर कभी तुम्हारा दिमाग चलना बंद कर दे !
तो कोई भी कदम उठाने से पहले थोड़ा ठहर जाना चाहिए!
ताकि कुछ भी गलत कदम न उठ सके !
और बाद में होने वाले पछतावे से तुम बच सको !

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समय खराब हो तो थोड़ा रुक जाना चाहिए !
ताकि जब तुम्हारा टाइम आये तो तुम और तेज दौड़ सको !

जिंदगी के अनेको रंगो को वो परख लेता है !
और उन बिखरे हुए अल्फाज़ो को समेटे !
एक सरल पुलिंदा बनता है !
भले ही असल जिंदगी में उसकी न हो कोई पहचान !
मगर अल्फाजो के चाहने वालो में वो लेखक कहलाता है !

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जिंदगी के रंगोंको वो परख लेता है !
और उन बिखरे हुए अल्फाज़ो को समेटे !
एक सरल पुलिंदा बनता है !
भले ही असल जिंदगी में उसकी न हो कोई पहचान !
मगर अल्फाजो के चाहने वालो में वो लेखक कहलाता है !

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