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Vivek Kumar

Vivek Kumar

@vivekkumar6637


पूर्णविराम के बाद
राहुल की मां तू चिंता मत कर ,रिजल्ट अच्छा ही आएगा। तेरे माथे पर ये चिंता की लकीरें तिलक पर चावल की तरह लगती है, जो खुशी के समतल वातावरण में थोड़ा उभार सा दर्शाती है । राहुल को देख आज कितना प्रसन्न है ,और हो भी क्यों ना ,सारे साल की मेहनत का फल जो उसे आज मिलने वाला है। आ गया! आ गया! क्या आ गया जी? अरे! राहुल का रिजल्ट आ गया। फिर जल्दी देखो ना पापा ।हां बेटा रुक अभी देखता हूं ।क्या हुआ राहुल के पापा आप चुप क्यों हैं ?अरे राहुल तू तो कुछ बता ।राहुल की मां इतनी रैंक में तो राहुल को सिर्फ एनआईटी ही मिलेगी, आईआईटी में एडमिशन नहीं होता। पर बेटा तू परेशान मत हो। पर पापा मेरे एक साल की मेहनत तो बर्बाद हो गई, अब जीवन जीने का क्या फायदा। ऐसा मत बोल बेटा तेरे दिमाग से यह अनर्गल विचार निकाल दे ।राहुल सारी रात सो नहीं पाया, और निश्चय करता है कि वह अपने जीवन को समाप्त कर देगा। अगले दिन राहुल रेलवे स्टेशन के लिए घर से पैदल ही निकलता है। उसकी खामोशी मानो बाजार के कोलाहल को भी अनदेखी कर रही थी ।तभी राहुल का ध्यान सामने से आ रहे एक बाबा की बातों पर पड़ता है जो कह रहे थे;
" जो पूर्णविराम के बाद भी लिख दे।
जीवन की वह सबको सीख दे ।"
उन शब्दों में राहुल खो सा गया ।ट्रेन की आवाज धीरे धीरे तेज हो रही थी ,और अचानक से राहुल उसके आगे कूद गया ।उसके शव के चारों ओर भीड़ लग गई। राहुल के माता-पिता भी घटनास्थल पर पहुंच गए। राहुल की मां शव को देख कर बेहोश हो गई ,तभी राहुल जोर से चिल्लाता है, मां ,मां ।वह बाबा राहुल से बोलते हैं क्या हुआ बेटे कब से देख रहा हूं ,मुझे ही टकटकी लगाए देखे जा रहा है, और अब जोर जोर से चिल्ला रहा है। किन विचारों में इतना मगन है ।कुछ नहीं बाबा बस अभी पूर्णविराम के बाद देख कर आया हूं।

विवेक भारद्वाज

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ज्ञान का मुखोटा मिला
अहंकार आलीशान किला
नींव जिसकी बालू रेत
कैसे जोता जाए खेत
तू गीता पढ़ ,तू पढ़ कुरान
परम् ज्ञान को तू ले जान
कर्म कर ,ना कर मनन
अहंकार को तू कर दफ़न

--- विवेक

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पूर्णविराम के बाद
राहुल की मां तू चिंता मत कर ,रिजल्ट अच्छा ही आएगा। तेरे माथे पर ये चिंता की लकीरें तिलक पर चावल की तरह लगती है, जो खुशी के समतल वातावरण में थोड़ा उभार सा दर्शाती है । राहुल को देख आज कितना प्रसन्न है ,और हो भी क्यों ना ,सारे साल की मेहनत का फल जो उसे आज मिलने वाला है। आ गया! आ गया! क्या आ गया जी? अरे! राहुल का रिजल्ट आ गया। फिर जल्दी देखो ना पापा ।हां बेटा रुक अभी देखता हूं ।क्या हुआ राहुल के पापा आप चुप क्यों हैं ?अरे राहुल तू तो कुछ बता ।राहुल की मां इतनी रैंक में तो राहुल को सिर्फ एनआईटी ही मिलेगी, आईआईटी में एडमिशन नहीं होता। पर बेटा तू परेशान मत हो। पर पापा मेरे एक साल की मेहनत तो बर्बाद हो गई, अब जीवन जीने का क्या फायदा। ऐसा मत बोल बेटा तेरे दिमाग से यह अनर्गल विचार निकाल दे ।राहुल सारी रात सो नहीं पाया, और निश्चय करता है कि वह अपने जीवन को समाप्त कर देगा। अगले दिन राहुल रेलवे स्टेशन के लिए घर से पैदल ही निकलता है। उसकी खामोशी मानो बाजार के कोलाहल को भी अनदेखी कर रही थी ।तभी राहुल का ध्यान सामने से आ रहे एक बाबा की बातों पर पड़ता है जो कह रहे थे;
" जो पूर्णविराम के बाद भी लिख दे।
जीवन की वह सबको सीख दे ।"
उन शब्दों में राहुल खो से गया ।ट्रेन की आवाज धीरे धीरे तेज हो रही थी ,और अचानक से राहुल उसके आगे कूद गया ।उसके शव के चारों ओर भीड़ लग गई। राहुल के माता-पिता भी घटनास्थल पर पहुंच गए। राहुल की मां शव को देख कर बेहोश हो गई ,तभी राहुल जोर से चिल्लाता है, मां ,मां ।वह बाबा राहुल से बोलते हैं क्या हुआ बेटे कब से देख रहा हूं ,मुझे ही टकटकी लगाए देखे जा रहा है, और अब जोर जोर से चिल्ला रहा है। किन विचारों में इतना मगन है ।कुछ नहीं बाबा बस अभी पूर्णविराम के बाद देख कर आया हूं।


विवेक भारद्वाज

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गरीब कौन है?
अरे !तू राजू का लड़का है क्या? हां काका आजकल सभी मास्क लगाकर केवल जरूरी काम से ही बाहर निकलते हैं, तभी पहचान में नहीं आ रहे। " अच्छा, यह तो बता बेटा यह तेरी स्कूटी कितने की है ।यह तो काका केवल ₹70000 की है ।क्यों ,आपको पसंद आई। हां सोच रहा हूं मैं भी एक स्कूटी ले लूं। काका मेरी बात ई तो स्कूटी के साथ-साथ एक मोबाइल भी ले लो। आपका मोबाइल पुराना हो चुका है यह मेरे जैसा मोबाइल ले लो, बस ₹30000 का ही है । "चल देखेंगे ; बेटे एक बार लोग डाउन तो हटने दे दे ।ले ,यह तेरा राशन ।अच्छा काका गेहूं कितने का है ।वैसे तो बेटा दो रुपए किलो है ,लेकिन इस महीने का राशन सरकार मुफ्त में दे रही है ।"अच्छा ही है काका ,गरीबों का भी कुछ भला हो। ठीक है काका ,अब मैं चलता हूं।

----विवेक

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The Attitude of Gratitude gives you the perfect Latitude.


__Vivek

#Soft
The soften you be , harden is your personality.

बनकर पतझड़ सा कोरोना
सोचा हमे आएगा रोना
वक्त वक्त की बात है ये भी गुजर जाएगा
नए पुष्पो के साथ फिर वसंत आएगा
एक बार फिर हिन्दुस्तान खिलखिलाएगा
तेरी सब बदनीयतो पर पानी सा फिर जाएगा
---- विवेक

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#वसंत
बनकर पतझड़ सा कोरोना
सोचा हमे आएगा रोना
वक्त वक्त की बात है ये भी गुजर जाएगा
नए पुष्पो के साथ फिर वसंत आएगा
एक बार फिर हिन्दुस्तान खिलखिलाएगा
तेरी सब बदनीयतो पर पानी सा फिर जाएगा
---- विवेक

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#चरनवन्दन
करू चरनवन्दन भरत की जो भाई के लिए माता से जा लड़ा ।
या फिर कुम्भकर्ण की जो भाई के लिए भगवान से भी जा भिड़ा ।।
शायद वो दोनों ही निष्ठावान है।
कर्तव्य पथ पर चल पड़े वो दोनों ही महान है।।
हे प्रभु ना बनाना किसी को विभीषण ,फिर चाहे भाई हो लाख गलत ।
तुम बनना कुम्भकर्ण , फिर चाहे कोई कितनी भी लुटादे दौलत।।

---विवेक

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