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जो जीते है आज में वो मरने से नहीं डरते। डरते तो वो है जो कल में वक्त ज़ाया करते है।
संतुलित संतुष्ट जीवन ही सफल और श्रेष्ठ जीवन है
एक समय था जब मां बाप की गोद में इस दुनिया में आया.. एक समय था जब अपनो की ऊंगली थाम घर के आंगन से बाहर आया... एक दिन ऐसा भी वक्त आया जब छूटा देश गांव का साया... वो भी एक जिंदगी की नई शुरुवात थी, जिसमे अपनो को दूर और गैरों को नजदीक पाया... समय के साथ साथ रिश्तों में भी बदलाव आया.. नज़दीकियों को दूरी और दूरी को नज़दीकियों में बदलते पाया...
ये जीवन है पंच तत्व की माया, जिसमे हैं जल अग्नि आकाश वायु धरा का साया.. जीवन भर सिर्फ साथ देगी तुम्हारी ये काया, तो सदा ध्यान रहे संतुलन की माया...
आज देश दौड़ रहा हैं, NRC और CAA की दौड़ में... कोई फूंक रहा है तो कोई तोड़ रहा है, NRC और CAA की दौड़ में... ज़ख्मी हो रहा है देश का ज़र्रा ज़र्रा, NRC और CAA की दौड़ में... ए बेलगाम दौड़ ने वालों थोड़ा ठहरो - देखो, क्या सही है सब, NRC और CAA की दौड़ में... शिक्षा के मंदिर में ये कैसा जन संहार का तांडव हैं, खा म खा घर से बेघर हो रहा हैं, NRC और CAA की दौड़ में...
कुछ करने की चाह होती है हर इंसान में, कुछ राह ढूंडते है और कुछ चल देते है मंज़िल की तलाश में...
आज़ादी आज़ादी आज़ादी, बस मांग रहे सब.. असली आज़ादी है क्या, क्या जान रहे है सब.. कुछ को है अधिकार पाना, लगता हैं आज़ादी.. कुछ को है अधिकार जताना, लगता हैं आज़ादी.. आज़ादी की होड़ में, बस कर रहे है मनमानी.. कुछ मर रहे हैं कुछ मार रहे हैं, कुछ की जिंदगानी... आज़ादी आज़ादी आज़ादी, बस मांग रहे सब....आज़ादी.........
कहते हैं इंसान खुदको, क्या इंसानियत को जाना हैं.. जाति धर्म के नाम पर, बस अपनो का ख़ून बहाना है.. नेता राजनीति और अभिनेता अभिनय कर चले जाते है, हम लड़ते है और लड़ते चले जाते हैं.. अब तो सोचो, समझो, जनो, इंसान हो इंसानियत को पहचानो..
दुनिया की कड़वी सच्चाई, दीपिका लेकर आयी है "छपाक" से.. हर एक मजबूर- लाचार की, हिम्मत जगाई है "छपाक" से.. अब इस रोश और गुस्से को, हथियार बनाना है "छपाक" से.. हर एक ज़ालिम गुनहगार में, सलाखों का डर जगाना है "छपाक" से..
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