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Vidhi Agnihotri

Vidhi Agnihotri

@vidhiagnihotri9334


ज्वालामुखी बनने से बचें, थोड़ी ज़िंदगी अपने लिए भी जिएं

खुला गुड़

मुझे तेरी ना बर्दाश्त नहीं।
चाहे किसी भी धर्म- जात से हो
मेरे लिए तृष्णा तृप्त करने का साधन हो
तुम्हारी मर्ज़ी हो ना हो मैंने मान लिया है बस तुम मेरी हो
गर मान गई तो उपभोग होगा, नहीं मानी तो सीधे चिता से संजोग होगा।
तेरा जीवन गुलामी और शरीर बाज़ार में बिकता खुला गुड़ है
तेरी जान की कीमत उतनी ही है जितनी कसाई घर में बिकती मुर्गी की।
तेरा हक नहीं तुझपे, मौत भी अपनी तू चुन नहीं सकती
क्योंकि तू बाज़ार में बिकता खुला गुड़ है।
तुझे हक नहीं आज़ादी का, आज़ाद होकर भी मिलना वही है जो गुलामी में भोगा है।
तू जी नहीं सकती क्योंकि तू बाज़ार में बिकता खुला गुड़ है।
रो रही है घर की चार दिवारी, काश तू जाती ही ना कॉलेज
सारा दोष पढ़ाई का है।
रास्ता भी आज हैरान है मासूम के खून से सराबोर है।
तेरी सहेली भी आज सहमी है उसने देखा है साहस का नतीजा।
सांसे थमीं हैं जिस्म ठंडा है क्योंकि सुना है मर्द ठंड में अलाव नहीं जलाते।
ख़ैर अब रूह जाने दो करने दो वहां भी अर्जी, क्योंकि यहां तो नहीं चल रही भगवान की मर्जी।
बस इतनी ही गलती है कि मैं लड़की नहीं बल्कि बाज़ार में बिकता खुला गुड़ हूं।

(ना जाने और कितने साल है आज़ादी को, किसी को समझ आए तो बता देना और जब वो समय आए तो कृपया मुझे नींद से जगा देना।)

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पिंजरे की आदत- "हार की आदत"

पिंजरे की आदत

मुश्किल क्या है ?

इस ऐप से हज़ारों महिलाएं जुड़ी हैं और अपनी खूबसूरत रचनाएं, भावनाऐं साझा करती हैं बस एक बात का मुझे मलाल है कि इस ऐप पर महादेवी वर्मा, अमृता प्रीतम, तस्लीमा नसरीन, कमला दास जैसी लेखिकाओं, कवियित्रियों की कोई भी रचना उपलब्ध नहीं है.......
मेरा निवेदन है कि इनकी रचनाएं भी ऐप पर उपलब्ध कराई जाएं 🙏

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औरतें और ओस की बूंदें

नज़र नज़र का फेर

मैं तो चुप रहती हूं पर ये आंखे खूब बतियाती हैं

हैवानों और हुक्मरानों में क्या ही फर्क है??

एक इंसानियत की रीढ़ तोड़ देता है

दूसरा बिना रीढ़ के अकड़ के खड़ा होता है

देखा कल मैंने भी इंटरनेट के जंजालों में।

दूर जल रही थी किसी के वारिस की लावारिस सी चिता 

चिता ने चिंता में डाल दिया था मुझे 

स्त्री होने पे मुझे गर्व है, 

पर देखो हर औरत के चेहरे पर कहीं ना कहीं गहरा दर्द है

हैवानों की दरिंदगी का खेल चला जा रहा है, वो कटी ज़बान सीए जिए और मरे जा रही है

अरे मरती है तो मरती रहे कौन से हुक्मरानों के कानों में चीख जा रही है।

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