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अब से सैकड़ों वर्ष पहले की घटना है। एक बार चीन के महान् दार्शनिक कन्फ्यूशियस, अपने कुछ शिष्यों के साथ ताई नामक पहाड़ी से कहीं जा रहे थे। एक स्थान पर वह सहसा रुक गये। शिष्यों ने जिज्ञासु नेत्रों से उनकी ओर देखा। वे बोले, ‘कहीं पर कोई रो रहा है।’ इतना कहकर वे रुदन को लक्ष्य करके चल पड़े। शिष्यों ने उनका अनुगमन किया। कुछ दूर जाकर उन्होंने देखा एक स्त्री रो रही है। उन्होंने बड़ी सहानुभूति से रोने का कारण पूछा। स्त्री ने बताया कि इस स्थान पर उसके पुत्र को एक चीते ने मार डाला। कन्फ्यूशियस ने कहा-’किन्तु तुम अकेली ही दीखती हो तुम्हारे परिवार के अन्य लोग कहाँ हैं ? स्त्री ने कातर होकर बताया अब उसके परिवार में है ही कौन। इसी पहाड़ी पर उसके ससुर और पति को भी चीते ने फाड़ डाला था। कन्फ्यूशियस ने बड़े आश्चर्य से कहा, ‘तो तुम इस भयंकर स्थान को छोड़ क्यों नहीं देती ?’ स्त्री बोली, ‘इस स्थान को इसलिए नहीं छोड़ती कि यहाँ पर किसी अत्याचारी का शासन नहीं है।’ महात्मा कन्फ्यूशियस यह सुनकर चकित हो गये। उन्होंने शिष्यों की ओर उन्मुख होकर कहा, ‘यद्यपि, निश्चित रूप से यह स्त्री करुणा और सहानुभूति की अधिकारिणी है। तथापि इसकी बात ने हम लोगों को एक महान् सत्य प्रदान किया है। वह यह कि अत्याचारी शासक एक चीते से अधिक भयंकर होता है। अत्याचारी शासन में रहने की अपेक्षा अच्छा है कि किसी पहाड़ी अथवा वन में रह लिया जाये। किन्तु यह व्यवस्था सार्वजनिक नहीं हो सकती। अस्तु, जनता को चाहिए कि वह अत्याचारी शासन का समुचित विरोध करे और सत्ताधारी को अपना सुधार करने के लिए विवश करने का उपाय करे। अत्याचारी शासन को भय के कारण सहन करने वाला समाज किसी प्रकार की उन्नति नहीं कर पाता। विकासहीन जीवन बिताता हुआ वह युगों तक नारकीय यातना भोगा करता है तथा सदा-सर्वदा अवनति के गर्त में ही पड़ा रहकर जिस तिस प्रकार जीवन व्यतीत करता रहता है। अतः दुशासन को पलटने के लिए जनता सदैव जागरुक रहे।
अहंकार की एक छोटी सी प्रेरणादायक कहानी जो छोटे होते हुए भी काफी बड़ी सीख दे रही है:- अंहकार का बीज रामकृष्ण परमहंस के दो शिष्य इसी बात पर परस्पर उलझ पड़े की उनमें से कौन वरिष्ठ है। विवाद तय न होने पर गुरुदेव के पास जाकर उन्होने पूछा- गुरुदेव ! हम दोनो में से कौन बड़ा है? बस इतनी- सी बात के लिये उलझ रहे थे तुम लोग- परमहंस ने कहा- 'तुम्हारे प्रश्न का उतर तो बहुत सरल है। जो दूसरे को बड़ा समझता है, वही बड़ा भी है और श्रेष्ठ भी। यह समाधान पाकर वे दोनों मन में बहुत लज्जित हुए। उस दिन से बड़ा बनने की ललक और अहंकार का बीज ही मन से मिट गया।...
जीवन मे एक समय ऐसा आता है जब हम उम्मीद खोने लगते हैं हम सब जानते हैं कि समय एक सा नहीं रहता. कभी उजाला रहता है, तो कभी अँधेरा. जब जीवन में अंधकार आये, मन अशांत हो जाये, विश्वास डगमगाने लगे और दुनिया पराई लगने लगे. तब आशा का दीपक जला लेना. जब तक आशा का दीपक जलता रहेगा, जीवन में कभी अँधेरा नहीं हो सकता. आशा के बल पर जीवन में सबकुछ पाया जा सकता है. इसलिए आशा का साथ कभी ना छोड़े. चाहे कितनी भी तकलीफ में हूं और परेशानियां आए आशा की एक किरण जलाए रखना... और इस प्रेरणादायक कहानी के माध्यम से मैं आप सभी को वही बताना चाहता हूं तो कृपया एक बार जरूर पढ़ें पढ़ने के लिए दिए गए लिंक क्लिक करें http://timiraish.blogspot.com/2021/06/asha-ki-kiran.html
http://timiraish.blogspot.com/2021/06/blog-post_12.html
https://anchor.fm/u090fu0915-u0928u091cu093/episodes/Kis-azadi-ki-bat-krte-hai---poetry-e12d65l किस आज़ादी की बात करते है ....??? (कविता) अपना कीमती समय निकाल कर जरूर सुनें ...🙏. इस कविता के माध्यम से मैं किसी भी राजनीतिक व्यक्तियों के भावनाओं को किसी भी प्रकार से ठेस नहीं पहुंचाना चाहता अगर ऐसा हो तो उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूं.
चलो आज चलते हैं सच्ची मोहब्बत की तलाश में हम तो अभी से खुश हो गए इस बकवास में🤣😂😁 -तिमिर उपाध्याय
लफ्जों से क्या बयां करूं गौर से सुन सब सुनाई देगा मोहब्बत है उसे मेरी रूह से तो देखें आंखों में उसे सब दिखाई देगा... -तिमिर उपाध्याय
एक रिश्ता ऐसा चाहिए जिसे मेरी खामोशियों में भी मेरे अल्फाज सुनाई दे मुस्कुराता रहूं लबों से और आंखों से मेरा दर्द दिखाई दे... -तिमिर उपाध्याय
आज सोचा कि कुछ दर्द बयां करूं हाथ उठाते ही कलम रो पड़ा दर्द ए अल्फ़ाज़ लिखकर.. -तिमिर उपाध्याय
हर समस्या का है हल, आज नहीं तो कल -तिमिर उपाध्याय
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