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Divya Sharma

Divya Sharma Matrubharti Verified

@sharmadivya202518
(155)

पीड़ा को समझने के लिए
तुम्हें होना होगा थोड़ा स्त्री
जब तुम स्त्री बन जाओगी
तब देखोगी मन के जिस्म पर
पड़े हुए अनगिनत घाव,
इन घावों से रिसते वक्त में
तुम्हें जिन्दगी दिखाई देगी।

नजर आयेगा तुम्हें एक पुरुष
जो जी रहा है एक खामोशी में
डाले हुए एक मजबूत परदा
लटके हैं इस परदे पर
उसके ख्वाब, कंगूरे बनकर
इन कंगूरों से सजा रहता है एक घर।

स्याह उजाले सी सुबह
रहती हैं उसकी जेबों में
जिसे पकड़े रहता है वो
अपनी उलझी उंगलियों में
थकी हुई यह उंगलियाँ
झगड़ पड़ती हैं अक्सर
अपने मस्तिष्क से,
क्योंकि हृदय ने
छोड़ दिया है साथ
इन सख्त होती हथेलियों का।

जब तुम स्त्री हो जाओगी
तो सुन सकोगी चुप सी आवाजें
जो सिसकती रहती हैं
झूकी हुई कमर में
झुर्रियों भरे चेहरों से।
इनकी आँखें सब देखती हैं लेकिन
बोल नहीं सकती
क्योंकि इनकी आँखों की
काट दी जाती है जिह्वा।

स्त्री को छूने के लिए
तुम्हें बनना होगा,थोड़ा स्त्री
क्योंकि स्त्री बनकर ही
तुम देख पाओगी
शुष्क होते मरूस्थल को
जिसमें नहीं खिलते फूल
इसलिए चित्कार करते हैं मरूस्थल।

जब तुम स्त्री बन जाओगी
तब खिलेंगे फूल
मरूस्थल के गर्भ में
आँगन में किलकारियां होंगी
क्योंकि तुम बन चुकी होंगी
एक स्त्री....

दिव्या शर्मा।

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#छोले_पार्ट_वन

#शोले का शीर्षक #छोले होता।और #गब्बर की जगह सास।तो सोचिए फिल्म के डॉयलाग्स कैसे होते?

सास-"कितने छोले थे?"
बहू-"एक किलो ,माँजी ...।"
सास-"छोले एक किलो और मेहमान बीस!!फिर भी नहीं बचे!"
बहू-"बहुत टेस्टी बने थे ना माँजी।"
सास-"किसने कहा कि टेस्टी बने थे...हैंय.. हैंय..अब तू क्या खायेगी बहू?"

बहू-"मैं...मैं. गोभी बना लूंगी माँजी!"
सास-"खामोश...बड़ी आई गोभी बनाने वाली।अब तू अचार से खा....।"

😉😉😉😉😉😉😉

दिव्या राकेश शर्मा

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इश्क़ ने बनाया है
मोहब्बत का दरीचा
चाँद की जमीं पर...

#मेरा_प्रेमपत्र

तुम्हारे नर्म बालों में
उंगलियों को उलझा लूँ
तेरे माथे की सिलवट को
होंठों से चूम लूँ
यह मैं नहीं लिख पाऊंगी।

मैं नहीं लिखूंगी ऐसा कुछ भी
जो लिखती है हर प्रेमिका
अपने प्रेमपत्र में....

तेरे हाल चाल के साथ
मेरे चंद सवाल होंगे
मैं लिखूंगी इस भ्रष्ट समाज की बातें
रोते हुए दिन और सिसकती हुई रातें
मैं पूछूंगी कैसे बच्चों के आँसू रूकेंगे
भूखे जो पेट हैं
कैसे उनके पेट भरेंगे।

तेरे संग महल बसा लूँ
यह ख्वाब न मैं लिखूंगी
हर इंसा को छत मिले
कुछ ऐसी चाह लिखूंगी

मेरे पहले प्रेमपत्र में
न आसमानी सपने होंगे
मैं हकीकत की धरा पर
तुझसे तेरे कर्म लिखू़गी
नहीं लिखूंगी ऐसा कुछ भी
जो लिखती है हर प्रेमिका
अपने प्रेमपत्र में....

मुझे तुझसे जानना है
कि क्यों धरती मुरझाई है
क्यों इंसान ने हैवां सी फितरत पाई है
उन बेजुबानों की हर एक आह लिखूंगी
मैं अपने प्रेमपत्र में सारी चाह लिखूंगी
तेरी बाँहों में सकूं चाहूं
न ऐसा गीत लिखूंगी
तेरी बाँहों से यकीं चाहूं
मैं ऐसी बात लिखूंगी
तुझे तेरे फर्ज की राह पर चलना होगा
इस गगन की छांह में
अब सच को पलना होगा
नहीं लिखूंगी ऐसा कुछ भी
जो लिखती है हर प्रेमिका
अपने प्रेमपत्र में....

जर्जर सी देह टूटी
क्यों उसकी यहाँ दिखती है
लूटती है क्यों आबरू
क्यों मजबूरी बिकती है।
लटका है क्यों फांसी पर
मेरे देश का अन्नदाता
क्यों हर फसल के साथ
उसकी हस्ती मिटती है।
मुझे करनी है मुलाकत
नहीं तुझसे तन्हाई में
मैं चाहूं तू मिले मुझे
दुनिया की रूसवाई में।

नहीं लिखूंगी ऐसा कुछ भी
जो लिखती है हर प्रेमिका
अपने प्रेमपत्र में....

मैं अपनी नर्म हथेली
से तुझे न सहला पाऊंगी।
तेरे पास रहकर,
न तुझको बहलाऊंगी।
मेरे प्रेमपत्र में
दुख का होगा भरा कोना
मैं लिखूंगी तुम्हें
तुम बस मेरी बात सुनो ना!

नहीं लिखूंगी ऐसा कुछ भी
जो लिखती है हर प्रेमिका
अपने प्रेमपत्र में....
क्या फिर भी तुम मेरा
पहला पत्र पढोगे
क्या दिल से लगाकर इसको
अपने करीब रख सकोगे?

दिव्या राकेश शर्मा

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#Forget
तेरी यादों के साय में जी रहे हैं
तुझे भूलना मौत का आगाज होगा...

कॉरोना के लिए संदेश लिखा था लेकिन किसी ने बताया कि वह कमबख्त अनपढ़ है।इसलिए वीडियो के जरिए संदेश दे रही हूं..

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#उज्ज्वल
मन के संताप को हर ले
प्रभु ऐसा हमें प्रकाश दो।
उज्जवल हो जाए जग ये
ऐसा ज्ञान का प्रभात दो।

वह अंतिम मुस्कान भेद रही है मेरे हृदय को
मैं व्याकुल हूँ क्योंकि देख रही हूं निर्लज्ज आँखों में संतोष
मैं व्याकुल हूँ देखकर चुप्पी आनंद की उन लाल सोच के अधरों की,
मैं व्याकुल हूँ रक्तपान में शामिल जनों को देखकर
क्योंकि उनके हृदय में चल रहा है आनंद उत्सव
मैं व्याकुल हूँ उस बूढे निर्दोष चेहरे के अंतिम संदेश को देखकर,
निकल रही है आह् उन लोगों के लिए जो निकल पड़ते हैं अपने फायदे के लिए देश बाँटने जहरीले आँसू लिए..

अब सब मौन हैं क्योंकि वे आज संतुष्ट हैं इस रक्तपान से,
लबालब है उनके हाथों में रक्त से भरा कटोरा
अब वह नृत्य कर रहे हैं मानवता की मृतदेह पर,
कौन कहता है रक्तपिपासु जीवित नहीं हैं..।

दिव्या राकेश शर्मा

#पालघर_हत्याकांड

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"मैं कहती रही वह सुनता रहा..."
"फिर..?"
"फिर उसने सुनना छोड दिया.."
"तो...?"
"तो मैंने कहना।और इस तरह वह नालायक मेरे दिल से उतर गया..।"
और प्यार..?
"प्यार वहीं रहा... पहले से भी ज्यादा गहन..।"

दिव्या राकेश शर्मा

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सुरमई सी रात
और यह तन्हाई
आज फिर तेरी यादों के
हम करीब है....