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तुम आओ मेरे द्वारे या द्वार तुम्हारे हम आएं। मेरी तुझ पर तेरी मुझ पर एकटक नज़रें जम जाएं। लब मुस्काएँ आँखें बोलें मगर जुबाँ खामोश रहें प्रेम मिलन के इस मंजर पर वक़्त के पहिये थम जाएं। संजय नारायण
छम छम पायल, खनखन कंगन, चम चम झुमके -हार चल दिए। अरमानों की डोली लेकर जाने किधर कहार चल दिए । होठ रसीले , चंचल आंखें , प्यार तुम्हारा , तुम खुद भी उधर चल पड़ी सारी पूंजी जिधर चोर ये चार चल दिए।। संजय नारायण
दिल गा रहा है गीत सुनाकर मैं क्या करूँ? धुन कोई प्यार वाली बजाकर मैं क्या करूँ? जिसने सजायी जिंदगी वह खुद ही साथ है फिर मंदिरों के द्वार सजाकर मैं क्या करूँ? संजय नारायण
बातों बातों में यूँ दिल को भा जाए कोई। आँख मीचूँ भी तो ख्वाब में आ जाए कोई। जो मैं सो जाऊँ तो आहिस्ता जगाए कोई। साथ जागे भी सपने भी दिखाए कोई। अपनी आँखों में समन्दर भी छिपाए कोई। इनमें धोखे से कहीं डूब न जाए कोई। मरने वाला भी ये चाहे न बचाए कोई। नज़रें कातिल हों तो क्यों ना मर जाए कोई। दिल ये चाहे कि मुझको भी सताए कोई। अपना गम कह के मुझे काश रुलाए कोई। संजय नारायण
अपने बचपन में हूबहू मैं था मेरे जैसा अफ़सोस अब नहीं रहा वैसा मेरे वर्तमान को वही पुराने तराने दो मुझे मुझसा बन जाने दो। तब रहता था मैं बिंदास, भले ही अस्त व्यस्त पर रहता था अलमस्त पहने कोई भी वस्त्र, नये पुराने रंगीन सादे सुंदर असुंदर की परवाह किए बिना किसी चिंता किसी चाह के बिना नहीं सोचता था कि कैसा दिखूँगा इन परिधानों में कि लोग क्या कहेंगे कानों कानों में मुझे वैसा ही लापरवाह हो जाने दो मुझे मेरे जैसा बन जाने दो। तब मैं किया करता था बातें बेशुमार बिना मस्तिष्क पर जोर डाले निष्कपट, निश्छल, निर्विकार बोल देता था वह सब जो मन में आता था जैसा जब सब कुछ, सम्पूर्ण, एकार्थी सोंचता हूँ बोलने से पहले अब परखता हूँ निगाहों को कुछ कहता हूँ कुछ छिपाता हूँ सच बोलने से घबराता हूँ। मुझमें मुझे वह हौसला उकसाने दो निर्भय, मुझे सब कुछ कह जाने दो मुझे मेरे जैसा बन जाने दो। तब नई नई उमंगों में मौजों की तरंगों में उड़ा करता था मैं खुद से इतना प्रेम करता था मैं परियों, चिड़ियों, तितलियों, रंगों, कलियों, फूलों, झरनों के सपने देखा करता था मैं खुद में ही खोया रहता था मैं बहुत खुश रहता था मैं कि वास्तविकता में जिया करता था मैं। मुझे उन्हीं उमंगों में, उन्हीं सपनों में डूब जाने दो मुझे खुद के साथ प्यार की पींगें बढ़ाने दो मुझे अपनी मस्तियों में चूर रहने दो जमाने के झंझावातों से दूर रहने दो दूर रहने दो मुझे सपनों की दुनियाँ से मुझे वास्तविकता जी लेने दो मुझे पहले जैसा खुश हो जाने दो मुझे मेरे जैसा हो जाने दो।। संजय नारायण
Being polite doesn't cost you penny anyone. Above all you may get so many friends won. Bowing your head before guest is a courtesy. politeness amuses the feeling and fantasy. #Polite
जमाने भर की आँखों के नए सपने 💕💏😻बनाऊँगा मैं बेगानों से ग़म चुनकर उन्हें अपने 👩❤️👩बनाऊँगा । बनाने का हुनर बख़्शा खुदा ने जो कभी मुझको नहीं हथियार कोई भी मगर कलमें🖋️🖊️🖍️✏️✒️ बनाऊँगा।। संजय नारायण
Polite "Being polite doesn't cost you penny anyone. what though if you get so many friends won." Nectar
मैंने पलकों को बिछाया है तेरी राहों में कुछ देर ठहर भी जाओ मेरी निगाहों में मुझे शौक़ था मैंने जान छिड़क दी तुम पर तुम चाहो तो गिन लो इसे गुनाहों में तुम्हारे प्यार की बारिश में भीगकर पलभर क्या भला ढूढूँगा मैं घटाओं में बहारों! मुझे अब तुम्हारी ख्वाहिश नहीं हर रंग मैंने देखा उनकी अदाओं में
मुक्तक 1 जिन्हें हम प्यार करते हैं वो अक्सर रुठ जाते हैं। मिले गर प्यार फूलों से तो पत्थर रुठ जाते हैं। मनाने रूठने से प्यार बढ़ता है मगर मुझसे, अगर तुम रुठ जाते हो मुक़द्दर रूठ जाते हैं।। 2 जो लहजे गम के सागर में डुबोकर लौट जाते हैं। तो आँसू आँख की पलकों को छूकर लौट जाते हैं। वो बोले दिल्लगी को प्यार जो समझे खता उसकी, मैं सुनकर टूट जाता हूँ वो कहकर लौट जाते हैं।। 3 जमाने भर की आँखों में नए सपने बनाऊँगा। मैं बेगानों से गम चुनकर उन्हें अपने बनाऊँगा। बनाने का हुनर बख़्शा खुदा ने गर कभी मुझको, नहीं हथियार कोई भी मगर कलमें बनाऊँगा।। 4 तू है मोती मैं हूँ धागा तुझ सँग लिपटा सोया जागा ख्वाब में मर्जी पूँछी रब ने मैंने साथ तुम्हारा माँगा।। 5 हमारे दिल में आँखों में समन्दर के ठिकाने हैं। तुम्हारे मन की गलियों में बबंडर के फसाने हैं। मैं तुमसे दिल लगाऊँ तुम लगा दो मन अगर अपना, ठिकाने फूट पड़ने हैं समंदर भाग जाने हैं।। संजय नारायण
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