Quotes by Rishi Sachdeva in Bitesapp read free

Rishi Sachdeva

Rishi Sachdeva Matrubharti Verified

@rishisachdeva9370
(73)

https://youtu.be/sr7vH_yU94M

*अपने व्यस्त समय में से केवल 5 मिनट आम आदमी के नज़रिए से सुनिएगा भाजपा, कांग्रेस या अन्य राजनीतिक पार्टी के सदस्य के नहीं।*

*यह जनआक्रोश हर उस सत्ता के विरोध में है जो निष्क्रिय है जनभावना का आदर नहीं कर रही उसकी आवाज़ नहीं सुन रही न कि किसी राजनीतिक दल के विरोध में ।🙏*

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https://youtu.be/4aNBucVsJ4A
*द्वारा :-ऋषि सचदेवा*
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श्रद्धांजलि "सुशांत सिंह राजपूत"
Tribute Sushant Singh Rajput

मुझे वापस बुला लो,
एक बार गले लगा लो,
नहीं रहना मुझे यहाँ,
एक बार, बस एक बार मुझे वापस बुला लो ।।

हुई गलती मुझसे मानता हूँ,
कुछ तो करो,
क्षणिक आवेश में कर बैठा जो नहीं करना था,
प्लीज् - प्लीज मुझे वापस बुला लो ।।

यहाँ अब माँ भी नहीं रहती,
अब न जाने कहाँ है वो,
पापा आप तो वहीं हो,
कुछ तो करो, 
चाहे दो थप्पड़ लगा देना, 
नाराज़ होना - गुस्सा करना, 
बेशक बात मत करना,
पर मुझे वापस बुला लो ।।

न यार मेरा कोई यहाँ,
न महफ़िल सजी यहाँ कोई,
मैं हो गया अकेला यहाँ भी,
कुछ तो करो दोस्तों माना हुई गलती,
तुम कहते थे कुछ भी हो जाये सब संभाल लोगे,
सब लफड़े, सब झगड़े मैनेज कर लोगे,
अब करो कुछ तुम ही, मुझे वापस बुला लो ।।

दीदी मुझसे गलती हो गयी, 
मैं बिन बताए दूर बहुत दूर निकल आया,
इस जहाँ में कोई पहचान नहीं मेरी, 
कोई स्टारडम नहीं, 
कोई पहचानता ही नहीं मुझे,
अकेला बहुत अकेला पड़ गया हूँ यहाँ,
कान पकड़ लेना चाहें, डपट लेना जितना चाहे,
पर कुछ तो करो दीदी, मुझे वापस बुला लो ।।

मेरी नहीं गलती तुम सबकी है,
कोई तो समझाता मुझे,
कोई तो रोकता मुझे, 
करो अब कुछ भी करो,
नहीं रहना मुझे यहाँ,
एक बार, बस एक बार, 
आख़री बार, कुछ भी करके,
मुझे वापस बुला लो, मुझे वापस बुला लो ।।

बहुत मुश्किल होती होगी न मरने के बाद कि ज़िन्दगी ??

कितना खालीपन होता होगा वहाँ ?

वहाँ जहाँ कोई आपको पहचानता नहीं, जानता नहीं, कुछ गलत फैसले, जिनको आप बदल नहीं सकते ।।

मौत के बाद कि ज़िन्दगी का ये जो फलसफा है, फिलॉसफी है, आपको मेरा पागलपन लग सकता है। 

पर अगर आपको लगे कि कोई यह गलती कर सकता है, करने जा रहा है, ज़रा भी महसूस हो तो उसे प्लीज अकेला मत छोड़िएगा, क्योंकि वो वहाँ पछताएगा और हम यहाँ। 

ज़िन्दगी रेगिस्तान की उस प्यास जैसी है जो मृग मरीचिका की तरह है यहाँ आदमी चला जा रहा है, चला जा रहा है, इस इंतज़ार में की आने वाले कल को जीएंगे, आज काम कर लें.....

ना मालूम कल हो न हो दोस्तों, तो आज से ही ज़ी भर कर जी लो ज़िन्दगी ।।

अजीब शय है ये ज़िन्दगी, है तो भी मुश्किल, नहीं है तो और भी मुश्किल ।

चलिये फिर मिलेंगे, आपके कॉमेंट्स का इंतज़ार रहेगा, बातें करते रहिये दोस्तों, मुलाकातें करते रहिए, हमेशा मुस्कराहट बिखेरते रहिये। ज़िन्दगी जिंदादिली से जियें। जाने के बाद कौन, किसको कितने दिन, कितनी बार कब कब याद करेगा जो है, आज है, सत्य केवल वर्तमान है, अभी है .....

आभार
ज़िन्दगी ज़िंदाबाद ।
✒️ ऋषि सचदेवा
📨 हरिद्वार, उत्तराखंड । 
📱 91 9837241310
📧 abhivyakti31@gmail.com

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https://youtu.be/JlUZ92Vu8mc

आज कुछ इश्क़, प्यार, प्रेम, मोहब्बत, चाहत हो जाए ।

किसे नहीं हुआ इश्क़ ??

आइये एक छोटी सी मुलाकात करें और डूब जाइयेगा मेरे साथ इश्क़ के सरूर में ।

अगर आपने कुछ कुछ अपना सा इश्क़ महसूस किया हो तो इस वीडियो को लाइक, शेयर व सब्सक्राइब कीजिये ।

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https://youtu.be/m2KE6vk0J6E

यह वीडियो आपने न देखी तो आप जीवन में आने वाली सकारात्मक ऊर्जा (Positive vibes) अवश्य ही खो देंगें, मिस करेंगें । पसंद आये तो लाइक, सब्सक्राइब व शेयर करें

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https://youtu.be/OqXhPO5Jw4o

आपको मेरे द्वारा रचित यह कविता "लॉकडाउन" पसंद आये तो कृपया लाइक करें, शेयर करें व सब्सक्राइब करें मेरा यूट्यूब चैनल "अभिव्यक्ति मैं डरता हूँ" आपके उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार ।

आपका शुभचिंतक
ऋषि सचदेवा,
हरिद्वार, उत्तराखंड।
9837241310

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कितनी परछाईयाँ साथ चलती हैं ,,
जब मैं ख्यालों के साथ होता हूँ ।।

मुझे तन्हा क्यों नहीं छोड़ते तुम कुछ पल ,,
गुज़रे हुए लम्हो से मुझे कुछ बात करनी है ।।

✒️ ऋषि सचदेवा 📱 9837241310

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मैं अनंत आकाश पर लिखूँगा,
नीले-सफेद स्लेट से आकाश को अपने रंगों से, शब्दों से भर दूँगा ।

मैं अनंत आकाश पर लिखूँगा,
अपने मन की कहानी, अपने शब्दों की जुबानी ।।

मेरी भाषा, मैं ही पढूंगा,
अपने सपनों को मैं ही पँख दूँगा, उड़ने को मेरा अपना आकाश होगा।

सिर्फ मेरा मैं ही समझूँगा,
मेरी अनगढ़ बेढंगी सी बातें, जो लिखूँगा मैं अपने आकाश पर,

अपने अनगढ़ बेढंगे से शब्दों से,
बेतरतीब से रंगों से, रंग दूँगा मैं अपने अनंत आकाश को ।।

🗞️ "अभिव्यक्ति" ✒️ ऋषि सचदेवा
📨 हरिद्वार, उत्तराखंड । 📱 9837241310

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भारत में फूट - फूट कर रोया कोरोना जब सुना
"कोरोना मैय्या की जय"
व्यंग्य

सुनसान सड़कें कोरोना का डर, हर जगह लॉक डाउन या कर्फ्यू पर कुछ लोगों में डर से ज़्यादा मज़े के भाव हैं। अद्भूत मिश्रण है, खुशी और भय का। ऐसा लग रहा है, भारत के घर-घर मे पकवान बनाने की प्रतिस्पर्धा हो रही है। हर घर में कोरोना मैय्या की पूजा हो रही है।

त्यौहार की तरह लोग कोरोना सेलिब्रेट कर रहे हैं। कही पकौड़ों की खुश्बू है तो कभी ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मोमोज को भारत सरकार ने राष्ट्रीय पकवान का दर्जा दे दिया। चाइना को चिढ़ा - चिढ़ा कर खा रहे है कि देख ! तेरे कोरोना की क्या हालत कर दी हमनें।

पड़ोस से भाभी की प्लेट की प्लेट में पकौड़े सज - सँवर के आते हैं और हमारे घर से जलेबी इठलाती हुई उसी प्लेट में वापस चली जाती है। वाह ! हमारे घर की तरला दलाल, हमें पता होता कि तुम इतनी गुणी हो तो इतने साल हम खामखा बीकानेर वाले पर पैसे न लुटाते और तो और हमें पता ही नहीं था कि हमारे सुपुत्र ने संजीव कपूर से ट्रेनिंग ली है । इतना बढ़िया कड़ाही पनीर तो हयात रीजेंसी में भी नही मिलता होगा। ज़रा इस कोरोना को समुद्र में फेंक आये मोदी जी फिर बुलाते हैं आपको घर खाने पर।

कितने जूझारू प्रवत्ति के हैं हम भारतीय ? हमारे यहाँ कम्पटीशन चल रहा है, किस की टिकटॉक ज़्यादा अच्छी, कौन बनेगी "टिकटॉक क्वीन" की विजेता और कौन होगा "टिकटॉक किंग" ? तेरी टिकटॉक मेरी टिकटॉक से अच्छी कैसे ? पर वाद - विवाद प्रतियोगिताएं आयोजित हो रही हैं। और हमारी राजकुमारी ने जी - जान लगा रखी है अपनी टप्पू सेना के साथ उसे जीतने के लिए। लगे रहो राजकुमारी, ऑल दी बेस्ट !

हमारा राष्ट्रीय फैमिली गेम बनने के लिए ऑनलाइन लूडो और तंबोला में जबरदस्त कम्पटीशन चल रहा है। कभी लगता है लूडो, तो कभी लगता है तंबोला बाज़ी मारेगा। बिल्कुल बराबरी की रेस में है दोनों महारथी, मेरी अग्रिम शुभकामनाएँ विजेता के साथ और संवेदनाएँ रनर अप के प्रति।

अब बारी आती है, एकल प्रतियोगोता की, तो इसकी तो न ही पूछो तो अच्छा ! बाप रे बाप ! कई बार तो घर के किसी कोने से आवाज़ आती है मार दे। उसे मार दे वो गाड़ी के पीछे छिपा बैठा है, गोली मार दे साले को, अरे! तू मुझे गोलियां दे, मैं मारता हूं इसे। पहले - पहल तो मैं सचमुच घबरा गया कि मैंने बेटे को पढ़ने भेजा था बाहर। प्रभु ! ये कौन सी मुसीबत में फंसा दिया ? ये कब टेररिस्ट आर्गेनाइजेशन (आंतकवादी संगठन) में शामिल हो गया। लश्कर ए तैयबा, जैश की ब्रांच यहाँ कब खुली ? वो तो जब उसके पीछे चुपचाप जाकर खड़ा हुआ और देखा कान में ईयर फोन लगाकर साहब 'पब जी' टाइप किसी गेम के किसी संगठन के सरगना बने हुए हैं और संगठन में मासी, चाची, ताई सब के बच्चे और इनकी मित्र मंडली भी शामिल है।

हे ईश्वर !

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