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પ્રેમ, એટલો સૂક્ષ્મ છે કે ક્યારે તમારા દેહ નો ઊંબરો ઓળંગી ને તમારી આત્મા નું સ્પંદન કરી લે છે તમે જાણી પણ નથી શકતા.. તમે જાણો છો તો ફક્ત આનંત્ય સમર્પણ, આત્યંતિક તૃપ્તિ અને અગાધ પ્રેમ..! -સદૈવ શાશ્વતં
“ईश्वर से मिलन का आसान तरीक़ा है प्रेम, अपने आपसे, प्रियजन से, सभी से, नि:स्वार्थ प्रेम ओर जब तक किसी प्रियजन की आत्मा तक नहीं पहुँच सके तो समझ लीजिए की यह सिर्फ़ एक सूनापन भरने की क्रिया मात्र है प्रेम नहीं” -सदैव शाश्वतं
“आनंद कोई चीज नहीं हे ना ही कोई प्रक्रिया हे की जिसे आप कोई स्थानीय जगह पर जाकर यां फीर कोई मज़ाक़िया शो देख कर लुत्फ़ उठा सकते है, किन्तु यह तो परमात्मा का साक्षात स्वरूप है जो सिर्फ़ अनुभव किया जा सकता हे जिसकी अनुभूति परमात्मा के मिलन रूप है सदा आनंदी रहे परमात्मा में रहे” -सदैव शाश्वतं
“ learning and knowledge has difference that land & sky, science is a thing that you can learn same as study your field is a learning not a knowledge even reading dharmik books like ‘Shashtra’, ‘Veda’, ‘Geeta’, & others is learning not a knowledge so this is thing of learning but ‘DHARMA’ is thing that provides you knowledge, you can’t learn dharma, it’s thing that you’ll get from inside your body not outside, my knowledge that i earn is only mine that never can be yours you’ve to look inside for your own answer and for your own knowledge, whatever I’m serving you is just for encouragement that enlighten your soul and awaken mind but you’ve to take look for your own enlightenment” -सदैव शाश्वतं च्
ध्यान... जानने की इच्छा से रहित हो कर केवल जानने मात्र का भाव... कोई संकल्प-विकल्प न हो के केवल “मैं हूँ“ का होश अविरत बना रहें... अत्यधिक प्रशांति हदय में स्थिर रह कर... स्थूल एवं सूक्ष्मातिसूक्ष्म भावों व क्रियाओ में बहे बिना उसके प्रति पूर्णत: जागृति ... निमेष-उन्मेष रहित मंद व अदृश्य कुंभक सहित श्वास... अ-मनी एवं गहन मौन में स्थिर अपनी जागृत उपस्थिति केवल.... प्रयत्न शून्य चैतन्य की ऊर्जा मात्र... चलित एवं कंपन रहित चेतना व आत्मा का पूर्ण बोध.... कोई भी कर्म अथवा भाव का अविरोध व साक्षी मात्र... भाव शून्य प्रेम पूर्ण दर्शन केवल... अहंकार शून्य “हूँ” मात्र की स्मृति... जो कुछ होता है उसमें भाव-आसक्ति रहित केवल स्वीकृति...केवल द्रष्टा...स्वीकार नहीं... भीतर-बहार न हो कर्तृत्व और न हो भोक्तृत्व ... हो केवल शून्य...शून्य...शून्य...
Too often you forget, O Parth, i am the one who drives your chariot. So remember: if I’m with you it doesn’t matter who is against you. ॥ कृष्णं वंदे जगद्गुरुं ॥
॥ वेद: अखिलो धर्म मूलं ॥ Vedas are source of All Dharma
“ સર્વ આગ્રહ-દુરાગ્રહ થી પરે, એક પરમ નિર્દોષ અવસ્થા છેં જે પ્રેમ છે.”
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