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माना जमाना खराब है, यहाँ देते सभी अजाब हैं, अपनी मुस्कान की धार आजमा कर तो देख, एक यही हर सितम का जवाब है । ☺️
मेरे कुछ कहने का क्या मतलब, तूने गर कुछ सुना नहीं, उस रास्ते पर चलने का क्या सबब, वो रास्ता गर खुद से चुना नहीं, मेरे हामी भरने में क्या अदब, तेरी गर उसमें रज़ा नहीं, वो दरिया गर पर्वत को छोड़, निकला है सागर की ओर, पर्वत के पास भी रोकने की फिर तो कोई वजह नहीं। ~ प्रणव
अब फर्क नहीं पड़ता, कि ये दुनिया क्या सोचे, जब फर्क ही नहीं पड़ता, तो दुनिया का क्यूँ सोचें, बस एक तेरी नजरों में खुद को उठाना है, के कोई कुछ भी कहे, लेकिन ये ऐतबार कभी न टूटे । -Pranav Pujari
मैं पहरों यूँ ही ठहरा रहता हूँ, बस इसी आस में, तेरी एक दीद मिले, सुकून-ए-दिल की तलाश में, दर तेरा मेरे लिए, किसी जन्नत से कम तो नहीं, ना भी दिखूँ, महसूस कर, मैं हूँ सदा तेरे पास मैं । -Pranav Pujari
मैं चाहता नहीं हूँ जाना, पर तुम रोकते नहीं, थोड़ा खुदगर्ज़ हूँ माना, ज़िद तुम भी छोड़ते नहीं, उन सवालों पर तुम्हारे, कभी मेरे जवाब भी याद करो, मेरी खुशी है वादे निभाना, पर तुम कुछ बोलते नहीं। -Pranav Pujari
यकीन' नहीं, तो कुछ नहीं.. मानो बातों में अल्फाज़ नहीं, अल्फाज़ों में एहसास नहीं, सावन में बरसात नहीं, वसंत में उल्लास नहीं, हवा में महक नहीं, भोर में चहक नहीं, पानी में लहर नहीं, रात के बाद सहर नहीं, ऐसे ही.. 'साथ' वो आता रास नहीं, गर रिश्ते में "विश्वास" नहीं ।
यार से इकरार कर सट्टा लगा बैठा, चाहत की चाह में, दोस्ती गवां बैठा, अब तो इश्क़ के इज़हार से ही डर लगता है, प्रणव, बस वो साथ न छूटे ... हर राज़ दिल में दबा बैठा। -Pranav Pujari
ना मैं नामुमकिन हूँ, ना तू आसान है, ये सब तो सोच के दायरे में पनपा, वक्त का फरमान है, कहते हैं.. आसमां में सुराख भी मुश्किल नहीं, प्रणव, बस इसी विश्वास की डोर से बंधा, मेरा जहान है।
फासलों का क्या है, सिलसिलों में बदल दूँ, दूरियाँ कहाँ हैं, हर सफ़र तेरे नाम कर दूँ, आवाज़ एक तेरी जो मुझ तक पहुँचे, तो, दुनिया ये एक क्या है, मैं दो जहां निसार कर दूँ। ~प्रणव
माना ये तेरा-मेरा रिश्ता, एक उलझा हुआ सा धागा है, पर उस टूटते तारे से मैंने, आज भी तुझे ही माँगा है । ~ प्रणव
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