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चलते जा रे राही, चलते जा रे । इक बार भी ना तू रूकना रे , इक बार भी ना तू झुकना रे , भूल न अपना लक्ष्य इस बार, छोड़ न अपनी आस इस बार, हार को न तू गले लगा, शूल को तू हाथों में सजा, विश्राम न मरहम इस दर्द का, विलास न पानी इस प्यास का जो पाना है हासिल कर ले, खुद को अपनी नज़रों में खड़ा कर ले । माना मंज़िल आसान नहीं माना सहयोगी साथ नहीं तो क्या ! तू साथ है खुद के रे खुद दवा मर्ज़ की अपनी रे अपने साथ न फिर तू वो दोहरा, जिस कारण जीवन तेरा ठहरा । उठ जाग फिर से आस जगा , उठ भाग फिर से आग लगा खुद में खुद को ही बंद न कर, उड़ने दे खुद को, आजाद तू कर अपनी राह से कंकर तू चुन ले इक आखिरी कोशिश, तू कर ले इस राह पे खुद को यूं झोंक दे, राह औ' राही पता न चले चलते जा रे राही चलते जा रे ।
एक मैं, एक छाया अघोषित अनकही साझेदारी लिए दोनों चलते जाते हैं, बिना प्रश्न किए एक दूजे से यूं ही।
समय बड़ा विकराल है बदलता कल और आज है जो हो प्रलोभित तुम रहे, विध्वंस का आगाज़ है। प्रहर्श नहीं ये जाल है, सहर्ष आत्मघात है जो बच सका वो वीर है, जो ना बचा हलाल है। ये कृष्ण का सा रूप है, कुमारी सा निश्छल भी है मादक ये मोहिनी सा है अग्नि सा प्रचंड है। ये तीर है कमान का, ये प्रश्न है कमाल का कि ये मंच है तो, मंच का संचालक भला कौन है।
मै भी खड़ा हूं, तुम भी खड़े हो इस समंदर में, और किनारे की तलाश जारी है।
कुछ उलझी सी लड़की सुलझाने चली ज़िन्दगी, भोर का सूरज कहता उससे चल, सांझ की चिड़िया कहती ज़रा रुक, वो दौड़ती, हंसती, कहती रात में मिलेंगे, रात में सूरज भी सो जाता, और चिड़िया भी कुछ उलझी सी लड़की सुलझाती रहती ज़िन्दगी।
तुम्हारा मुझसे स्पर्श अनकहा सा........ बहुत कुछ कह जाता है........!!
थकना भी लाजमी था कुछ काम करते करते कुछ और थक गया हूं आराम करते करते।।
जो दिन के उजाले में ना मिला दिल ढूंढे ऐसे सपने को, इस रात की जगमग में डूबे मैं ढूंढ रही हूँ अपने को!
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