Quotes by Bokul... in Bitesapp read free

Bokul...

Bokul...

@nibeditadey1343


अज़ीम शान ओ शौकत की इमारतों में इक सुकूँ का आज घर नहीं,
महीनों गुज़र गया है लोगों को इक छत के नीचे अपनों से मिले हुए !

-Bokul...

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तुम गए जिस रात..
उस रात की आज भी सुबह न हुई!

-Bokul...

संभालकर रखना इस लौ को,
तूफां से नहीं, कभी कभी ये साँसों से भी बुझ जाती है !

-Bokul...

बातों का लहज़ा कह देता है, कुछ तो बदल चुका है !
वरना अपनापन नापने की कोई मशीन तो नही है !

-Bokul...

क़ीमत हर कश की बहुउउउत महंगी है
कुछ और नही दांव पर तेरी ज़िन्दगी है

ये लत शुरू में जन्नत की सैर कराती है
सिगरेट संग मौत ख़ूब यारी निभाती है

संभल जा ऐ बंदे, हाथों से समय निकलने से पहले
नशे की सुलगती ये आग तेरा कलेजा जला जाती है

ना दे पनाह तू ख़ुद के जनाज़े को ख़ुद में यूँ बेबसी में
कि क़ीमत हर कश की तेरी ज़िन्दगी अदा कर जाती है

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बहुत क़रीब आने से अक़्सर दूरी बढ़ जाती है!
शायद ... कुछ फ़ासले अच्छे होते है !!

-Bokul...

ख़ामोश रिश्तों की चीख़ बहुत तेज़ होती है
तुम्हें भीड़ में भी तन्हा न कर दे .. तो कहना

//वह आँखें फ़लक पर एक सितारा ढूँढ रही है//

एक अजीब सी महक है यहाँ,
ज़मीन पर चेहरा दिखता है,
ठन्डी ठन्डी हवा है इस कमरे में ...
और अंदर जैसे आग जल रही है !

बूँद बूँद बूँदें टपक रही है,
कभी लाल, कभी बेरंग ...
दो बेजान आँखें इधर उधर भटक रही है,
जैसे कुछ सवालों का जवाब ढूँढ रही है!

वक़्त बहुउउउउउउत लम्बा है यहाँ,
दिन रात सब एक जैसे है ...
कुछ लम्हों के बाद वो लम्हा आ जाता है,
एक दर्द से मुक्ति .. और कई सुई चुभ जाती है!

बात करने का अब मन नही है,
जब था ... तब लोगों के पास वक़्त नही था।
पर, अच्छा लगता है, सबको एकसाथ देखकर,
कुछ वक़्त के लिए ही सही .....

पता नही, क्या इस बार सावन बरसेंगे !
क्या इसबार शरद पूनम आएगी !
क्या इसबार पतझड़ में सूखे पत्ते भटकेंगे!
क्या इसबार बसंत में पिक गाएंगे !

इस कमरे की सुफेद छत पर
सारी यादों की ज़िन्दा तस्वीरें नज़र आ रही है!
बचपन, जवानी ...और साँसों की ढलती रवानी,
कई आवाज़ें रह रह कर कानों में गूँज रही है !

वक़्त बहुउउउउउउत लम्बा है यहाँ,
घड़ी की धड़कन जैसे रुक रुक कर चल रही है!
एक अजीब सी महक है यहाँ,
और वह आँखें फ़लक पर एक सितारा ढूँढ रही है !

Bokul.
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