Quotes by Mukesh Kumar Sinha in Bitesapp read free

Mukesh Kumar Sinha

Mukesh Kumar Sinha

@mukeshsahebgmailcom
(20)

"उम्मीद शायद सतरंगी या लाल फ्रॉक के साथ, वैसे रंग के ही फीते से गुंथी लड़की की मुस्कुराहटों को देख कर मर मिटना या इंद्रधनुषी खुशियों की थी, जो स्मृतियों में एकदम से कुलबुलाई।"

लप्रेक – है क्या यह? पढ़िए मुकेश कुमार सिन्हा की तीन लघु प्रेम कहानियाँ
http://bit.ly/lprek-shabdankan

पचास लाख हिट्स वाली शब्दांकन पर मेरे तीन लघु प्रेम कहानियों को पढियेगा ?

वैसे लाल फ्रॉक वाली लड़की में ये कहानियां सहेजी हुई हैं जो अमेजन पर उपलब्ध है :)

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#काव्योत्सव #प्रेम #KAVYOTSAV -2

तलाश
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1.

याद रहेगा
वो ख़ास पल
जब पत्ते झनमनाये, कोयल कूकी
और
तुम्हारी प्यारी सी आहटों की थिरकती धुन व
प्रेम से पगी झंकृत करती सरगोशियाँ !

कुछ पोशीदा बातें, बसा ली मन में
जैसे पुराने किले में दबी हो
अनमोल थाती !

सुर्ख लाल रंग कहर लाता है ना.
तभी तो तलाश है
जाने कब पूरी हो, या तुम्ही थे
मील के पत्थर, मेरे लिए।


2.

थे अकेले
थे अलमस्त
थे ख्वाबों को समेटे
थे मंजिलों के तलाश में
कभी बेवजह कभी बावजह

किसी ने कहा था
सफलता एकान्त को पूर्ण करती है ।
हाँ, तभी तो
उम्मीदों के चातक की कर रहे सवारी !

3.

थी बेहद पास
पर फिर भी कर रहा था तलाश

आखिर ढूंढने के बाद पाना भी तो
है एक खुबसूरत अहसास !

~मुकेश~

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#काव्योत्सव #प्रेम #KAVYOTSAV -2
मिले थे न
कुछ महीनों बाद
पर इन कुछ अरसा में बदला था
बहुत कुछ
न बदल पाने के शर्त के साथ

क्योंकि एक रिश्ते ने
अंकुरण के लिए
पाई थी रोमांटिसिज्म की नमी
बेशक जमीं की उर्वरता
बता रही थी
नमीं को सोख लेने के कारक
हैं बहुत
जरुरी नहीं की प्रेम का ये अंकुरण
पौध बन पाए भी

जिंदगी की लहलहाती फसलें
बता रही थी
दोनो किसानों को
कि खेत की मेढ़ को न तोड़े तो
ठीक रहेगा
पर बहाव कहाँ रख पाती है ख्याल
पानी होती है सीमा रहित

नजरें मिलीं
था ऐसा जैसे बाघा बॉर्डर पर
सैनिकाध्यक्ष ने अदला बदला की मिठाई का डब्बा
था स्पर्श का एक अदम्य सुख
आंखों ने पलकों के सहारे
कि कोशिश संवाद की
बस फिर
संवाद, छुअन और सिहरन

चाहते न चाहते
खुले आसमान तले
बादलों ने की सरगोशी
बढ़ों, करो आगाज आगोश में बंधने का
हवाओं में फाख्ते ने चहकते हुए बताया था इजहार का सुख
हल्का सा तड़ित भी छमकते हुए
बोल ही उठा
जाओ भी न

खेत और किसान का युग्म
एक नए अपने खेत की फसल दिखाई
दूसरे ने हल्के स्पर्श के साथ कहा
आपके हरियाली का जबाब नहीं
साथ ही दी सलाह
तोड़ दें अगर
खेत की मेढ़
तो बहाव फसल पसन्द करेगी
कोशिश कर के देख लें क्या ?

बस किसानी
और चाहतों की नमी
खिलखिलाते हुए चेहरे पर दिखी
छुअन और आगोश का सुख
रिश्ते की कली को
दे गई एक प्यारा सा नाम

कुछ नाम, बेनामी होते हैं शायद
बेशक प्रेमसिक्त हों।

~मुकेश~

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#काव्योत्सव #प्रेम #KAVYOTSAV -2

1.

मेरी राख पर
जब भी पनपेगा गुलाब
तब 'सिर्फ तुम' समझ लेना
प्रेम के फूल !

इन्तजार करूँगा सिंचित होने का
तुमने कहा तो था
सुर्ख गुलाब की पंखुड़ियों
तोड़ना भाता है तुम्हे !

2.

मैं नीम तू शहद
तू गुलाब मैं बरगद

तू कॉलोनी मैं जनपद

3.

कीचड़ में खिला कमल
बागों में खिला गुलाब

खिड़की के दरारों से
दिखा खिला चेहरा उसका

हमारी भी खिल गयी मुस्कान

4.

जिक्र तेरे गुलाब का
जो है
मेरे डायरी में
अब तक सिमटी
सुरक्षित संरक्षित
लजीली
ललछौंह

जब भी छुओ
सिहरन ऐसी कि
खिल उठता है तनबदन।
~मुकेश~

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#काव्योत्सव #प्रेम #Kavyotsav -2

प्यार के अद्भुत बहते आकाश तले
जहाँ कहीं काले मेघ तो कहीं
विस्मृत करते झक्क दूधिया बादल तैर रहे,
मिलते हैं स्त्री-पुरुष
प्रेम का परचम फहराने
सलवटों की फसल काटने !

नहीं बहती हवाएं, उनके मध्य
शायद इस निर्वात की स्थापना ही,
कहलाता है प्रेम !

याद रखने वाला तथ्य है कि
अधरों के सम्मिलन की व्याख्या
बता देती है
मौसम बदलेगा, या
बारिश के उम्मीद से रीत जाएगा आसमां !

समुद्र, व उठते गिरते ज्वार-भाटा का भूगोल
देहों में अनुभव होता है बारम्बार
कर्क-मकर रेखाओं के आकर्षण से इतर!
मृग तृष्णा व रेगिस्तान की भभकती उष्णता
बर्फीले तूफ़ान के तेज के साथ कांपता शरीर,
समझने लगता है ठंडक
दहकती गर्मी के बाद

ऐसे में
तड़ित का कडकना
छींटे पड़ने की सम्भावना को करता है मजबूत

आह से आहा तक की स्वर्णिम यात्रा
बारिश के उद्वेग के बाद
है निकलना धनक का
कि जिस्म के प्रिज्म के भीतर से
बहता जाता है सप्तरंगी प्रकाश !

कुछ मधुर पल की शान्ति बता देती है
कोलाहल समाप्त होने की वजह है
हाइवे से गुजर चुकी हैं गाड़ियाँ
फिर
पीठ पर छलछला आए
ललछौंह आधे चांद, जलन के बावजूद
होती है सूचक, आश्वस्ति का
यानी बहाव तेज रहा था !

भोर के पहले पहर में
समुद्र भी बन उठता है झील
शांत व नमक से रीती
कलकल निर्झर निर्मल

और हाँ
भोर के सूरज में नहाते हुए
स्त्री कहती है तृप्त चिरौरी के साथ
कल रात
कोलंबस ने पता लगा ही लिया था
हिन्द के किनारे का !!

वैसे भी जीवन का गुजर जाना
जीवन जीते हुए बह जाना ही है
कौन भला भूलता है
'प्रवाह' नियति है !

~मुकेश~

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#काव्योत्सव #प्रेम #KAVYOTSAV -2

जल्दी में माथे के साथ
छाती में उगते हल्के बालों को भी
शैम्पू से मलकर
कंडीशनर जरूर लगाते हुए
नहाते समय कुल्ला कर पान पराग थूक लेते हैं
और फिर बिना गमछे से पोंछे
आईने में हल्के से लहराते हुए बालों को निहार कर
शर्ट के ऊपर के दो या तीन बटनों को खोलकर
कॉलर उठाये
मुस्कुराते हुए खुद से कह उठते हैं लड़के
साला प्यार काहे हुआ यार

लपलपाते सूरज की धौंस से बिना डरे
साइड स्टैंड पर स्टाइल से खड़ा करके
पल्सर बाइक को
रे बैन के नकली ब्रांड वाले चश्मे को
खोंसते हैं बेल्ट में
पसीने के बूंद को उतरने देते हैं
कान से गर्दन होते हुए बनियान के भीतर
फिर से खुद को बुदबुदाते हुए कहते हैं
नए नए जवान हुए लड़के
साला बेकार में ही प्यार हुआ

जूते को अपनी पैंट से रगड़ कर
चमकाते हुए
इंतजार करने की अदा में
बेवजह परेशान होते हैं
और फिर बाइक की टँकी पर
हल्के से मुक्के को मारते हुए
अबे यार, आओगी भी
या अकेले ही जाऊं देखने
प्रेम रोग
प्यार के नाटक में गिरफ्त हुए छोकरे
प्यार पर तंज कसते हुए
स्वयं से लड़ते हुए क्यूट हो जाते हैं

प्यार हुआ
प्यार नहीं हुआ
सिक्के के दो पहलू की तरह
हेड टेल से प्रेम के परिमाण को मापते हुए
हेड कह कर उछालते हैं सिक्का
पर टेल आने पर, खुद से आंखे बचाकर
उल्टा करके सिक्के को
कह देते हैं थोड़ा जोर से
देखो मुझे तो प्यार हुआ ही है न
उसको ही समय नहीं है
मेरे लिए

अकेले में खुद ब खुद मुस्काते हुए
बात बेबात के फुल शर्ट की आस्तीन को
कर के ऊपर तक
बिना होंठ हिलाए कहते हैं स्वयं से ऐसे
जैसे रिहर्सल कर रहे हों कहने का
कि अबकी तो लेट करने के बदले
तुमको देना ही होगा
तीन चुम्मा ।
एक आज का, एक लेट का
और एक ?
छोड़ो, मत करो बहस, बस दे ही देना।

पोखर की रोहू मछली की तरह
कम पानी में कूद फांद मचा कर
शिथिल हो
गुस्से में तमतमाने के बावजूद
समय के बीत जाने पर भी
इंतजार करते हुए लड़के
रखते हैं चाहत उम्मीदों की गुलाबी रंगत का
शायद भरी दोपहरी में
रूमानी बादल छाए
शायद वो आकर चुपके से कंधा थपथपाए
औऱ कह ही दे
मैं आई आई आई आ गयी

गुलाबी कागज पर
लाल कलम से लिख डालते हैं प्रेम पत्र
ताकि हो अहसास
रक्त से बहते प्रेम का
बेशक झूठ से गढ़तेहैं प्रेम
पर पत्र की अंतिम पंक्तियों में जरूर लिखते हैं
सिर्फ तुम्हारा

हाँ तो
प्रेम में डूबे लड़के
हजार झूठ में एक सच को सँजोये
करते हैं प्रेम
और उस सच के इजहार में
हर बार मिलने पर कहते हैं
आई लव यू

~मुकेश~

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#काव्योत्सव #KAVYOTSAV -2 #प्रेम

सुनो
सुन रहे हो न
ये तुम में मेरा अंतहीन सफ़र
क्या कभी हो पायेगा ख़त्म

पता नहीं कब से हुई शुरुआत
और कब होगा ख़त्म
माथे के बिंदी से.......
सारे उतार चढ़ाव को पार करता
दुनिया गोल है, को सार्थक करता हुआ

तुमने देखा है?
विभिन्न घूमते ग्रहों का चित्र
चमकते चारो और वलयाकार में
सर्रर से घूमते होते हैं
ग्रह - उपग्रह ......!
अपने अपने आकाश गंगा में
वैसे ही वजूद मेरा
चिपका, पर हर समय का साथ बना हुआ !

जिस्मानी करीबी,
एक मर्द जात- स्वभाव
पर प्यार-नेह को अपने में समेटे
चंदा सी चमकती तुम
या ऐसे कहो भोर की तारा !
प्रकाश भी, पर आकर्षण के साथ
अलौकिक हो न !

अजब गजब खगोलीय पिंडों सा रिश्ता है न
सुनो हम नहीं मरेंगे
ऐसे ही बस चक्कर लगायेंगे
तुम भी बस चमकते रहना !

सुन भी लिया करो
मेरी लोड-स्टार !

~मुकेश~

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#KAVYOTSAV -2 #काव्योत्सव
तार पर
कतारबद्ध सैकड़ों गोरैया
निहार रहे
मुख्तसर सी सड़क को

गौरैया के
फैले पंख बताते हैं
सड़कों व तारों से
हो रहा सतत ऊर्जा प्रवाह

आखिर सड़कें ही
सफर के आगाज को
पहुंचाती है अंजाम तक

वैसे भी
चलते चले जाना या
थमने के बावजूद स्पंदन
है उर्जा का रूपांतरण

यानी
जिंदगी नियति है।

~मुकेश~

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#KAVYOTSAV -2 #काव्योत्सव #प्रेम

बीडी पटाखे के लड़ियों की
कुछ क्षण की चिंगारी जैसा
तुम्हारा प्यार
फिस्स्स्सस !!

इस्स्स्सस
की हल्की छिटकती ध्वनि
जैसे कहा गया हो - लव यू
जिसकी प्रतिध्वनि के रूप में
छिटक कर बनायी गयी दूरी
जैसे होने वाली हो आवाज व
फैलने वाली हो आग
और उसके बाद का डर
- 'लोग क्या कहेंगे'

शुरूआती आवाज न के बराबर
पर फिर भी, फलस्वरूप
हाथ जल जाने तक का डर
उम्मीद, आरोप से सराबोर

पटाखे के अन्दर का बारूद 'मैं'
उसके ऊपर लिपटे सारे लाल कागज़
तुमसे हुए प्रेम के नाम के
और फिर मेरी बाहों जैसी
प्रेम सिक्त धागों की मदमस्त गांठे
धागे के हर घुमाव में थी लगी ताकत
ताकि छुट न पायें साथ
ताकि सहेजा रहे प्रेम
पटाखे के पलीते जैसे तुम्हारे नखरे
चंचल चितवन !!

पटाखे के ऊपर लिखे
स्टेट्युरी वार्निग सी
सावधानी बनाये रखें
प्रेम भी जान मारता है !!

ये पटाखा चायनीज नही है .^_^

~मुकेश~

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#KAVYOTSAV -2 #काव्योत्सव

तुम्हारा आना
जैसे, एनेस्थेसिया के बाद
रूट केनाल ट्रीटमेंट!

जैसे ही तुम आई
नजरें मिली
क्षण भर का पहला स्पर्श
भूल गया सब
जैसे चुभी एनेस्थेसिया की सुई
फिर वो तेरा उलाहना
पुराने दर्द का दोहराना
सब सब !! चलता रहा !

तुम पूरे समय
शायद बताती रही
मेरी बेरुखी और पता नही
क्या क्या !
वैसे ही जैसे
एनेस्थेसिया दे कर
विभिन्न प्रकार की सुइयों से
खेलता रहता है लगातार
डेटिस्ट!!
एक दो बार मरहम की रुई भी
लगाईं उसने !!

चलते चलते
कहा तुमने
आउंगी फिर तरसो !!
ठीक वैसे जैसे
डेटिस्ट ने दिया फिर से
तीन दिन बाद का अपॉइंटमेंट !!

सुनो !!
मैं सारी जिंदगी
करवाना चाहता हूँ
रूट केनाल ट्रीटमेंट !!
बत्तीसों दाँतों का ट्रीटमेंट
जिंदगी भर ! लगातार !

तुम भी
उलाहना व दर्द देने ही
आती रहना
बारम्बार !!
आओगी न मेरी डेटिस्ट !!

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