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M-kay

M-kay

@manojkumar4182


इक इसांन दूसरे इसांन को आम की उस गुठली कि तरह समझता है जिसको जब तक चुसते रहो जब तक स्वाद आये, स्वाद खत्म और फिर कचरे के ढेर में

#M -kay

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इतने करीबी तो नहीं रहे हम किसी से
ये कौन है जो सदमे दे रहा है

हमारी हुकूमत होती तो क्या बात होती देखते
ये कौन बिमारों को हौसला दे रहा है

इस कारवें में इक शख्स मुझे सबसे खामोश लगा
हाँ वही जो गाड़ी को कंधा दे रहा है

अनदेखा इक शैतान अपनी फितरत से सबको ले डूबा
ये कौन है जो इसांनो को टक्कर दे रहा है

इक अर्सा अपने चाल चलन से दूर हम रहे 'सादिक'
ये कौन है जो सुर्खियां बटोर रहा है

#M -kay

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शिकायतें बहुत है, मैं बयां नही करना चाहता
मैं बस अपने जख्म हरे नही करना चाहता

वैसे तो बहुत जूनून है अपना घर रौशन कर लूँ
मैं बगल की झौंपड़ी में अंधेरा नहीं करना चाहता

तू छोड़ गया मुझे अपनी बेबसी का हवाला देकर
खैर,
बड़े पेड़ पर कौन परिंदा बसेरा नही करना चाहता

कितना आबाद रहा तुझे पा कर तेरा रकीब
नहीं पता,
इक बेजान बूत ,कुछ खत, खुश्क लाल धब्बे मिले कहता भी था तुमसे मैं अकेला बसर नहीं करना चाहता

#M -kay

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कैदखाने से कम नहीं है
तुम्हारे जाने की ये बैचेनी...
सलाखें गला घोट देंगी, गर्
रिहाई कि इत्तला जरा देर से लाये
#M -kay

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तुम प्रेम को नहीं मिटा सकते , क्योंकि एक दिन तुम्हें प्रेम के हाथों मिटना होता है...

रूखसत हुआ तो भी आँख मिलाकर नहीं गया...
वो क्यूँ गया ये भी बताकर नहीं गया...

वो बातें
दो पल कि,
रातें जगी सी
दिन सोया सा,
कैद गुफ्तगू की
बंदिशे अनजानी,
करते थे कुछ
चर्चाएं सूफीयानी ,
होती है अब
एक पहर तक
चाँद से मेरी,
हाँ उसकी
वो बातें...

#M -kay

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ओ राही जरा होश में चल
हर कदम जरा संभल कर चल,
कितनी ही पतवारें डुबी यहाँ
इश्क़ के भंवर से संभल कर चल

हर घड़ी कोई गैर होगा हमसफ़र
आये कोई मजिंल तक, देखने को चल
मगर.....
कांटे चुभें तो भी खैरियत है
फरेबी गुलों से संभल कर चल

वक्त के तकाजों से मन उदास जरूर है
जानता हूँ....
हर रोज़ ख्वाहिशें चितायें बनती है
जानता हूँ....
बात बेमानी सी है फिर भी सुन चल
'जीना है गर तो लाशों के बगल से चल'

#M -kay

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तू चला गया है दूर
जहाँ आवाज मेरी पहुँचती नही...
खबर तो पहले भी थी मुझे
तेरी फितरत में अब मैं नहीं...
फिर भी तुमको मैं लिखता रहूंगा
क्योंकि....
तेरे अलावा मेरी कोई फितरत नहीं
#M -kay

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मन बनाया सोचा कुछ स्याह लिखूँ
तुम्हें लिखूं या,तुम्हारी फजीहत लिखूँ
दिल नें कहा जो लिखूं बेबाक कलम रखूँ
ईमान बोला आज कुछ नसीहत लिखूँ

वो पुछता है हाल क्या है मेरा
मुझे फुरसत नहीं उससे,कैसे कैफियत लिखूँ
जानता है वो सब तवारीख मेरी
खैरियत लिखूँ भी तो कैसे लिखूँ

हुजूम ने कहा,वो लूट चुका गैर की बाहों में
तहज़ीब है नियत में, कैसे उसे तवायफ़ लिखूँ
बेखबर थे अब तक 'सनम ए अश्म' है अपना
बेनकाब हुआ फिर भी सोचा 'सदफ' लिखूँ
#M -kay

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