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एक ख़याल by Madhukar bilge
जिंदगी भी अब बंजर जमीन की तरह हो गई है, सदियों से आँसुओं की बरसात जारी है.. मगर खुशी का आजतक कोई पौधा नही उगा..। /बिलगेसाहब
मैं तो कुछ कहने से रहा.. हाल ए दिल क्या है.. आसमाँ से ही पूछ लो बारिश की वजह क्या है.. मोम की तरह पिघलता रहा लकड़ी की तरह जलता रहा कपूर की तरह मिटता रहा भजियो की तरह तलता रहा फिर जाना मोहब्बत में सजा-ए-इश्क़ क्या है। जमानेवालो समझ लो वजह-ए-खामोशी क्या है इश्क करो और फिर जानो की बेवसी चीज क्या है। -बिलगेसाहब
तुम गए तो कुछ ऐसा लगने लगा
तुम गए तो कुछ ऐसा लगने लगा। जैसे आँखों से रौशनी चेहरे से नूर होठों से तबस्सुम और जिंदगी से ख़ुशबू चली गई हो। महसूस होने लगा। तुम गए तो कुछ ऐसा लगने लगा। तुम गए तो कुछ ऐसा लगने लगा। मानो जिंदगी हो रेगिस्तान साँस जैसे बदबू पल पल एक साल सा और चीनी जैसे नमक महसूस होने लगा। तुम गए तो कुछ ऐसा लगने लगा। तुम गए तो कुछ ऐसे लगने लगा। जैसे चुभ रही हो तन्हाईयाँ। चिक रही हो धड़कने। रो रही हो किस्मत। जल रही हो हस्ति। महसूस होने लगा। तुम गए तो कुछ ऐसा लगने लगा। तुम गए तो कुछ ऐसा लगने लगा। साये में तुम्हारी तस्वीर हो जैसे। धड़कनो में तुम्हारे स्वर हो जैसे। साँसों में तुम्हारी महक हो जैसे। दिल पर तुम्हारा नाम हो जैसे। महसूस होने लगा। तुम गए तो कुछ ऐसा लगने लगा। तुम गए तो कुछ ऐसा लगने लगा। सुरज ने जैसे रौशनी खो दी हो। वक़्त ने जैसे रफ़्तार खो दी हो..! गुलशन ने बहार..! और कायनात ने रौनक खो दी हो! महसूस होने लगा। तुम गए तो कुछ ऐसा लगने लगा। तुम गए तो कुछ ऐसा लगने लगा। जैसे तुम बिन चल न पाउँगा। जैसे तुम बिन बह न पाउँगा। तुम बिन जिंदगी सह न पाउँगा। तूम बिन कभी जीत न पाउँगा। महसूस होने लगा। तुम गए तो कुछ ऐसा लगने लगा। Written by- बिलगेसाहब [Dedicated to ambadas patare only]
हवा का झोंका था शायद या राहों का मुसाफ़िर मिला मुझे अजनबी बनकर आँखों की रोशनी बनकर गया दिल को सहलाकर था शायद महमान मेरा कुछ दिन गुजारकर प्यार का पौधा लगाकर मुहर दिल पे छोड़ गया इंतजार आँखों मे एहसास सांसों में ख़ुमारी जिंदगी में छोड़ गया रौशन महताब,जिंदा आफ़ताब शब का सितारा था।नाज़-ए-दिल। महकता एहसास था। वो शख्श जो पता नही मेरा कौन था। सहरे में महकता गुल-ए-गुलाब था जैसे बारिश में जलता चिराग हर बात में होती सदाकत उसकी तूफानों से न बुझती शमा उसकी जिसकी खुशबू थी दिल मे इल्म था ज़िन्दगी मे तस्वीर थी आँखों में नशा था रगों में उस शख्श से कैसे न जाने कैसे मेरा दिल अंजान था जिसके लिए जो जहान था वो शख्श जो पता नही मेरा कौन था। लकीरों में होता तो मुट्ठी में बंद कर लेता उसे साँसों में होता तो दिल मे छुपा लेता उसे मैं मरीज़ वो हक़ीम था मैं पतझड़ वो बारिश.. मैं गुलशन वो महक था मैं दरिया वो साहिल.. मुक्कदर मेरा साया रो रहा है वक़्त रुक कर गह रहा है, पंछियों का गीत घटाओं की चीख़ धड़कनो का हुजुम भी अब कह रहा है रोक उसे जो सफेद साया था करीब-ए-रूह जो पराया था दिल का हमसाया था वो शख्स जो पता नही मेरा कौन था। चेहरे पे रौनक थी सितारों सी वजूद में महक थी गुलिस्ताँ सी दिल से एहसास था जुड़ा उसका धड़कनों पे लिखा था नाम उसका खुद को सँवारा था जिसे देख के वो जो आईना था सच्ची दोस्ती का हवाना था वो शख्श जो पता नही मेरा कौन था। यूँ हुआ है आज वो रुख़सत मुझ से जैसे होता है टुटता तारा आसमाँ से तितली जैसे गुलशन से जान जैसे जिस्म से तन्हाईयाँ चुभ रही है उसके बिना जिंदगी सितम है उसके बिना फ़िजूल है कामियाबी उसके बिना हर जीत मेरी हार है उसके बिना मेरा चैन मेरा सुकून है वो धड़कनों की धुन है वो न रह पाउँगा मैं उसके बिन जिंदा जिंदगी में जिसके बिन वो जो फ़रिश्ता था प्रेम का गुलदस्ताँ था वो शख्श जो पता नही मेरा कौन था। किरदार में उसके न झाँक सका मैं आँखों मे उसके न डूब सका मैं न किसी राह से न जरिये से दिल मे उतर सका न कोई बसेरा दिल मे बना सका मैं। न जाने क्यों उसे जान न सका अफसोस कि मैं समझ न सका वो जो नीर की तरह साफ शहद की तरह मीठा था न किसी पहेली सा कहानी की तरह सरल था। प्यार का सौदागर दोस्ती का ग्राहक था। रिश्तों का खुदा वालिद-ए-तहज़ीब था। वो हस्ति जो रिश्तों का ताज़ नूर मानो पूनम का चाँद उसकी आँखें जैसे मोती सोच जैसे शरीअत वो जो सच्चा साथी था जगमग कोहिनूर सा अनमोल 'अमोल' था वो शक्श जो पता नही मेरा कौन था। WRITTEN BY- बिलगेसाहब -dedicated to ambadas patare only
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