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कृशकाय सुन्दरी को देखकर, चित्त हो गया मुग्ध। रूप यौवन के माधुर्य से, विसर गयी सुध बुध।।
कविप्रदीपस्य जीवनी कवि: प्रदीप: भारतीयकवि: सड्गीतकारश्चासीत् य: ‘ ए मेरे वतन के लोगो’ इति गीतस्य कारणात् प्रसिद्ध: अस्ति।द्विषष्ठ्यधिकनवदशशततमे 1962 ख्रिस्ताब्दे भारतचीनयो: मध्ये युद्धम् अभवत् तस्मिन् युद्धे बलिदानिभ्य: सैनिकेभ्य: श्रद्धाञ्जलयां एतत् गीतं लिखितम्। लता मङ्गेश्करेण गायितं एतत् गीतं त्रिषष्ठ्यधिकनवदशशततमें 1963 ख्रिस्ताब्दें दिल्ली नगरस्य रामलीला क्षेत्रे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलालनेहरू इत्यस्य सान्निध्ये प्रत्यक्षं प्रसारितम् अभवत्। गीतं श्रुत्वा जवाहरलालनेहरू इत्यस्य नेत्रयोः अश्रुपातः अभवत् । कविः प्रदीपः अस्य गीतस्य राजस्वं युद्धविधवाकोषे सञ्चितं कर्तुं आह्वानं कृतवान् । मुम्बईउच्चन्यायालयेन पञ्चविंशतिः 25 अगस्त 2005 पञ्चाधिकद्विसहस्त्रतमे सङ्गीतकम्पनी एचएमवी इत्येषः एतस्मिन् कोषे अग्रिमरूपेण भारतीयाः दशलक्षाणां रुप्यकाणां निक्षेपं कर्तुं आदिष्टः। कविः प्रदीपस्य मूलनाम रामचन्द्र नारायण द्विवेदी इत्यासीत्। तस्य जन्म मध्यप्रदेशराज्यस्य उज्जयिन्यां बदरनगर इत्याख्ये स्थाने अभवत्। चत्वारिशदधिकनवदशशततमे १९४०वर्षे प्रदर्शितेन बन्धन-चलच्चित्रेण कविः प्रदीपः प्रसिद्धः अभवत् । यद्यपि त्रिचत्वारिशदधिकनवदशशततमस्य 1943 वर्षस्य स्वर्णजयन्तीसाफल्य(hit)चलचित्रं किस्मत इत्यस्य दूर हटो यह दुनिया वालो हिन्दुस्तान हमारा है इति गीतेन देशभक्त्याः गीतस्य प्रणीतेषु अमरः कृतः। गीतस्य अभिप्रायेण कुद्धः तत्कालीनः आङ्गलसर्वकारः तस्य निगृहीतुं आदिष्टवान्। एतेन परिहाराय कविप्रदीपस्य भूमिगतं गन्तव्यम् आसीत् । अर्थ:- कवि प्रदीप भारतीय कवि एवं गीतकार थे जो देशभक्ति गीत ऐ मेरे वतन के लोगों की रचना के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान शहीद हुए सैनिकों की श्रद्धांजलि में ये गीत लिखा था। लता मंगेशकर द्वारा गाए इस गीत का तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में 26 जनवरी 1963 को दिल्ली के रामलीला मैदान में सीधा प्रसारण किया गया। गीत सुनकर जवाहरलाल नेहरू के आंख भर आए थे। कवि प्रदीप ने इस गीत का राजस्व युद्ध विधवा कोष में जमा करने की अपील की। मुंबई उच्च न्यायालय ने 25 अगस्त 2005 को संगीत कंपनी एचएमवी को इस कोष में अग्रिम रूप से भारतीय रुपया10 लाख जमा करने का आदेश दिया। कवि प्रदीप का मूल नाम 'रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी' था। उनका जन्म मध्य प्रदेश प्रांत के उज्जैन में बदनगर नामक स्थान मे हुआ। कवि प्रदीप की पहचान 1940 में रिलीज हुई फिल्म बंधन से बनी। हालांकि 1943 की स्वर्ण जयंती हिट फिल्म किस्मत के गीत "दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है" ने उन्हें देशभक्ति गीत के रचनाकारों में अमर कर दिया। गीत के अर्थ से क्रोधित तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने उनकी गिरफ्तारी के आदेश दिए। इससे बचने के लिए कवि प्रदीप को भूमिगत होना पड़ा
धर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ। यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत् क्वचित् अन्वय- भरतर्षभ धर्मे अर्थे कामे च मोक्षे विषये यत् इह अस्ति तत् अन्यत्र अस्ति। यत् इह नास्ति तत् क्वचित नास्ति।। अर्थः- हे भरतर्षभ धर्म अर्थ काम और मोक्ष के विषय मे जो यहां है वह दूसरे स्थान पर मिल जाएगा। किन्तु जो यहाँ नही है वह कही नही मिलेगा। - मैंने अन्वय किया।
अधुना संस्कृतसप्ताहः प्रचलति। संस्कृतस्य वर्धापनम् अस्माकं कर्तव्यम् अस्ति। संस्कृतभाषा सर्वासु भाषाणां जननी वर्तते। संस्कृतं देवभाषा अस्ति। संस्कृतं अस्माकं राष्ट्रस्य प्रमुख्यभाषा अस्ति। संस्कृतसप्ताहस्य दिनेषु संस्कृतस्य अभ्यासः अस्माभिः करणीयः। - अभी संस्कृत सप्ताह चल रहा है संस्कृत को बढ़ाना हमारा कर्तव्य है। संस्कृत भाषा सभी भाषाओं की जननी है। संस्कृत देवभाषा है। संस्कृत हमारे राष्ट्र की प्रमुख भाषा है। संस्कृतसप्ताह के दिनों में संस्कृत का अभ्यास हमे करना चाहिये।
[3/26, 09:58] कुणाल सक्सेना🦁🦁: https://vishvasyavrutantam.com/?p=19244 [3/26, 09:58] कुणाल सक्सेना🦁🦁: मेरा लेख गुजरात के संस्कृत के अखबार विश्वस्य वृतांतः मे छप गया -Kunal Saxena
अद्य स्वामी विवेकानन्दस्य जनिदिनम् अस्ति। अद्यतनं दिनं वयं राष्ट्रीय युवा दिवसस्य रुपे मन्यामहे। अद्य आभारतं सूर्यनमस्कारस्य आयोजनं भवति जयतु विवेकानंद: अर्थ- आज स्वामी विवेकानंद का जन्मदिवस है आज के दिन को हम राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाते है। आज सम्पूर्ण भारत मे सूर्य नमस्कार का आयोजन होता है। जय विवेकानंद।
हकुना मटाटा उक्तिः अद्वितीया। हकुना मटाटा प्रतिपले आनंदम्। तु चलाम चिन्तामुक्तं वयं मोदामहे। चिंतामुक्तं दर्शनमिदम्। -Kunal Saxena
एकस्मिन् अरण्ये कश्चिद् सिंहः बसति स्म। एकदा तेन उद्घोषितः यत् एकैक कृत्वा अहं सर्वान् पशून् खादितास्मि। अथ शशकं सिंहस्य भोजनं भवितव्यस्य कालः आगतः। शशकेन मार्गे एकः कूपः दृष्टः। तम् कूपं दृष्टवा शशकं एका युक्तिः चिन्तितवान् अतः किञ्चित् कालान्तरं शशकः सिंहस्य गुहा आगतवान्। सिंह: अवदत्- एतावती चिरात् किमर्थं आगतवान्। शशकः अवदत्- महोदय! अहम् अपरः सिंहः दृष्टवान्। येन केन प्रकरेण अहं स्वकीय प्राणं तव कृते रक्षित्वा आगतवान्। सिंहेन अपरः सिंहस्य अधिकृत्य ज्ञात्वा कुद्धः जातः। सिंहः अवदत्- सः सिहः कुत्रः अस्ति? शशकः सिंहं कुपस्य समीपे आनीतवान्। सिंहेन स्वीकीयस्य प्रतिबिंबं कुपे दृष्टः ततः कुपे कुर्दित्वा दिवङ्गतः जातः। अर्थः- एक जंगल मे कोई शेर रहता था। एक बार उसने घोषणा की मैं एक एक करकर सभी पशुओ को खाऊँगा। अब खरगोश को सिह का भोजन होने का समय आया। खरगोश ने मार्ग में एक कुआ देखा। इस कुए को देखकर उसे एक युक्ति सोची। इसलिये कुछ समय के बाद वह सिंह की गुफा में आया। शेर बोला- इतनी देरी से क्यो आये। खरगोश बोला- महोदय मैंने दूसरा शेर देखा। जैसे तैसे मैं अपने प्राण को तुम्हारे लिये रक्षित कर आया। सिहः दूसरे सिह के बारे में जानकर क्रोधित हुआ। शेर बोला- वह सिंह कहां है? खरगोश शेर को कुए के पास लाया। शेर ने स्वयं के प्रतिबिम्ब को कुए में देखा फिर कुए में कूदकर दिवङ्गत हुआ।
शोले इत्यस्य चलचित्रस्य संवादः शोले फिल्म के डायलॉग कुत्ते मैं तेरा खून पी जाऊँगा। शुनक! अहं तव रक्तं पास्यामि। बसंती इन कुत्तो के सामने मत नाचना। बसन्ति! अस्य शुनकस्य समक्षः नृत्यं मा कुरु। -Kunal Saxena
अहं न तु कवि परं हे सुन्दरि i यदारभ्य मया दृष्टः त्वं कविता बोधिता। हिंदी अर्थ- मैं कवि तो नहीं परंतु हे सुंदरी जबसे मैंने तुम्हें देखा कविता आ गई। गाना- मैं शायर तो नहीं मगर हे हसी जबसे देखा मैंने तुझको मुझको शायरी आ गई। -Kunal Saxena
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