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ghazal: subject : LOVE मुझे जब कभी कोई पैग़ाम लिखना बस इक इल्तिजा है कि बेनाम लिखना खुदा इन लकीरों में लिक्खे न लिक्खे हथेली पे पर तुम मेरा नाम लिखना ये तुमने लिखा है तुम्हें भूल जाऊं सज़ा कैसी दी है ये इल्ज़ाम लिखना सुना है तुम्हारी वफ़ा बिक रही है ये सच है अगर तो मुझे दाम लिखना कभी याद आये जो 'गुलशन' हमारी मुलाक़ात की तुम यही शाम लिखना गुलशनमदान
विषय: सामाजिक बदले जब आसार अचानक बदल गए सब यार अचानक जब भी फूलों से मिलता हूँ चुभ जाते हैं खार अचानक बिना बुलाये मेहमानों से आये दुःख हर बार अचानक गौतम बुद्ध ने सच की खातिर छोड़ दिया घर बार अचानक हँसते गाते घर में 'गुलशन' खिंच गयी इक दीवार अचानक गुलशन मदान
अपनी मजबूरियां मत बताना मुझे तेरा सच भी लगे अब बहाना मुझे नाम भुला हूँ अपना मगर याद है तूने इक दिन कहा था दीवाना मुझे भूल जाऊं तुम्हे तुमने कह तो दिया कैसे भूलूँ मगर यह बताना मुझे जिंदगी तेरे नखरे उठाये बहुत एक दिन आ के तू भी मनाना मुझे राह में आप उस दिन मुझे मिल गए सब बताने लगे इक फ़साना मुझे गुलशन मदान
याद, तन्हाई और ग़म शायद बन गए मेरे हमकदम शायद तेरी मजबूरियां तो वाजिब थीं मेरा ही था नसीब कम शायद साफ कुछ भी नज़र नहीं आता आँख रहती है मेरी नम शायद लौट कर वो कभी नहीं आया तोड़ दी उसने हर कसम शायद जा रहे हो तो जान लो इतना फिर मिलेंगे न तुमको हम शायद गुलशन मदान
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