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मैं खुशियां बार कर बैठा हूं, हां सब कुछ हारकर बैठा हूं,मेरी जद्दोजहद बस खुद से है, मैं सफलता के शिकार पर बैठा हूं। -Shrikar Dixit
बर्बाद दुनिया को भी आबाद सोचता है,हर शख़्स अपनी मोहब्बत को चांद सोचता है। -Shrikar Dixit
मोहब्बत तबाही की गवाही देती है,हर सकूं को छीन कर हर खुशी से रिहाई देती है,दर्द रहता है राहत मगर क्यूं लगता है,ना जीने देती है ये ना जिंदगी से विदाई देती है। -Shrikar Dixit
शिकायत तुमसे क्या करें,दर्द को हमने ही गले लगाया था,जिंदगी दूर खड़ी देख रही थी मुझको,मौत के पास मैं ख़ुद ही चलके आया था। -Shrikar Dixit
लोग कहते हैं चाय से मोहब्बत क्यूं, क्यूंकि ये बचपन से ही वफादार रही है,और जब दिमाग खराब हो तो सुकून देने का काम करती है। -Shrikar Dixit
बड़ा महंगा हो चुका है इश्क़,प्यार की कीमत पर बिकता नहीं है,और इतना सस्ता हो चुका है कि पैसों से कोई भी खरीद सकता है। -Shrikar Dixit
बचाता रहा जिस नज़र को हर नज़र से मैं,वो नज़र फिर मुझे ही नज़रअंदाज़ करने लगी। -Shrikar Dixit
सोचता था कि आखिर एक शख़्स कैसे बदलता है,उसने एहसास दिया देखो ऐसे बदलता है,लोग लिबास बदलते होंगे पुराने होने पे,वो शख्स यार कुछ खास बदलता है। -Shrikar Dixit
कि ऐसे बदलेगी मेरी तू नज़र देखेगा,तुझे खोने के बाद तू मेरा सब्र देखेगा,मैं जलकर खाक हो जाऊंगा मगर झुकूंगा नहीं,मेरी सादगी देखी है तूने अब तू मेरी अकड़ देखेगा। -Shrikar Dixit
चंद लफ्ज़ों में सिमट जाती है जिंदगी,सारी दुनियां की कहानियां लिखी रह जाती हैं,हादसे इस क़दर उजाड़ते हैं घरों की रौनकों को,सारी दौलत धरी की धरी रह जाती है। -Shrikar Dixit
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