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बेअसर हर इनायत, बेअसर हर बंदगी, क्यों है इतनी बेरुखी, ऐ! ज़िन्दगी, हर मोड़ पर गिला, हर मोड़ पर शिकवा, किस खता की ये सजा है, ऐ ज़िन्दगी, बस कर अब लेना इम्तिहाँ मेरी, टूट गया हूँ, रहम कर ऐ! ज़िन्दगी थक गया हूँ सफर करते करते, सुकूँ का एक पल तो मयस्सर कर ऐ! ज़िन्दगी बहुत किया तुझसे प्यार ऐ ज़िन्दगी मगर बेवफाई तेरी रग रग में है ऐ ! ज़िन्दगी उल्फ़त के बदले मिले बस ज़ुल्मो सितम, क्या खूब सितमगर है तू, ऐ ज़िन्दगी, साथ तेरे चलने की कीमत गर बेजारी ही है, तो अब बस! तेरा साथ मैं छोड़ रहा हूँ, ऐ! ज़िन्दगी...
मुख़्तसर सी मुलाक़ात!!
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टूट के रह गए हम उस गुलाब तक पहुंचने में काँच के जैसे जो छूने को हाथ बढ़ाया, कहा काँटो ने, "ऐसे कैसे", रात भी आमादा थी दिन पर हावी होने को, शामों ने कहा जरा ठहरो ! "ऐसे कैसे" कोशिश तो लाख की दरिया पार करने की, गुस्ताख़ गहराईयों ने कहा पर "ऐसे कैसे" मिलनी थी मंजिल यूँही, हुनर खूब था मुझमें पर हाथो की लकीरों ने फरमाया, "ऐसे कैसे" वक़्त मुसल्सल बदलता है, मेरा भी बदलेगा, दिवार पर लगी घड़ी रुक गयी, बोली, "ऐसे कैसे" हारे आशिकों के फेहरिस्त में नाम जोड़ने में लगे थे वो, दो घूँट लगा हमने भी कहा रुको! हार जाए हम "ऐसे कैसे"....
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