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Bharat Singh Rawat Kavi

Bharat Singh Rawat Kavi

@bharatsinghrawatkavi3379


ग़ज़ल

खुशी का है परचम तिरंगा हमारा।
किसी से नहीं कम तिरंगा हमारा।।
कोई आंख सरहद पे जब भी उठी है।
दिखाता रहा दम तिरंगा हमारा ।।
भले दोस्तों का ये है दोस्त लेकिन।
दे दुश्मन को मातम तिरंगा हमारा।।
दिखाता है भारत का ये भाईचारा।
सभी के लिए सम, तिरंगा हमारा।।
कभी राम ने अपने हाथों में थामा।
कभी थामे अकरम तिरंगा हमारा।।
सिपाही का ताबूत देखा तो लिपटा।
समेटे हुए ग़म तिरंगा हमारा।‌
सुहाना वो पल आज आया है रावत।
कि फहराएं अब हम तिरंगा हमारा।।
रचनाकार
भरत सिंह रावत भोपाल
7999473420
9993685955

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छंद
लाल को विशाल राष्ट्र हेतु दान करतीं हैं।
पन्नाओं से भरा हुआ मेरा हिंदुस्तान है।।
जब जगराती छाती अपनी पिलाती यहां।
शेखर सी पैदा होती आन बान शान है।।
रुण्ड नरमुंड का प्रचंड अम्बार लगे।
लक्ष्मीबाई जब खींचे अपनी कृपान है।
विद्यावती जैसी मांऐं भारत में मिलतीं हैं।
इसीलिए दुनिया में देश ये महान है।।
रचनाकार
भरत सिंह रावत भोपाल
7999473420
9993685955

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मुक्तक

न पूजा और ना हमको इबादत याद आती है।
नहीं कहता हूं कि कोई शिकायत याद आती है।।
बहा कर जो लहू अपना बिना गर्दन के लौटे हैं।
मुझे हर वक्त वीरों की शहादत याद आती है।।

रचनाकार
भरत सिंह रावत भोपाल
7999473420
9993685955

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कलम में रोशनाई की जगह पर खून भरता हूं।
खतों में अब भी अपने प्रेम का मजमूंन भरता हूं।।
कभी जब रोटियां मिलतीं नहीं हैं पेट भरने को।
बड़ा मजबूर होकर ताक में कानून भरता हूं।।
रचनाकार
भरत सिंह रावत भोपाल
7999473420
9993685955

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मुक्तक मिटा कर दिल की नफरत हम मोहब्बत जोड़ देते हैं। कोई हो जाए नतमस्तक उसे हम छोड़ देते हैं।। वतन की आबरू से हम नहीं करते हैं समझौता। वतन पर आंख उठती है उसे हम फोड़ देते हैं।। रचनाकार भरत सिंह रावत भोपाल 7999473420 9993685955

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पांव धरा पर पड़ते ही आचरण शुद्ध हो जाते हैं।
ये वो पावन माटी है षठ तक प्रबुद्ध हो जातें हैं।।
भीख मांगने वालों को हम राज पाट दे देते हैं।
हक की खातिर इंच इंच के लिए युद्ध हो जाते हैं।।
रचनाकार
भरत सिंह रावत भोपाल
7999473420
9993685955

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नहीं रांझा बना कोई लिपट कर हीर से फौजी।
हमेशा खेलता है तोप या शमशीर से फौजी।
बने चट्टान घबराए न कोई पीर से फौजी।
उदय जब पुण्य होते हैं बने तकदीर से फौजी।।
भरत सिंह रावत भोपाल
7999473420
9993685955

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यहां रह कर जिन्हें लगती है ये संताप की धरती।
जो वन्देमातरम कहने में समझें पाप की धरती।।
उन्हें आदेश दे दो तुम चले जाएं वो भारत से।
उन्हें कहदो नहीं है ये तुम्हारे बाप की धरती।।
भरत सिंह रावत भोपाल
7999473420
9993685955

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जहां पर भावनाओं के भरे मकरंद पैदा हों।
जहां पर वेदनाओं से ग़ज़ल और छंद पैदा हों।।
जहां पर वेदवाणी की ऋचाएं गूंजती हर पल।
ये मेरा देश है जिसमें विवेकानंद पैदा हों।।
रचनाकार
भरत सिंह रावत भोपाल
7999473420
9993685955

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एक शेर
सरहद पे जो चट्टान के मानिंद खड़े हैं,
एक पल भी अपनी आंखें मीचे नहीं रहे।
करता है फख्र उनपे अपना मादरे वतन ,
जो सिर कटवाने में भी पीछे नहीं रहे।।
भरत सिंह रावत भोपाल
7999473420
9993685955

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