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हम ही क्यों रहें पहले जैसे? तुम रह गए क्या ठीक वैसे! ..त्रिपाठी..
उजाले की खूबी ये है कि जो भी इसके दायरे में आया उसकी चमक बढ़ी है। अंधेरे के साथ ठीक इसका उल्टा है! 🌼 त्रिपाठी 🌼
🥀
Let them ‘bark' now,wait for your time to ‘roar' . __त्रिपाठी 💮
अमां!ओ“रिहायशी" शख़्स.. इक मज़े की बात बताता हूं! दरअसल जितनी ज़मीन है तुम्हारी.. उतने में आधा मकान है हमारा! 💙..त्रिपाठी..💙
हृदय रूपी “गंगोत्री" से निकली ‘भावनात्मक धाराएं’तथा नेत्र रुपी “यमुनोत्री" से निकली ‘अश्रु—धाराएं’ जब कपोलों के “पठार" से होकर धरा पर गिरतीं हैं, तब अदृश्य‘सरस्वती की धाराओं’से उनका “संगम" होता है। इस प्रक्रिया का कारण "दुःख" एवं परिणाम “प्रतिकूलता" है। ..त्रिपाठी..
मुद्दतों बाद महबूब से मुलाक़ात हुई थी, वक्त की साज़िश तो देखो... कम्बख़त इतनी जल्दी गुज़र गया!! 🌻 .. रॉयल..
शीर्षक:- "लोकतांत्रिक दाना" अपेक्षा से अलग भी होते हैं कुछ पंछी, केवल अपनी ही दिनचर्या मै मस्त-मगन। सुबह होते ही निकले,घोसले से बाहर हुए, शाम ढलने तलक घोसले के अंदर हो लिए। उनका सबसे ज़रूरी काम शायद ये कि, घोसले में बच्चों के लिए दाना मिल जाए, कम से कम तब तक,जब तक कि बच्चा, कल को उन दानों को खूद भी न ले आए। जिसके लिए ज़रूरी है उनको सीखाना , उड़ना,चुनना,चुगना,छीनना,झपटना आदि। कुछ सीख लेते हैं ये सब जीवन की कलाएं, कुछ सीख लेते हैं,कुछ नहीं सीख पाते। लेकिन "दाना" सबको लाना ही होता है, चुन के,चुग के,छीन के, झपट के, जैसे भी हो, और ये सब लगातार चलता ही रहता है। दरअसल ये भी हिस्से हैं उस विचारधारा के जिसे सभ्य लोग "लोकतंत्र" कहते हैं। छिनना,नोचना,झपटना,चुगना,चुनना ये सब लगातार चलता रहता है, क्योंकि "दाना" तो 'सब' को लाना होता है! ..रॉयल..
वाइज़!! तेरी दुआओं में असर हो तो मस्जिद को हिलाके देख। नहीं तो दो घूंट पी और मस्जिद को हिलता देख।। "मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां" उर्फ "ग़ालिब" #birthanniversary
जज़्बातों के तह तक जाने की ज़रूरत न थी, तुम इंकार कर देते, मै मनसूबे समझ लेता! ..रॉयल..
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