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Arti Singh Ekta

Arti Singh Ekta

@arya04.


वो चार दिन

nice
https://www.matrubharti.com/book/11229/

*बुढ़ा घर*
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मकड़ी के जाले भर,
झिंगुरो की किर्राहट,
कालिख पूती दीवार।
करता बंजर बन इतजार......
ठुंठ तुलसी का बीरवा,
चुल्हे की बूझी राख,
प्यासा सूखा मटका,
करता बंजर बन इंतजार .....
झुलती चरमट खटिया,
डीबरी तेल का दिया,
टूटी -फूटी छपरिया,
करता बंजर बन इंतजार .....
सबको खुशियाँ दी,
नववधुओ का स्वागत किया,
रूनझून,किलकारियां,
सूनने के लिए,
करता बंजर बन इंतजार .....
सावन आया,भादो आया,
पर सुनी रही दलान,
खत्म हो गई आस उसकी,
जर्जर हो गई मचान,
उंची अटार अब उल्लू बैठ,
करता बंजर बन इंतजार ।

आरती सिंह

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छोटी सी पगडंडी खुशियों की

very nice story.
http://matrubharti.com/book/2199/

अधूरा वजूद

nice story
http://matrubharti.com/book/9280/

हाइकू"1)"नभ है प्यासा,ना हुई रिमझीम,चातक रोये।2)आकाश ताके,जलबीन वो प्यासी,फटती धरा।3) निरव आँखे,धरा उदास आज,मेघ बरसो।

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धोबन

heart touching
http://matrubharti.com/book/9034/

"शहरी मोगरा" शहरी मोगरा,छोटे गमले में लगा,बालकँनी में अकेला, हवा की ठंडक, महसूस कर रहा। तीन कली खिली,कभी हँसती कभी मूस्कूराती , धूल की मोटी परत पत्तो को करती भारी।, इंतजार करती,पानी की कुछ बूंद मिटा दे उसकी तृष्णा।रात की ठंडी चांदनी में आती ,भीनी-भीनी खूशबू एहसास कराती..आखिर है तो "मोगरे का फूल"

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""मौसम"।वसन्त को कर अलविदा,महका ये आसमां,ग्रीष्म हुआ ऋतुराज,तपिश को बाहों में ले,......।संतरी हुआ गुलमोहर,अंबिया मस्त महकी, बौरो की झीनी छाँव में,मतवारी कोयल कुहकी,......।चीड़ ,बबूल इतराए,जंगल की सूखी जमी पे,भंवरा हुआ दीवाना,महुएं की गमक से,.....।छटाक् बूंद बरखा के,नभ हुआ मस्ताना,कानन हुआ मदहोश,मिट्टी के सोंधे पन से .......।

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यू ना ख़फा हुआ करो,हमें डर लगता है.....उन तन्हाईयों से, जो अक्सर हम पे हंसती है।