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बेटी है जीवन की भोर, वो जीवन का राग बेटी बरखा की बूँद, अंधेरे में वो आफताब। - Archana Singh
मानव होकर मानवता को करते शर्मसार, हैवानियत दिखती तुम सब की आंखों में, चेहरे पर मुखौटे पहने घूमते हैं दरिंदे सरेआम। कब तक छुपकर बैठे बेटी-बहन घरों में, क्या पढ़े-लिखे नहीं, डाक्टर-इंजीनियर बने नहीं ? "बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ" स्लोगन है मात्र, खौफ में रहती ज़िंदगी सदा उसकी। समय-असमय सड़कों गली-मुहल्लों में, बहु-बेटियों की आबुरू लूटते हो खुलेआम। 'ये कैसी तृष्णा है बेटे'-पूछती है जननी बार-बार। अपनी किस मानसिकता का परिचय हो देते ? क्यों माँ की कोख को कलंकित हो करते? दुर्गा-सरस्वती समान बेटी-बहन को रौंध, कैसा यह पुरूषार्थ तुम हो जताते। कैसी दरिंदगी है चरित्र में तुम्हारे, बेटों के परवरिश पर उठते हैं कई सवाल खड़े। मैं अभागिन तेरी आँखों पर जाने कब चढ़ गई, वो रात काली डराती,खुद की परछाई से भी अब डरती। खौफ में है जिंदगी हमारी गुहार सुन, हे गिरधारी! वरना हमें ही बनना होगा शत्रु नाशिनी, दुर्गा या काली। * अर्चना सिंह जया,गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश - Archana Singh
#Alone अकेले की कसक दर्द न बन जाए, सुकून को तलाश उसमें ठहर कर। वक्त ने दिया है मौका तुम्हें, खुद को तराशकर बढ़ जीवन पथ पर। * अर्चना सिंह जया,गाजियाबाद उत्तर प्रदेश
#Alone अकेला होना उस अकेलेपन से कहीं अच्छा, गर भीड़ में भी अकेला ही महसूस हो। सुख के साथी तो होते सभी हैं यहाँ, दुःख-दर्द में अकेले गर रह जाते जो। अकेले रह हम खुद से परिचय कर पाते, वर्ना आपाधापी में स्वयं के अस्तित्व को तलाशते। बहुत कुछ पाने की हसरत लिए, वर्तमान को खुलकर नहीं जी पाते। * अर्चना सिंह जया,गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
हर व्यक्ति के अंतर्मन में चलता है नित्य अंतर्द्वन्द्व, स्वयं से नित जूझता है उसका निर्मल-कोमल मन। अस्मिता को लेकर चल रहा, नारी का नित संघर्ष आत्मसम्मान की रक्षा के खातिर कर रही द्वंद्व। * अर्चना सिंह जया -Archana Singh
प्रेम का रंग जन-मन को भाए, धरा-गगन को भी फागुन मास सुहाए। कान्हा अपने रंग में रंग दे मोहे, लाल-पीला सब रंग फीका पड़ जाए। --अर्चना सिंह जया
मुझ में अपार प्रेमभाव व भक्ति भर दे माँ! मन का तिमिर दूर कर, नव प्रभात भर दे। कर सकूँ परोपकार सत्कर्म-कर्तव्य हे माँ! ईर्ष्या, द्वेष,लालच,मोह पाश से मुक्त कर दे। * अर्चना सिंह जया
दहेज कोई प्रथा नहीं, बेटी का शोषण करते। दस्तूर की आड़ में कुरीतियों को जन्म देते। सीता सबको चाहिए, राम बनने की चाहत नहीं तरीके बदल गए, धन के लोभी अब भी हैं कईं। -Archana Singh
त्याग कर ईर्ष्या,द्वेष,घृणा,लोभ-लालच,मन में प्रीत का कर अनुष्ठान। करुणा,दया,ममता-प्रेम, परोपकार का, कर स्वयं के हिय में प्रतिष्ठान। -Archana Singh
सुप्रभात 🙏🌻 ✍️✍️✍️✍️ तमाशागर खुद के आँसू छुपाकर हंसता, दिखाकर तमाशा हर दिल पुलकित करता। पर तमाशाई हर्षित हो घर का रुख करता, मन की पीड़ा उसकी कहाँ कोई समझता। अर्चना सिंह जया,गाजियाबाद
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