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बस अब बहुत हुआ। क्या हुआ क्यूं हुआ कहा हुआ। कब हुआ ! बस अब बहुत हुआ। अरे आदमी अब आदमी के जान का प्यासा। ऐसा वीभत्स दृश्य देख होती निराशा। वन उपवन उजाड़ डाले सब। पशु पक्षी को मार खा ले सब। तुम्हारे इन भावुक हृदय से अब नहीं है कोई आशा। तुम अकेले तो नहीं हो और भी सृष्टि रची है। जरा सोचो तो की क्या कुछ मान मर्यादा बची है ? कुछ सुकून की सांस ले लूं पर किधर ! आंख की पुतली सरकती है जिधर सिर्फ और सिर्फ असंख्य अट्टालिकाएं है उधर। लाख लिख दो फ़ाइलों में लाख वादे भी बनाओ। बाद में दफ्तर के दफ्ती में दबा देना इन्हें। और कह देना प्रजा से काम सब चौकस , सही है। लेप देना हर जगह को मंदिरों और मस्जिदों में। लोग भड़केंगे कड़केंगे लड़ेंगे मरेंगे जलाएंगे स्वयं की साख को। देश भड़केगा कटेगा फिर बंटेगा आधी रात को। ये जिन्हें तुम नेता कहते फिर रहे हो। ये तो अपनी महफिलों में मस्त होंगे। तुम तलाशोगे जलाशय तुम्हीं खोदोगे कुआं। आनंद त्रिपाठी।
करदा उसदा इंतजार मै चेनाब च बै के। दरिया उत्ते पानी बहदा मीठे मीठे सुपने बुन दा कल्ले तल्ले बै के। ओ मैनू उस पार वि दिस दी रब दी सौं सच कहदे। लोकी कहंदे मैंनु रांझा। जे एक बार वो मैनू मिल जू। कट लांगा मै अक्खी जिन्दड़ी ऐ वे रांझा बनके। - Anand Tripathi
मेरे अपने सपने हैं जो। क्या सच में वो मेरे होंगे ! या फिर मुझको धोखा देंगे। या फिर कागज़ के जैसे वो बेहद कोरे होंगे! - Anand Tripathi
तेरी भी होली। मेरी भी होली। आ, तू मेरा होले। ले , मै तेरी होली। यादों के रंगों में। खुशियों उमंगों में। आ भूलकर डूब जाए हमजोली। जैसे कि खा ली हो ,भंग की गोली। तेरी भी होली मेरी भी ............. जब है सुना कि तू आयेगा न, मैंने तो ख़ुद की ही चोली भिगोली। आना तू, कान्हा तू ,कर न बहाना तू। तू जो न आया तो , फिर होली तो हो ली। - Anand Tripathi
तुम्हे कैसे बताए अब की सारे रंग मेरी दुनिया से उड़े ऐसे जैसे पतझड़ आते ही उड़ जाते सारे पत्ते, पतंग। श्याम तुम्हें क्या खबर पड़ी मेरे कोमल चित अंगों की। मेरे सूखे सूखे कपोल, कुम्हलाये जैसे रोगी। बरसाना कुछ दूर नहीं। जो तुम चाहो,तो आ जाओ। मुझको भी सखी बना जाओ। इस फागुन के हैं रंग अनेक। लाल गुलाबी पीले सफ़ेद। पर इन रंगों की क्या ही मियाद ! कब कौन कहां मुझे छोड़ चले ? दाग लगे कि लगे न लगे ! ऐसा रंग लगादो अबकी। छूटे न जनम जन्म तक। गलबहियां में डाल लो अपने। श्यामल कर मेरा अंग अंग सब। शस्य श्यामला मैं हो जाऊं, भूल जाऊं मैं रंग भंग सब। आनंद त्रिपाठी
वक्त कि इक ही इल्तिज़ा है बस। निकल सको तो चलो। सिसक सिसक के चलो। पर चलो बढ़ चलो। राह में , रात में, कोई रोके अगर मत रुको। मत सुनो। बस चलो , और चलो। बढ़ चलो। आनंद - Anand Tripathi
मुद्दतों बाद कोई घर आया आया तो क्या खैर वो आते ही घर कर गया मुझमें। अब तो वो रगो में खून जैसा है। वो हुक्म कर दे हम हुक्म तामील करें। रिश्ता कुछ ऐसा है। 🫰 आनंद। - Anand Tripathi
मुजाहिद बने रहो अपनी जमात में। उनको भ्रम रहे, की मर चुके हो तुम। काबिल नहीं है वो तुमको समझ सके। साहिल को क्या है इल्म! की फिर से उठे हो तुम। आनंद त्रिपाठी - Anand Tripathi
कैसे तुम्हे मनाऊं मैं ? किन फूलों को हार बनाऊं किनको तुम्हें चढ़ाऊं मैं। लाल गुलाबी नीले पीले। क्या क्या चुन के लाऊं मैं ? इन फूलों की क्या ही बिसात ? तेरे नयन, कपोल, नक्ष के आगे फीका है पारिजात। तुम स्वयं कुमुदिनी ,चंपा हो। ये पुष्प तेरे श्रृंगार प्रिए। कैसा गुलाब, कैसी जूही। तुम हो बसंत की भाल प्रिए। ये रोज़ पोज परपोज दिवस। ये एक दिन का है खेल महज़। एक टेडी एक गुलाब देकर। सातों जन्मों का ख्वाब देकर। ये पा लेंगे क्या प्रेम सहज ? प्रेम सरल है सहज नहीं। प्रेम मृदुल है गरल नहीं। प्रेम सुधा है समर नहीं। आनंद त्रिपाठी
मैं मना लूंगा तुम्हे। अरे मैं जानता हूं रंग तेरा ढंग तेरा। तुम नहीं हो क्रोध करते , आहे भरते। ये तो बस एक वक्त है, हालात है। तुम जो डुबोग कभी तो झट उठा लूंगा तुम्हे। मैं मना लूंगा ....... कुछ भी हो जाए न सहना। चुप न रहना, बात करना मुझसे कहना , जो भी कहना। यूं घुटन में मत न रहना। जो भी होगी बात उस बात से मैं निकालूंगा तुम्हे। मैं मना लूंगा.......... मुझको पंचिंग बैग समझो। और मारो खूब धो दो। सारा का सारा निचोड़ो। अपने मन की ताखों से मुझ पे फेंको कील कांटे। उफ्फ न निकलेगी कभी आवाज़ आयेगी नहीं। स्वागत सा समझूंगा उसे फिर भी मना लूंगा तुम्हे। आनंद त्रिपाठी
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