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कलम ही वीणा है अब तुम्हारी। है कागज़ तुम्हारी ज़ुबानी प्रिए। लिख दो अक्षर भी एक नेत्र को मूंद के। वो भी बन जाएगी एक निशानी प्रिए। हाथ तेरे हैं जैसे कि शब्द ग़रल शब्द झरते है बनती कहानी प्रिए। - Anand Tripathi
दिल की दहलीज पर यूं आके जाना ! अबकी आना तो आ ही जाना। सोचता हूं बहुत मायूस होकर। बहुत मायूस हूँ बस सोचकर ये। किताबें इश्क़ है मेरा। किताबें बेवफ़ा निकली। मैं भी तो आवारा हो गया। एक के बाद दूसरी पढ़ता हूं। मैने फिर कौन सी वफ़ा कर दी। 🤭 - Anand Tripathi
मैं कुछ सोच रहा हूँ। किसी दिन मन विद्रोही होगा ? किसी दिन खौलेगा खून मेरा ! न जाने उस दिन हवा कैसी होगी ? बादलों में उफान होगा ? रात लोगों की नींद में भी इन्तकाम होगा। ख़्वाब देखूंगा जीतने के ? मात दूंगा कभी उन्हें मैं ? लाल होगा कभी बदन ये। कभी हवाएं भी बढ़ चलेंगी ? थामने को ये हाथ मेरा ? जो सूख कर के हुए हैं बंजर वो क्रोध मेरा वो प्राण मेरा ? क्या लड़ सकूंगा चक्रव्यूह में ? क्या बात होगी नगर नगर में ? बहुत है दुविधा, है तन में थिरकन है मन मगन, बस अलग सा है मन। निढाल अर्जुन, तुम्हारा केशव। समय नहीं है। कुछ तो बताओ। न तुम हो कहते न मै हूँ करता। कहां मैं जाऊं करूं मैं क्या अब करो उपाय करो उपाय। हे केशवाय हे माधवाय। आनंद त्रिपाठी
दुनिया के पेचों खम से अंजान नहीं है। इंसान की कारीगरी में इंसान नहीं हैं। आम राम काम सबने घेर लिया अब। अब वक्त बहुत हो मगर आराम नहीं है। आजाद परिंदे थे इंसान के रहते। आज़ाद हुए जब से। आबाद नहीं हैं। - Anand Tripathi
कोई कहां से आया जाएगा वो कहां। ये भी है तय नहीं । लेकिन ज़माने भर से है वो रूबरू इस कदर। जैसे कही भी कुछ भी तो भय नहीं। हालात खस्ता हाल हुए तो भी ग़म कहा हारे और बदनाम हुए तो भी सितम कहां। - Anand Tripathi
हम ही पैग़ाम भेजते है। कैसे हो बतलाओ न कैसे हैं मिजाज़ आपके थोड़ा खुल के आओ न। हमसे क्या कुछ खता हुई ? जो यू ही रूठ कर बैठ गई। कुछ तुम कहना कुछ हम लिख दें पर पहले तुम आ जाओ न। - Anand Tripathi
न भुलाओ न भूलो बाते याद रखो कुछ ऐसी बातें चंद लम्हे बटोर लो कुछ यू जिनमें गुम जाए पुरानी बातें। तुम तो राही हो जमींदार नहीं। चलो यहां से तुम तो खरीददार नहीं। - Anand Tripathi
क्या बताएं तुम क्या हो मेरे लिए ? जैसे अंधेरे में जलता दिया हो मेरे लिए। - Anand Tripathi
दिले रुखसत तेरे रुखसार से अब तेरे बाहों के ज़ाहिल प्यार से अब। तेरे दामन से दाग ए हुस्न का एक दाग लेकर। चले हम महफिल ए ख़ाकसार से अब। - Anand Tripathi
रफ्ता रफ्ता ही सही दिल से मेरे वो गया। सबसे पहले रात आई और मैं फिर खो गया। राह देखी,जान क्षिणकी ,और सिजदा भी किया। दिल को तोड़ा और निचोड़ा गम जो निकला उसको मैं सारा का सारा पी गया। Anand - Anand Tripathi
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