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प्रिए, तुमसे पूछती हूं एक प्रश्न। ख़ुद हो मनाते जश्न छीनकर मेरा जश्न ? प्रिए तुमसे...... मैं थी भोली कुछ न बोली। तुम तो गहरे ज्ञान के समकक्ष बैठे मस्त। तुमने भी आवाज न दी, न ही पुकारा। चाहती तो मांग क्या मैं छीन लेती प्रेम ? पर भला क्या ही भला होगा कभी जो लगाऊं ऐसे नेम। तुम सजन तुमको भी अब क्या ही कहूं? मन चीखता है और " " जब मैं शांत हो रहती हूं मौन? किस कदर ये प्रेम एक तरफा हुआ कैसे खेल जिंदगी ने ये जुआ। जिसको समझूं वो है मेरा , उसने ही खोदा कुआं। तुम तो कह कर चल दिए। सॉरी, क्षमा, मूव ऑन कर लो। अब भला किस ओर जाऊं खटखटाऊं द्वार किसके। कहा रो दु सिर पटक के। कौन मेरी आह समझे। कौन मेरी बाह गह ले। तुम सजन वाकई में कमजोर निकले। इससे अच्छा ये ही होता कोई मेरे प्राण हर ले। इस कदर मसरूफ थी मै इश्क़ में। क्या पड़ी थी मुझको ऐसे रिस्क में। सोचती थी कि। बदल जाओगे तुम मेरे वास्ते। खड़े होगे सांस बनकर लड़ भी लोगे रात से। क्या पता था तुम इशारा पाते ही अनल से और पवन से तेज निकलोगे। एक इशारे भर से तुम मूव ऑन कर लोगे। बहुत सारी बात बाकी है व्यथा ये आत्मा की। तुम न समझोगे कदाचित तुम तो जो ठहरे नमाज़ी। तुमने तौला प्रेम को एक कौम से एक धर्म से। हा ! तुम वही तो हो न जो पहचानते हो मर्म से। जाओ जाकर देख लो कोई अलग संसार अपना। स्वप्न देखो और सजा लेना पृथक एक प्यार अपना। जो हो तुम सी धार्मिक और हो कट्टर नमाजी। जो तुम्हारी बात माने हामी भर ले हो और राज़ी।
सुना है उस गली में कोई आया है। नहीं ऐसे ही बस खयाल आ गया उसका। उसकी आदत सी हो गई अब तो। हकीम कहते भी है न कर मलाल उसका। हर गली कूचे में दरख़्त में परछाई उसकी। चेहरा उसका , हरकत उसकी , लहजा उसका। - Anand Tripathi
मुझसे एक वादा करो की अब कोई वादा न करो। चलो फिर वादा ही सही पर फिर मुकरने का इरादा न करो। हम भी इंसान हमको भी ज़ख्म होता है। मुख्लफत करो मगर हद से जियादा न करो। - Anand Tripathi
हिंदी मेरा आधार है। हिंदी मेरा अधिकार है। हिंदी मेरे व्यवहार में। हिंदी मेरा सुविचार है। हिंदी का होना गर्व है। हिंदी ही मेरा सर्व है। हिंदी है मेरी संगिनी। हिंदी मेरी अर्धांगिनी। हिंदी मेरा कर्तव्य है। हिंदी का होना सभ्य है। हिंदी ही मेरा अंग है। उसमें सहज एक ढंग है। सुधा वो साहित्य की। वो सात सुर सतरंग है। हिंदी मेरा सम्मान है। हिंदी है मेरा परिचय। हिंदी मेरा अभिमान है। आनंद त्रिपाठी।
वो इश्क को खेल समझती थी। हमे खेल खेल में इश्क हुआ। वो इश्क को काम समझती थी। हमे काम काम में इश्क हुआ। वो इश्क को नशा बताती थी। हमे नशे नशे में इश्क हुआ। वो इश्क़ किसी से करती थी। इस बात का हमको इल्म नहीं। कहने से मुझसे डरती थी। उसने बोला डर इश्क है क्या ? हम बोल पड़े खो देने का। उसने बोला क्या कहते हो ? खोने के डर में इश्क कहां ? हमने बोला ओ सुन न ज़रा मैं गर न रहूं तेरे संग तो। या फिर मैं मर ही जाऊं! इतना कहने में देर हुई। मेरे लब पर उसकी उंगली अपने अंतरमन को फेर गई। वो बोली अब न कहना ये। तुम बिन फीका है ये गहना। तुम बिन सुनी बगिया मेरी। तुम बिन रूठी दुनिया मेरी। तुम हो तो सुकोमल पुष्प हैं ये। तुम हो तो मेरा जीवन है। तुम ही तो हो संसार मेरा। नित नूतन निर्झर प्यार मेरा। इतना तो उसका कहना था। मुझको धारा में बहना था। उसको शायद वो शब्द लगें। मुझको तो पूर्ण प्रकाश मिला। मैं मुरझाया था कोई फूल अब खिला तो सूरजमुखी बना। सूरज से भी तेज और प्रियतम के रंग में था मैं सना। Anand tripathi
उनको देखूं फिर खयाल करूं ! अब फ़क़त क्या ही मलाल करू ? बरस जाने से " इश्क हल्का तो नहीं होगा ! अब है तो है। इसमें क्या बवाल करूं ? - Anand Tripathi
रण में गर हो तो वार करो। रक्त रक्त तलवार करो। ये युद्ध महा भीषण होगा। विपदा , परिहास सतत होगा। पर तुम किंचित घबराना न। तुम अपना ध्यान डिगाना न। याद रखो हल्दी घाटी और राणा प्रताप और चेतक को। जो तिल तिल कर के कटा मिटा पर डिगा नहीं वो एक पल को। जाओ जाकर विजई होओ। विजय पताका लहरा दो। केसरिया की लाज रखो। और माटी को ये बतला दो। है रक्त प्राण मज्जा जब तक। तब तक ये वार सतत होगा। तब तब एक आंधी डोलेगी। तब तब ये अम्बर बोलेगा। हम जीत चुके हैं पहले से। तुम अपनी हार स्वीकार करो। रण में गर हो तो वार करो। Anand tripathi
हमने अंजाम को इल्ज़ाम नहीं होने दिया। हमने उस सख्श को सरेआम नहीं होने दिया। ये जानकर ,नादान है, बेखबर,बेहोश भी। फिर भी किरदार को बदनाम नहीं होने दिया। - Anand Tripathi
मेरी आदत बिगड़ गई है क्या ? या कोई और बात है ? अब ये सख्श मुझे इतना अज़ीज़ क्यूं हैे मेरी पहली मुलाकात है क्या ?? - Anand Tripathi
एक दफ़े की बात भी कुछ यू हुई। एक दफा एक रोज मैं एक दौर से गुजरा था यूं। - Anand Tripathi
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