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उनको देखूं फिर खयाल करूं ! अब फ़क़त क्या ही मलाल करू ? बरस जाने से " इश्क हल्का तो नहीं होगा ! अब है तो है। इसमें क्या बवाल करूं ? - Anand Tripathi
रण में गर हो तो वार करो। रक्त रक्त तलवार करो। ये युद्ध महा भीषण होगा। विपदा , परिहास सतत होगा। पर तुम किंचित घबराना न। तुम अपना ध्यान डिगाना न। याद रखो हल्दी घाटी और राणा प्रताप और चेतक को। जो तिल तिल कर के कटा मिटा पर डिगा नहीं वो एक पल को। जाओ जाकर विजई होओ। विजय पताका लहरा दो। केसरिया की लाज रखो। और माटी को ये बतला दो। है रक्त प्राण मज्जा जब तक। तब तक ये वार सतत होगा। तब तब एक आंधी डोलेगी। तब तब ये अम्बर बोलेगा। हम जीत चुके हैं पहले से। तुम अपनी हार स्वीकार करो। रण में गर हो तो वार करो। Anand tripathi
हमने अंजाम को इल्ज़ाम नहीं होने दिया। हमने उस सख्श को सरेआम नहीं होने दिया। ये जानकर ,नादान है, बेखबर,बेहोश भी। फिर भी किरदार को बदनाम नहीं होने दिया। - Anand Tripathi
मेरी आदत बिगड़ गई है क्या ? या कोई और बात है ? अब ये सख्श मुझे इतना अज़ीज़ क्यूं हैे मेरी पहली मुलाकात है क्या ?? - Anand Tripathi
एक दफ़े की बात भी कुछ यू हुई। एक दफा एक रोज मैं एक दौर से गुजरा था यूं। - Anand Tripathi
कलम ही वीणा है अब तुम्हारी। है कागज़ तुम्हारी ज़ुबानी प्रिए। लिख दो अक्षर भी एक नेत्र को मूंद के। वो भी बन जाएगी एक निशानी प्रिए। हाथ तेरे हैं जैसे कि शब्द ग़रल शब्द झरते है बनती कहानी प्रिए। - Anand Tripathi
दिल की दहलीज पर यूं आके जाना ! अबकी आना तो आ ही जाना। सोचता हूं बहुत मायूस होकर। बहुत मायूस हूँ बस सोचकर ये। किताबें इश्क़ है मेरा। किताबें बेवफ़ा निकली। मैं भी तो आवारा हो गया। एक के बाद दूसरी पढ़ता हूं। मैने फिर कौन सी वफ़ा कर दी। 🤭 - Anand Tripathi
मैं कुछ सोच रहा हूँ। किसी दिन मन विद्रोही होगा ? किसी दिन खौलेगा खून मेरा ! न जाने उस दिन हवा कैसी होगी ? बादलों में उफान होगा ? रात लोगों की नींद में भी इन्तकाम होगा। ख़्वाब देखूंगा जीतने के ? मात दूंगा कभी उन्हें मैं ? लाल होगा कभी बदन ये। कभी हवाएं भी बढ़ चलेंगी ? थामने को ये हाथ मेरा ? जो सूख कर के हुए हैं बंजर वो क्रोध मेरा वो प्राण मेरा ? क्या लड़ सकूंगा चक्रव्यूह में ? क्या बात होगी नगर नगर में ? बहुत है दुविधा, है तन में थिरकन है मन मगन, बस अलग सा है मन। निढाल अर्जुन, तुम्हारा केशव। समय नहीं है। कुछ तो बताओ। न तुम हो कहते न मै हूँ करता। कहां मैं जाऊं करूं मैं क्या अब करो उपाय करो उपाय। हे केशवाय हे माधवाय। आनंद त्रिपाठी
दुनिया के पेचों खम से अंजान नहीं है। इंसान की कारीगरी में इंसान नहीं हैं। आम राम काम सबने घेर लिया अब। अब वक्त बहुत हो मगर आराम नहीं है। आजाद परिंदे थे इंसान के रहते। आज़ाद हुए जब से। आबाद नहीं हैं। - Anand Tripathi
कोई कहां से आया जाएगा वो कहां। ये भी है तय नहीं । लेकिन ज़माने भर से है वो रूबरू इस कदर। जैसे कही भी कुछ भी तो भय नहीं। हालात खस्ता हाल हुए तो भी ग़म कहा हारे और बदनाम हुए तो भी सितम कहां। - Anand Tripathi
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