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तेरी भी होली। मेरी भी होली। आ, तू मेरा होले। ले , मै तेरी होली। यादों के रंगों में। खुशियों उमंगों में। आ भूलकर डूब जाए हमजोली। जैसे कि खा ली हो ,भंग की गोली। तेरी भी होली मेरी भी ............. जब है सुना कि तू आयेगा न, मैंने तो ख़ुद की ही चोली भिगोली। आना तू, कान्हा तू ,कर न बहाना तू। तू जो न आया तो , फिर होली तो हो ली। - Anand Tripathi
तुम्हे कैसे बताए अब की सारे रंग मेरी दुनिया से उड़े ऐसे जैसे पतझड़ आते ही उड़ जाते सारे पत्ते, पतंग। श्याम तुम्हें क्या खबर पड़ी मेरे कोमल चित अंगों की। मेरे सूखे सूखे कपोल, कुम्हलाये जैसे रोगी। बरसाना कुछ दूर नहीं। जो तुम चाहो,तो आ जाओ। मुझको भी सखी बना जाओ। इस फागुन के हैं रंग अनेक। लाल गुलाबी पीले सफ़ेद। पर इन रंगों की क्या ही मियाद ! कब कौन कहां मुझे छोड़ चले ? दाग लगे कि लगे न लगे ! ऐसा रंग लगादो अबकी। छूटे न जनम जन्म तक। गलबहियां में डाल लो अपने। श्यामल कर मेरा अंग अंग सब। शस्य श्यामला मैं हो जाऊं, भूल जाऊं मैं रंग भंग सब। आनंद त्रिपाठी
वक्त कि इक ही इल्तिज़ा है बस। निकल सको तो चलो। सिसक सिसक के चलो। पर चलो बढ़ चलो। राह में , रात में, कोई रोके अगर मत रुको। मत सुनो। बस चलो , और चलो। बढ़ चलो। आनंद - Anand Tripathi
मुद्दतों बाद कोई घर आया आया तो क्या खैर वो आते ही घर कर गया मुझमें। अब तो वो रगो में खून जैसा है। वो हुक्म कर दे हम हुक्म तामील करें। रिश्ता कुछ ऐसा है। 🫰 आनंद। - Anand Tripathi
मुजाहिद बने रहो अपनी जमात में। उनको भ्रम रहे, की मर चुके हो तुम। काबिल नहीं है वो तुमको समझ सके। साहिल को क्या है इल्म! की फिर से उठे हो तुम। आनंद त्रिपाठी - Anand Tripathi
कैसे तुम्हे मनाऊं मैं ? किन फूलों को हार बनाऊं किनको तुम्हें चढ़ाऊं मैं। लाल गुलाबी नीले पीले। क्या क्या चुन के लाऊं मैं ? इन फूलों की क्या ही बिसात ? तेरे नयन, कपोल, नक्ष के आगे फीका है पारिजात। तुम स्वयं कुमुदिनी ,चंपा हो। ये पुष्प तेरे श्रृंगार प्रिए। कैसा गुलाब, कैसी जूही। तुम हो बसंत की भाल प्रिए। ये रोज़ पोज परपोज दिवस। ये एक दिन का है खेल महज़। एक टेडी एक गुलाब देकर। सातों जन्मों का ख्वाब देकर। ये पा लेंगे क्या प्रेम सहज ? प्रेम सरल है सहज नहीं। प्रेम मृदुल है गरल नहीं। प्रेम सुधा है समर नहीं। आनंद त्रिपाठी
मैं मना लूंगा तुम्हे। अरे मैं जानता हूं रंग तेरा ढंग तेरा। तुम नहीं हो क्रोध करते , आहे भरते। ये तो बस एक वक्त है, हालात है। तुम जो डुबोग कभी तो झट उठा लूंगा तुम्हे। मैं मना लूंगा ....... कुछ भी हो जाए न सहना। चुप न रहना, बात करना मुझसे कहना , जो भी कहना। यूं घुटन में मत न रहना। जो भी होगी बात उस बात से मैं निकालूंगा तुम्हे। मैं मना लूंगा.......... मुझको पंचिंग बैग समझो। और मारो खूब धो दो। सारा का सारा निचोड़ो। अपने मन की ताखों से मुझ पे फेंको कील कांटे। उफ्फ न निकलेगी कभी आवाज़ आयेगी नहीं। स्वागत सा समझूंगा उसे फिर भी मना लूंगा तुम्हे। आनंद त्रिपाठी
प्रिए, तुमसे पूछती हूं एक प्रश्न। ख़ुद हो मनाते जश्न छीनकर मेरा जश्न ? प्रिए तुमसे...... मैं थी भोली कुछ न बोली। तुम तो गहरे ज्ञान के समकक्ष बैठे मस्त। तुमने भी आवाज न दी, न ही पुकारा। चाहती तो मांग क्या मैं छीन लेती प्रेम ? पर भला क्या ही भला होगा कभी जो लगाऊं ऐसे नेम। तुम सजन तुमको भी अब क्या ही कहूं? मन चीखता है और " " जब मैं शांत हो रहती हूं मौन? किस कदर ये प्रेम एक तरफा हुआ कैसे खेल जिंदगी ने ये जुआ। जिसको समझूं वो है मेरा , उसने ही खोदा कुआं। तुम तो कह कर चल दिए। सॉरी, क्षमा, मूव ऑन कर लो। अब भला किस ओर जाऊं खटखटाऊं द्वार किसके। कहा रो दु सिर पटक के। कौन मेरी आह समझे। कौन मेरी बाह गह ले। तुम सजन वाकई में कमजोर निकले। इससे अच्छा ये ही होता कोई मेरे प्राण हर ले। इस कदर मसरूफ थी मै इश्क़ में। क्या पड़ी थी मुझको ऐसे रिस्क में। सोचती थी कि। बदल जाओगे तुम मेरे वास्ते। खड़े होगे सांस बनकर लड़ भी लोगे रात से। क्या पता था तुम इशारा पाते ही अनल से और पवन से तेज निकलोगे। एक इशारे भर से तुम मूव ऑन कर लोगे। बहुत सारी बात बाकी है व्यथा ये आत्मा की। तुम न समझोगे कदाचित तुम तो जो ठहरे नमाज़ी। तुमने तौला प्रेम को एक कौम से एक धर्म से। हा ! तुम वही तो हो न जो पहचानते हो मर्म से। जाओ जाकर देख लो कोई अलग संसार अपना। स्वप्न देखो और सजा लेना पृथक एक प्यार अपना। जो हो तुम सी धार्मिक और हो कट्टर नमाजी। जो तुम्हारी बात माने हामी भर ले हो और राज़ी।
सुना है उस गली में कोई आया है। नहीं ऐसे ही बस खयाल आ गया उसका। उसकी आदत सी हो गई अब तो। हकीम कहते भी है न कर मलाल उसका। हर गली कूचे में दरख़्त में परछाई उसकी। चेहरा उसका , हरकत उसकी , लहजा उसका। - Anand Tripathi
मुझसे एक वादा करो की अब कोई वादा न करो। चलो फिर वादा ही सही पर फिर मुकरने का इरादा न करो। हम भी इंसान हमको भी ज़ख्म होता है। मुख्लफत करो मगर हद से जियादा न करो। - Anand Tripathi
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