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"दोस्ती" पत्तों पर पानी की बूंदों का गिरना डगमगा कर..... ठहर जाना फिर धीरे से.... जमीं पर गिर जाना। भाप बन फिर से... पत्तों पर गिरना, डगमगाना.... ठहरना और जमीं पर गिर जाना। Happy friendship day
मुस्कुराती सी जिंदगी है ये होठों के पीछे क्यों छिपाती हो तुम। आधी आबादी होकर वैशाखी पर क्यों खड़ी रहती हो तुम। परिवार की बेड़ियां खुद के पैरों में ही क्यों बांधती हो तुम। मुस्कुराती सी जिंदगी है ये होठों के पीछे क्यों छिपाती हो तुम। .......................................... .......................................... इन कुछ सवालों के जवाब कभी खुद से ........…..... क्यों नहीं पूछती हो तुम। Happy women's day -amit sonu
दीपों का है ये त्यौहार उजाले के रंगो से भर ले मन के अंधियारे को रोशनी से जगमग कर ले। दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं। -amit sonu
बदलेगा अब वक़्त हमारा भी घड़ी अब हमने भी पहन रखी है -amit sonu
इश्क़ की तहज़ीब में दम क्यों घुटता है तुम्हारा वफ़ा के बदले वफ़ा की ही तो चाहत है हमारी -amit sonu
खुद की तलाश में इंसा क्यों नहीं उलझता आएना में दूसरो को ही क्यों है तलाशता। राह में कई मोड़ो से कारवां है गुजरता ये इंसा तू कहीं क्यों नहीं ठहरता। -amit sonu
यादों की पोटली को एक हल्की सी गांठ लगाना जिसे जब मन चाहे खोल लेना इस से भी मन ना भरे तो ...................... पोटली को खुला ही छोड़ देना उन रास्तों की तरह जो कभी खत्म नहीं होते......
बंद आंखों से क्यों जागते हो खुली आंखों से क्यों सोते हो भूखों की रोटी क्यों खाते हो बंद कमरों में क्यों दौड़ते हो जब इंसा हो तो शैंता क्यों बन जाते हो इश्क़ की दरिया में अकेले क्यों तैरते हो सपनों की दुनिया में इतना क्या सोचते हो चाभी है पास में तो घर क्यों नहीं लौटते हो आसमां की बारिश में क्यों नहीं भींगते हो जब इंसा हो तो शैंता क्यों बन जाते हो समस्या के समाधान में बाधा क्यों बनते हो उड़ती हुई पतंग से आग क्यों लगाते हो नदी के बीच में पतवार क्यों छीनते हो राहत के इस दौर में शोर क्यों करते हो जब इंसा हो तो शैंता क्यों बन जाते हो
अपनी हक़ीक़त को यूं मत झुठला ऐ मुसाफ़िर राह में निशान तेरे कदमों की ही होंगे।
दोस्ती विरल है बाज़ार में दोस्त सघन है। राह में कारवां है अकेले का मंजिल पर हमसफ़र सघन है। कांटों संग गुलाब विरल है हर डाल पर फूल सघन है।
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