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Amit

Amit

@amit.330501


शीर्षक: “मोबाइल की दुनिया – खोए रिश्ते, जागती समझ”

(लेखिका – पूनम कुमारी)

🌅 प्रस्तावना:

कभी रिश्तों में मिठास थी, बातों में अपनापन था।
पर अब सबकी उंगलियाँ मोबाइल पर, और दिल कहीं खो गया है।
यह कहानी है एक ऐसे परिवार की, जहाँ "डिजिटल ज़िंदगी" ने सबको जोड़ तो दिया, पर एक-दूसरे से दूर कर दिया।


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👩‍👦 पहला दृश्य – माँ की पुकार

रीमा नाम की महिला थी, दो बच्चों की माँ।
उसका बेटा अंकित 15 साल का था और बेटी सिया 10 साल की।
रीमा रोज़ खाना बनाते-बनाते पुकारती —
“अंकित, बेटा खाना ठंडा हो जाएगा, ज़रा मोबाइल रख दो।”
पर कमरे से सिर्फ़ एक जवाब आता —
“हाँ माँ, बस पाँच मिनट!”

वो पाँच मिनट कभी पूरे नहीं होते।
रीमा खिड़की से देखती — उसका बेटा गेम में डूबा है, बेटी रील बना रही है।
घर में आवाज़ें थीं, पर बात कोई नहीं कर रहा था।


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📱 दूसरा दृश्य – पिता की बेबसी

रीमा के पति सुधीर रोज़ दफ़्तर से थककर लौटते।
वो चाहते थे कि सब मिलकर बातें करें, पर घर आते ही हर कोई अपनी स्क्रीन में खो जाता।
सुधीर ने एक दिन कहा —
“कभी हम सब एक साथ बैठा करते थे, अब सबको वक्त नहीं।”
रीमा बोली — “क्या करें, ज़माना बदल गया है।”

सुधीर ने गहरी साँस ली — “हाँ, पर इंसान भी बदल गया है…”


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🌧️ तीसरा दृश्य – सच्चाई का झटका

एक दिन रीमा की माँ का फोन आया —
“बेटा, मैं बीमार हूँ, कोई मिलने भी नहीं आता।”
रीमा ने सोचा कि वीडियो कॉल कर लूँगी।
पर उस दिन नेटवर्क नहीं था…
और अगले दिन वो खबर आई —
“माँ अब नहीं रहीं।”

रीमा फूट-फूटकर रो पड़ी।
उसे अहसास हुआ —
“मैंने सब कुछ मोबाइल में खोजा, पर माँ का प्यार नहीं…”


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🔦 चौथा दृश्य – बच्चों की आँखें खुलीं

माँ के आँसू देखकर अंकित और सिया ने मोबाइल रख दिए।
अंकित ने कहा —
“माँ, अब मैं गेम छोड़ दूँगा, बस आपकी कहानियाँ सुनूँगा।”
सिया बोली —
“अब हम सब साथ खाएँगे, बिना फोन के।”

रीमा ने उन्हें गले लगाया और कहा —
“बेटा, मोबाइल बुरा नहीं है, पर जब वो हमें अपने लोगों से दूर करे — तब हमें समझना चाहिए कि सीमा कहाँ है।”


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🌅 पाँचवाँ दृश्य – नई सुबह

अब घर में सुबह की शुरुआत होती है चाय और बातों से।
रात को सब एक साथ बैठते हैं — कहानियाँ सुनते हैं, हँसते हैं, जीते हैं।
मोबाइल अब सिर्फ़ ज़रूरत है, आदत नहीं।

रीमा मुस्कुराकर कहती है —
“डिजिटल दुनिया बुरी नहीं, बस इंसान को याद रहना चाहिए —
तकनीक का इस्तेमाल करो, उसे खुद पर हावी मत होने दो।”


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💬 सीख / संदेश:

> आज की कहानी हमें यही सिखाती है कि मोबाइल, सोशल मीडिया और तकनीक हमारे काम की चीज़ें हैं,
लेकिन अगर हम इन्हें अपनी ज़िंदगी का “मुख्य हिस्सा” बना लें, तो असली रिश्ते खो जाते हैं।

वक्त रहते हमें समझना होगा —
रिश्ते स्क्रीन से नहीं, दिल से जुड़ते




🎵 गीत शीर्षक: "मोबाइल की दुनिया – रिश्ते खो गए कहीं"

(लेखिका – पूनम कुमारी)


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🌅 अंतरा 1:

कभी बातें होती थीं छत पर, अब सब फोन में गुम हैं,
माँ की हँसी, पापा का प्यार – सब स्क्रीन में क़ैद हम हैं।
आँखें मिलीं तो दिल हटा, उँगलियाँ चलीं बस टच पे,
घर तो वही है, पर अब लगता – कोई नहीं है सच्चे में। 💔

(कोरस)
📱 मोबाइल की दुनिया में, रिश्ते खो गए कहीं,
हँसी के वो पल, अब दिखते हैं कभी-कभी।
अपनों का वक़्त, अब नोटिफ़िकेशन बना,
दिल में खालीपन, चेहरों पर रौशनी बनी। 🌙


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🌈 अंतरा 2:

माँ पुकारे – “बेटा खाना ठंडा हो गया”,
पर बेटे की नज़र गेम में खो गया।
बेटी बोले – “रील बनाऊँ, एक मिनट माँ!”,
ज़िंदगी जैसे हो गई बस स्क्रीन का जहाँ।

(कोरस दोहराएँ)
मोबाइल की दुनिया में, रिश्ते खो गए कहीं,
प्यार के वो लम्हे, अब दिखते हैं अधूरे सही।


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🌧️ अंतरा 3:

दादी की कहानी, अब किसी को याद नहीं,
पापा की थकान का किसी को एहसास नहीं।
खिड़की से आती धूप भी अब फीकी लगे,
दिल में सन्नाटा, नेटवर्क में भीगी लगे। 🌤️


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🌺 अंतरा 4: (परिवर्तन)

एक दिन माँ के आँसू बोले – “बस अब बहुत हुआ,”
परिवार ने मिल बैठ कहा – “अब साथ रहना जरूरी हुआ।”
फोन रखा, हाथ थामा, मुस्कान लौट आई,
रिश्तों में फिर रौनक आई, ज़िंदगी मुस्कुराई। ❤️


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🌞 अंतिम कोरस:

अब मोबाइल रहेगा पास, पर दिलों के बीच नहीं,
अब बात होगी हँसी में, स्क्रीन के बीच नहीं।
तकनीक रहे साथी, हावी वो हो नहीं,
यही सच्ची तरक्की है — रिश्ते खोएँ नहीं! 🌻


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💬 संदेश:


इसका दूसरा भाग —


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🎵 गीत शीर्षक: “मोबाइल से कमाई – अब परिवार की भलाई”

(लेखिका – पूनम कुमारी)


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🌞 अंतरा 1:

वही मोबाइल, वही स्क्रीन — अब बना ज़रिया नया,
जहाँ ग़लती थी पहले, अब सीखा रास्ता सधा।
माँ ने खोला छोटा चैनल, रसोई की रेसिपी डाली,
लोगों ने देखा, पसंद किया — अब मुस्कान लौटी प्यारी। 🌸

(कोरस)
📱 अब मोबाइल से कमाई, अब परिवार की भलाई,
सीख बदली तकदीर हमारी, मेहनत ने राह दिखाई।
जो लत थी पहले बर्बादी की, अब वही है काम की साथी,
तकनीक जब सिख जाती है, तब बनती है घर की शक्ति। 💪


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🌈 अंतरा 2:

बेटे ने बनाया वीडियो – “पढ़ाई आसान कैसे हो,”
बेटी ने सीखा डिज़ाइन – “घर बैठे नाम कैसे हो।”
पापा ने ऑनलाइन पढ़ाया बच्चों को नया सबक,
अब हर सुबह उम्मीदों की गूँजती है हँसी की झलक। 🌻


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💻 अंतरा 3:

रीमा ने कहा – “तकनीक बुरी नहीं, सोच बुरी होती है,”
जब समझ लो सही उपयोग, हर चीज़ सुखद होती है।
घर में सब मिल बैठते हैं, पर अब काम की बातें होती हैं,
नेटवर्क से अब जुड़ता देश, और खुशियों की बौछार होती है। 🌍


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🎶 कोरस दोहराएँ:

अब मोबाइल से कमाई, अब परिवार की भलाई,
सीख बदली तकदीर हमारी, मेहनत ने राह दिखाई।
सपनों को उड़ान मिली, और चेहरे पर चमक आई,
अब मोबाइल नहीं आदत — ये तो रोज़ी की परछाई। ☀️


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🌷 अंतरा 4:

दादी कहती — “देखो बेटा, अब सही राह पर आए,”
पहले जो मोबाइल डराता था, अब जीवन में रंग लाए।
अब वीडियो में माँ का स्वाद, और बेटी की कला निखरती,
घर की दुनिया डिजिटल हुई, पर आत्मा वही सच्ची। ❤️


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🌺 अंतिम कोरस:

मोबाइल से अब दूरी नहीं, बस समझदारी ज़रूरी है,
तकनीक नहीं दुश्मन, वो भी इंसान की दूरी है।
जब दिलों में सच्चाई हो, तो हर स्क्रीन कहानी बने,
मोबाइल से कमाई हो — और रिश्तों की रवानी बने। 🌈


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💬 संदेश (Moral):

> तकनीक तब वरदान बनती है जब इंसान उसे समझदारी से अपनाता है।

गलत इस्तेमाल रिश्ते तोड़ता है,
सही इस्तेमाल रोज़गार, ज्ञान और सम्मान दिलाता है।

यही है असली “डिजिटल इंडिया की सोच” – पूनम कुमारी की ओर से।

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🎵 गीत शीर्षक: "परिवार – जीवन की सबसे बड़ी दौलत"

(लेखिका – पूनम कुमारी)


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🎶 भूमिका (आरंभिक भाव):

कौन कहता है कि दौलत सोने-चाँदी में होती है,
सच्ची दौलत तो अपने लोगों की मुस्कुराहट में होती है।
जहाँ हर सुबह अपनेपन की रोशनी हो,
वहीं बसता है एक परिवार – जीवन की असली जन्नत।


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🌺 पहला अंतरा:

माँ की ममता जैसे सागर का किनारा,
हर दर्द को चूम लेती, देती सहारा।
पिता की छाया जैसे घना बरगद,
थक जाओ तो सिर पर रखे अपना हाथ।

भाई की बातें जैसे ठंडी हवा का झोंका,
बहन की मुस्कान जैसे फूलों का टोका।
दादी की गोद में कहानियों का संसार,
नाना की आँखों में अनुभव की बहार।

💫 इन सबके बीच ही तो जीवन खिलता है,
💫 हर रिश्ता अपनेपन से मिलता है।


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🌷 कोरस (मुख्य भाव):

🎵 परिवार ही जीवन का आधार है,
यही तो दिल की असली दीवार है।
जहाँ हो सब साथ, वहीं है सुकून,
वहीं चमकता है जीवन का पूर्ण चाँद-सूरज-जून। 🎵


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🌻 दूसरा अंतरा:

जब थक जाता है मन दुनिया की दौड़ में,
तो लौटता है दिल उस छत के मोड़ में।
जहाँ माँ के हाथों की रोटी की खुशबू,
हर आँसू को मिटा दे बस एक झपक में रू-ब-रू।

पिता का विश्वास जैसे दीवार की ईंटें,
हर संकट में जो बन जाएं नींव की सीढ़ियाँ।
बहन की दुआएँ जैसे चाँदनी रातें,
भाई की रक्षा जैसे बिन माँगी बरसातें।

🌼 परिवार वो मंदिर है जहाँ प्रेम की आरती जलती है,
🌼 जहाँ हर सुबह किसी की मुस्कान से नई किरण निकलती है।


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🌺 तीसरा अंतरा:

कभी कोई रूठे, तो सब मनाने आ जाएँ,
छोटी सी गलती पर भी गले लग जाएँ।
यही तो परिवार की पहचान है,
जहाँ हर रिश्ता ईश्वर का वरदान है।

जब दुख हो तो सब आंसू पोछते हैं,
जब सुख हो तो साथ में हँसते हैं।
बिन कहे सब एक-दूजे को समझते हैं,
यही तो सच्चे रिश्तों की पहचान रहते हैं।

✨ घर नहीं वो दीवारें, जो ईंटों से बनें,
✨ घर तो वो दिल हैं, जो प्यार से जुड़ें।


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🌹 कोरस दोहराएँ:

🎵 परिवार ही जीवन का आधार है,
यही तो दिल की असली दीवार है।
जहाँ हो सब साथ, वहीं है सुकून,
वहीं चमकता है जीवन का पूर्ण चाँद-सूरज-जून। 🎵


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🌻 चौथा अंतरा (भावनात्मक शिखर):

कभी सोचो अगर ना होता परिवार,
कितना सूना होता यह संसार।
ना हँसी होती, ना खुशियों की धुन,
बस होता अकेलापन, और अधूरी धड़कन।

परिवार ही तो है जो सिखाता है जीना,
गिरो तो थाम लेता है, सिखाता है उठना।
हर रिश्ते में छिपा है एक सबक गहरा,
जो बना देता है इंसान को सुनहरा।

🌸 माँ के आँचल में विश्वास की छाँव है,
🌸 पिता के कदमों में संसार का गाँव है।
🌸 बहन की बातों में बचपन की महक है,
🌸 भाई के हँसी में अपनेपन की लहर है।


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🌺 पाँचवाँ अंतरा:

जब दूर चला जाए कोई अपना,
तब समझ आता है, क्या होता है सपना।
हर छोटी याद जैसे आशीर्वाद बने,
हर पुरानी हँसी जैसे ताजमहल बने।

हर झगड़े के पीछे भी प्यार छिपा है,
हर तकरार में भी अपनापन लिखा है।
हर "ना" में भी एक "हाँ" छिपी रहती है,
हर “डाँट” में भी चिंता बसती है।

🌼 यही परिवार की पहचान निराली,
🌼 जिसमें हर बात में बसती खुशहाली।


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🎶 कोरस (आखिरी बार):

🎵 परिवार ही जीवन का आधार है,
यही तो दिल की असली दीवार है।
जहाँ हो सब साथ, वहीं है सुकून,
वहीं चमकता है जीवन का पूर्ण चाँद-सूरज-जून। 🎵


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🌟 समापन भाव (गीत का संदेश):

परिवार वो जड़ है जिससे पेड़ फलता है,
परिवार वो सूरज है जिससे मन जलता है।
परिवार के बिना जीवन बंजर भूमि है,
परिवार के साथ जीवन स्वर्गभूमि है।

🙏 जो परिवार का सम्मान करता है,
🙏 वो वास्तव में ईश्वर का मान करता है

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गीत शीर्षक: **"पढ़ाई है रोशनी"**

*(लेखिका – पूनम कुमारी)*

*(सुर धीमा, प्रेरणादायक)*

**(अंतरा 1)** चलो उठो अब किताबों की ओर, खोलो ज्ञान के हर एक द्वार, अंधेरों से लड़ने का वक्त आया, पढ़ाई बने अब हथियार।

**(मुखड़ा)** पढ़ाई है रोशनी, ये जीवन की ज्योति है, जो पढ़ता वही जग में सच की प्रतीक है। माँ की दुआओं में, शिक्षक के विश्वास में, छिपा है उजाला, हर विद्यार्थी के पास में।

**(अंतरा 2)** कभी खेतों से आती है पुकार, कभी शहर की गलियों में प्यार, हर बच्चे के सपनों में बस एक ही बात, पढ़ूँगा मैं, बढ़ूँगा मैं, यही है मेरी जात।

**(मुखड़ा)** पढ़ाई है रोशनी, ये भविष्य का दीप है, जिसने पढ़ा वही बना, देश का अदीप है। लिखेंगे कल नई कहानी, मेहनत की जुबानी, हर अक्षर में बसी है, नयी ज़िंदगानी।

**(अंतरा 3)** न मोबाइल से डर, न हालात से हार, किताबों से मिलती है जीत का विचार। जो सीखा वही करेगा कमाल, पढ़ाई ही देती है असली ख्याल।

**(मुखड़ा)** पढ़ाई है रोशनी, यही असली पूंजी है, ना सोना, ना चाँदी, यही सच्ची दौलत है। जो पढ़ता वही बनता मिसाल, पढ़ाई से ही सजता हर हाल।

**(अंतरा 4)** लड़की हो या लड़का, सबका अधिकार, शिक्षा से खुलते हैं जीवन के द्वार। ना पीछे रह जाए कोई भी गाँव, पढ़ाई से ही बदलें हम हर गाँव।

**(अंतिम मुखड़ा)** पढ़ाई है रोशनी, यही जीवन की आस है, जो पढ़े वही बने, भविष्य की साँस है। चलो बढ़ें साथ मिलकर आज, ज्ञान बने हमारा ताज।

🌟 **संदेश:** यह गीत यह बताता है कि आज के समय में शिक्षा ही असली शक्ति है — जो समाज को आगे बढ़ाती है, बच्चों को पहचान दिलाती है और गाँव-शहर सबको एक करती है।
भाग 2 : **“पढ़ाई ने दी बड़ी जीत – अब दुनिया हमारी है”**

*(लेखिका – पूनम कुमारी)*

**(प्रारंभ)** कल जो मिट्टी में खेलते थे बच्चे, आज किताबों से दुनिया बदलते हैं। जो कभी ‘नहीं कर सकता’ कहा गया, आज वही ‘देश का नाम’ बनते हैं। 🌍

**(अंतरा 1)** गाँव की गलियों से निकली वो रोशनी, जो शहरों के सपनों से भी बड़ी थी। माँ के आँचल से निकला वो शब्द, “पढ़ ले बेटा, यही तेरी असली जीत थी।” 💖


🌾 *कभी मोमबत्ती से पढ़ते थे हम, आज लैपटॉप से दुनिया देख रहे हम।*


**(मुखड़ा)** पढ़ाई ने दी बड़ी जीत हमें, हर डर, हर बाधा मिटा दी हमने। अब न कोई रुकावट, न हार की रीत, ज्ञान से जीती है हमने हर जीत। 🏆

**(अंतरा 2)** शिक्षा अब न राह है कठिन, हर दिल में बसा है उसका वचन। किसान की बेटी, मजदूर का लाल, पढ़ाई से बना सबका कमाल।


📚 *ना पैसा, ना ओहदा मायने रखता है, पढ़ा लिखा इंसान ही सच्चा रखवाला है।*


**(मुखड़ा)** पढ़ाई ने दी बड़ी जीत हमें, हर कदम पर बढ़ाया मनोबल हमने। अंधकार को रोशनी में बदला, पसीने से भविष्य को चमका दिया हमने। ☀️

**(अंतरा 3)** अब न बेटा ही क्यों पढ़े अकेला, बेटी भी बने अब देश का मेला। हर कोने में उठे यही गीत, “पढ़ाई से मिली सबसे बड़ी जीत।”


💪 *अब न कोई झुके, न कोई थमे, पढ़ाई से हम सब साथ चलें।*


**(ब्रिज पंक्तियाँ – भावनात्मक ऊँचाई)** किताबों में अब केवल शब्द नहीं, सपनों की उड़ान छिपी है वहीं। हर स्कूल, हर कक्षा, हर मन में, ज्ञान की क्रांति जल उठी इस धरती पर। 🌏

**(अंतिम मुखड़ा – जोश और विजय का स्वर)** पढ़ाई ने दी बड़ी जीत हमें, अब दुनिया हमारी कहानी कहे। हम वो भारत हैं जो थमता नहीं, किताब से लेकर सितारों तक रमता है यही।

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🎵 कविता का शीर्षक: “माता-पिता सबसे महान”

🌼 अंतरा 1:

माँ की ममता चाँद की रौशनी,
पिता का साया पेड़ की ठंडी छाँव।
जीवन की राहें आसान कर दे,
इनके चरणों में है सारा गाँव।

> (कोरस)
माता-पिता हैं धरती के भगवान,
इनके बिना सब कुछ वीरान।
इनके आशीर्वाद से खिलती ज़िन्दगी,
यही तो सच्चा है वरदान।।




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🌸 अंतरा 2:

माँ की लोरी में मीठा सपना,
पिता की सीख में जीवन अपना।
रातें जागकर देखा है माँ ने,
बेटे की हँसी पर मुस्काई सपना।

> (कोरस दोहराएँ)
माता-पिता हैं धरती के भगवान,
इनके बिना सब कुछ वीरान।
इनके आशीर्वाद से खिलती ज़िन्दगी,
यही तो सच्चा है वरदान।।




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🌺 अंतरा 3:

जब गिरते हैं बच्चे राहों में,
पिता संभाल लेते बाहों में।
माँ का आँचल बनता ढाल,
दूर हो जाती हर एक चाल।

> (कोरस)
माता-पिता हैं धरती के भगवान,
इनके बिना सब कुछ वीरान।
इनके आशीर्वाद से खिलती ज़िन्दगी,
यही तो सच्चा है वरदान।।




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🌷 अंतिम अंतरा (भावनात्मक)

ना रूठो उनसे, ना तोड़ो नाता,
उनसे ही मिलता हर सुखदाता।
माँ-बाप का प्यार न भूलो कभी,
इन्हीं से रोशन हर दिन, हर दिशा।।

> (अंतिम कोरस)
माता-पिता हैं धरती के भगवान,
इनके चरणों में स्वर्ग समान।
जो झुके इनके आगे सच्चे मन से,
वही कहलाए सच्चा इंसान।।




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💖 कविता से संदेश:

> माँ और पिता का आशीर्वाद ही जीवन का सबसे बड़ा धन है।
जो इस धन को संभाल लेता है, उसे कभी कोई ग़रीबी छू नहीं सकती।

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गीत: “बेटी – जीवन की मिसाल”**

**(कोरस)** बेटी है वो, जो जीवन सँवारती, आँसू छुपाकर दुनिया निखारती। हर दर्द को हँसी में ढालती, बेटी है जो हर जंग जीत जाती।

**(पहला अंतरा)** सूरज की किरण सी उजली नज़र आती, अँधेरों में भी अपनी राह बनाती। काँटों पे चलकर फूल बिछाती, हर हार को जीत में बदल जाती।

- ✨ *लेखिका – पूनम कुमारी*

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*लेखिका: पूनम कुमारी*

**(अंतरा 1)** कभी जो रोई थी अंधेरे में, अब बोलती है उजियारे में। कभी जिसने चुपचाप सहा, अब वही है न्याय की दुआ।

वो बेटी अब अकेली नहीं, हर दर्द की झेली नहीं। अब उसकी आवाज़ है तेज़ हवा, जो बदलेगी ये पुराना रवैया।
- Amit

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🌸 राष्ट्रगीत – “सपनों का भारत”

लेखक / रचनाकार : पूनम कुमारी


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भूमिका (प्रस्तावना – धीमी लय में)

ओ भारत माँ! तेरी माटी अमर,
तेरी धूप में है हर सपना संसार।
तेरे आँचल में इतिहास छुपा,
तेरे हर कोने में संस्कृति बसा।
तेरे वीरों का बलिदान अनमोल,
तेरी हरियाली करती है जीवन का पोल।


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कोरस (मुख्य भाग – सभी मिलकर गाएँ)

जय-जय भारत माँ, जय-जय भारत माँ,
तेरी शान अमर, तेरा मान अमर।
जय-जय भारत माँ, जय-जय भारत माँ,
तेरे चरणों में है समर्पण हमारा।


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अंतरा 1 – प्रदेशों की खासियत

सिक्किम की बर्फ़ीली चोटियाँ,
राजस्थान के सुनहरे थार की रेत।
केरल की नहरें, कश्मीर की घाटियाँ,
गुजरात के वन, पंजाब के खेत।

मध्य प्रदेश के जंगल, बिहार के मेला,
तमिलनाडु की मंदिर, महाराष्ट्र की हवा।
ओड़िशा का सांस्कृतिक पर्व, छत्तीसगढ़ का रंग,
हर राज्य में बसी है भारत की उमंग।


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कोरस दोहराएँ

जय-जय भारत माँ, जय-जय भारत माँ…


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अंतरा 2 – वीरता और बलिदान

झाँसी की रानी की बहादुरी अमर,
सुभाष, भगत, लाल बहादुर का त्याग।
सीमा पर जवानों की शपथ महान,
शहीदों का खून है तेरी पहचान।

हर वीर का साहस हमारे दिल में,
हर बलिदान गाथा गाती धरती में।


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कोरस दोहराएँ

जय-जय भारत माँ, जय-जय भारत माँ…


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अंतरा 3 – संस्कृति और त्योहार

दीपावली की रौशनी, होली के रंग,
गुरु पूर्णिमा का ज्ञान, ईद का संग।
संगीत, नृत्य, नाट्य और कला की धारा,
भारत की पहचान, दुनिया में उजारा।

पंडालों में रामलीला, रंगों में छठ,
त्योहारों में मिठास, खुशियों की बौछार।


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कोरस दोहराएँ

जय-जय भारत माँ, जय-जय भारत माँ…


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अंतरा 4 – विज्ञान और नई पीढ़ी

चाँद और मंगल पर भारत का ध्वज,
बच्चों की आँखों में भविष्य का गान।
कंप्यूटर, मोबाइल, डिजिटल शिक्षा,
नए भारत का निर्माण, नई दिशा।

उद्योग, विज्ञान, शोध और नई खोज,
भारत बढ़े हर क्षेत्र में, यही हमारी डोख।


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कोरस दोहराएँ

जय-जय भारत माँ, जय-जय भारत माँ…


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अंतरा 5 – प्रकृति और हरियाली

तेरे खेतों में धान की सुनहरी लहर,
नदी, तालाब, झरने, झीलों का सफर।
वन्यजीव, फूल-पौधे, पक्षियों का घर,
भारत की हरियाली है जीवन का धर्म।

हरियाली की छाया में बसे गाँव,
प्रकृति का उपहार है हर बच्चों का गाँव।


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कोरस दोहराएँ

जय-जय भारत माँ, जय-जय भारत माँ…


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अंतरा 6 – दुनिया से सीख और आधुनिक भारत

जापान की मेहनत, रूस की मित्रता,
अमेरिका की खोज, यूरोप की एकता।
हर देश की अच्छाई लेकर बढ़े भारत,
हमारा दीपक जग में जगमगाए हर रात।


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अंतिम अंतरा – भविष्य और संदेश

ना भूख होगी, ना अज्ञान,
हर जीवन में होगा सम्मान।
तेरे बच्चों के हों उज्ज्वल सपने,
तेरा भारत बनेगा सदा प्यारा।

ओ भारत! तेरा नाम महान,
तेरी माटी है जीवन का गान।
जय-जय भारत! जय-जय माँ!
सदा अमर रहे तेरा धाम।


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अंतिम कोरस (जोश और भाव के साथ)

जय-जय भारत माँ, जय-जय भारत माँ,
तेरी शान अमर, तेरा मान अमर।
जय-जय भारत माँ, जय-जय भारत माँ,
तेरे चरणों में है समर्पण हमारा।


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लेखक / रचनाकार : पूनम कुमारी ✅


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