Quotes by ALOK SHARMA in Bitesapp read free

ALOK SHARMA

ALOK SHARMA Matrubharti Verified

@alok5star
(83)

बने अजनबी ऐसे दर-किनार कर दिया
दोबारा हाल न पूछा सीधे वार कर दिया

नाम न था किसी महकमे न अदालत में
लगाके इल्जाम उसने बेशुमार कर दिया

समझ न पाए साजिश, जाल ऐसा फेंका
अंदर से बिखरे बाहर से बीमार कर दिया

न छोड़ा बोलने लायक, बदनामी हुई जो
बचे हुए लफ़्ज़ों को भी लाचार कर दिया

तख्ता पलटा बदले हर बात से जो बोली
एक बात को बढाके दो से चार कर दिया

बदल गई ज़िदगी अचानक सब बिखरा
सोंचे न थे ख़्वाब ऐसा साकार कर दिया

-ALOK SHARMA

Read More

निःशब्द हूँ क्या लिख दूँ माँ ?
नदी लिखूँ या सागर लिख दूँ, धरती लिखूँ या अम्बर लिख दूँ
सब तो आगे हैं शून्य तुम्हारे, पास नही.. कोई शब्द हमारे !
निःशब्द हूँ क्या लिख दूँ माँ ?
गुरु लिखूँ या भगवन लिख दूँ , इत्र लिखूँ या उपवन लिख दूँ
न है दूजा जग में सिवा तुम्हारे, पास नही.कोई शब्द हमारे !
निःशब्द हूँ क्या लिख दूँ माँ ?
पूजा लिखूँ या भक्ति लिख दूँ , ब्रह्मा लिखूँ या शक्ति लिख दूँ
जन नही सकता सिवा तुम्हारे, पास नही . कोई शब्द हमारे !
निःशब्द हूँ क्या लिख दूँ माँ ?
माना कि ये लिखावट मुझसे है..
पर इस क़लम में ताक़त तुझसे है
स्वीकार करो मेरी ह्रदय भावना
अंतर्मन से निकली जो खुदसे है !
छोटा सा टुकड़ा हूँ तेरे ह्रदय का
और पाया तो ये जीवन तुझसे है
आदि का पता नही अनन्त प्रेम है तेरा माँ
हर शब्द तो है तुझसे, क्या शब्द लिखूँ माँ !

©आलोक शर्मा
#माँ #कविता #मातृ दिवस

Read More

आँखों के पर्दे नम हैं सूखने की चाह में
फूल मुरझाए तो बिछ गए कांटे राह में

ज़ीस्ते-रंग उड़ा लगे दुनिया बेरंग सी ये
भटक गए ठोकर से जीना है गुमराह में

फलक तक जाने का ख़्वाब टूट चुका
किनारे बहता हुआ पानी बना बराह में

बिखर गया रत्ती रत्ती तूफ़ा रुकने तक
बटोर रहे मिट्टी फूटते बोल हैं कराह में

दाग लगा दामन में तब हालत न देखी
मनाने आ गए सारे जश्न मेरी तबाह में

गए थे लाने आसमा महकते फूलों का
समझे न साज़िश को थे इतने फराह में

© आलोक शर्मा

Read More

कविता : सुंदर पहाड़

देखो लगते कितने सुंदर हैं पहाड़
शांत स्थिर न कोई इनमें है दहाड़
घमंड नही ज़रा अपनी सुंदरता पर
मजबूती शान से खड़े अधीरता पर

ऊँचे चढ़ना इतना आसान नही पर
अपनी ऊँचाई पे कोई अभिमान नही

प्रकृति के हैं वो अमूल्य अभिन्न हिस्से
कालो से धरती पे हैं जुड़े कई किस्से
उनका अपना कोई ऐसा स्वार्थ नही
प्रकट स्वरूप दूजा कोई परमार्थ नही

ऋषि मुनि का तप हो या
अविनाशी शिव का घर हो
जड़ी बूटियों का भंडार यहीं पर
अद्भुत हैं कई चमत्कार यहीं पर
नदियों का द्वार यहीं पर
झरनों की बहार यहीं पर
जलधर निवास यहीं पर
रश्मि पहली सूर्य यहीं पर

फट जाए तो ज्वाला निकले
धरती कोख से लावा निकले
पिघले बर्फ जो सागर में मिले
बदले मौसम सुंदर फूल खिले

हर मूर्ति है अंश जो तराशी इनसे
हर मार्ग है पथ जो चलता इनसे
हरेक ईंट है जुड़ी दीवारें खड़ी जिनसे
हर ऊँची इमारत का आधार है जिनसे

हर सीढ़ी है घाट पवित्र नदी किनारे
अलोकन है स्तब्ध दूर खड़ा निहारे

मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारा
महल, मकान है इनसे दर्शन सारा

देखो लगते कितने सुंदर हैं पहाड़
मानव प्रकृति सुंदरता रहा उखाड़
पहाड़ो का अपना एक जीवन हैं
हाथ जोड़ प्रणाम मस्तक नमन है

© आलोक शर्मा

Read More

अजब सी कशमकश है जाने न
लगता नही दिल कहीं ये माने न

यादे हैं घुमड़ती जो बड़ा सताती
शबीह तेरे सिवा कोई पहचाने न

अजीब दास्तां बना इश्क़ हमारा
हालाते- रंज किसी को सुनाने न

सुलगते अंगारे सीने में दहकने दो
दर्द सही पर कोई आये बुझाने न

सम्भाल के रखा है मोहब्बत तक
दिया तोहफा तेरा कभी भुलाने न

कुछ खट्टी कुछ मीठी बातों के ख़त
पास में हमारे अमानत हैं जलाने न

दूर हुए हम दोनों कसूर था जो तेरा
ख़ामोश हुए लब जो अब बताने न

-ALOK SHARMA

Read More

मन की माया
तन की काया
समझा जिसने
कभी न भरमाया
है संसार इच्छाएं जो अनेक
सत्य ज्ञान की खोज है एक
भौतिक दिखता जो है सबको
सत्य रूप माना गया है इसको
अभौतिक है जिसे देखे ये मन
आदि सनातन युग मानुष जन
होगा कुछ अद्भुत भी जगत में किसने जाना
पंच तत्व से बना शरीर सत्य जो सबने माना

-ALOK SHARMA

Read More