Quotes by Jitendra Kumar Jha in Bitesapp read free

Jitendra Kumar Jha

Jitendra Kumar Jha

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इस शहर में मुर्दों की तादाद बहुत है,
कौन कहता है कि ये आबाद बहुत है,
जुल्मों के खिलाफ यहां कोई नहीं बोलता,
बाद में करते सभी बात बहुत हैं।

मेरे छोटे से इस दिल में जज्बात बहुत हैं,
नींद नहीं है आंखों में ख्वाबों की बरसात बहुत है।
राह नहीं, मंजिल नहीं, पैर नहीं कुछ भी नहीं,
मुझे चलने के लिए तेरा साथ बहुत है।

दूर होकर भी तू मेरे पास बहुत है,
सगा तो नहीं मेरी पर तू खास बहुत है।
जिनकी टूट चुकी उनको छोड़ो बस,
हमें तो आज भी उनसे आस बहुत है।

by
जितेंद्र कुमार झा

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नई नवेली दुल्हन बन कर
कर के में सोलह श्रृंगार
निकल पड़ी में छोड़ पिता घर
आ पहुँची हूँ पिया के द्वार

देख रही हूँ इधर उधर में
मुझको कोई न पहचाने
घर की दीवारो से लेकर
लोग यहाँ पर सब अनजाने।

गूंज रही है पूरे घर मे
हंसी ठहाकों की फ़व्वार
भाभी चाची मामी कह के
लोग रहे है मुझे पुकार

देवर नन्द जेठ जेठानी
बाँट रहे सब अपना ज्ञान
नई नवेली तुम आई हो
कुछ दिन में जाओगी जान

माँ की शिक्षा मन में रख कर
ध्यान में रख कर पिता का ज्ञान
आँखें मेरी नम है पर
होंठों पर मेरे है मुस्कान

लेखक
जितेंद कुमार झा

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यादों की जंजीरों से बड़कर कुछ नहीं ।
जमाने से हमे निशब्द कुछ नहीं ।।

झंझोड दिया है हर शख्स का मिजाज़ ।
सियासत बची है इंसानियत कुछ नहीं ।।

हमें भी सिखा दो तुम जैसा जुर्म करना ।
येसे ही रिहा हो गए और जमानत कुछ नहीं ।।

सयोजक
जितेंद्र कुमार झा

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।।लड़के भी त्याग करते हैं साहब।।

बड़ी याद आती है घर की।
मगर जा नही सकता।।
में कितनी तकलीफ में रहता हूं।
किसी को बता नही सकता

इतना दर्द रहता है।
फिर भी ड्यूटी जाना पड़ता है
हाथों में छाले पड़ गये।
फिर भी रोटी पकाना पड़ता है।।

सुबह जब उठता हूं मां।
मन बड़ा ब्याकुल होता है।।
पर क्या करू मां।
रोज मुझे काम पर तो जाना होता है।।

इसी प्रकार व्यतीत होती है हम लड़कों की जिंदगी साहब।
इन्हें तो हर फर्ज निभाना पड़ता हैं।।

।।लड़के भी त्याग करते हैं साहब।।
लेखक
जितेंद कुमार झा
🙏🙏🙏🙏🙏

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