कभी-कभी वक्त के सारे जवाब शब्दों में नहीं होते,
कभी-कभी वो बस एक मुलाक़ात में छिपे होते हैं —
जहाँ दो खामोशियाँ आमने-सामने आकर
एक-दूसरे को पहचान लेती हैं।
वो खामोशी जो कभी दूरी थी,
आज शायद पुल बनने वाली थी।
सर्दियों की हल्की धूप थी।
आसमान साफ़ था, पर हवा में एक अजीब-सी ठंडक घुली हुई थी —
ठीक वैसी ही, जैसी उन यादों में होती है
जो अचानक दिल के किसी कोने से बाहर निकल आती हैं।
कॉलेज के पुराने गलियारों में आज फिर exhibition लगी थी।
वही दीवारें, वही सीढ़ियाँ, वही कोने —
जहाँ कभी Prakhra और Aarav की कहानी शुरू हुई थी,
बिना किसी वादे के, बिना किसी नाम के।
वक़्त ने दोनों को बदल दिया था।
चेहरों पर अब थोड़ी परिपक्वता थी,
आँखों में कुछ ठहराव,
पर उनके बीच की चुप्पी…
वो अब भी वैसी ही थी —
न पूरी, न खत्म।
Prakhra exhibition में paintings देख रही थी।
हर तस्वीर में उसे कुछ जाना-पहचाना-सा लग रहा था —
जैसे हर canvas किसी एहसास को कैद करने की कोशिश कर रहा हो।
तभी उसकी नज़र एक फोटो पर ठहर गई।
वो आगे बढ़ी,
और जैसे ही उसने title पढ़ा,
उसकी उंगलियाँ हल्की-सी काँप गईं।
“The Silence Between Us”
नीचे लिखा था — by Aarav Kapoor
उसके दिल ने जैसे एक पल के लिए धड़कना भूल गया।
“Aarav…”
ये नाम उसके होंठों से नहीं,
सीधे उसकी साँसों से निकला।
वो मुड़ी।
भीड़ के उस पार वही चेहरा था —
वही आँखें, जिनमें कभी उसने खुद को देखा था।
वही गहराई,
बस अब उनमें थोड़ा और ठहरा हुआ सुकून था।
कुछ पल दोनों बस एक-दूसरे को देखते रहे।
न कोई जल्दबाज़ी,
न कोई सवाल।
जैसे वक्त ने उन्हें एक छोटा-सा ब्रेक दे दिया हो
— सोचने के लिए नहीं,
महसूस करने के लिए।
आरव धीरे-धीरे आगे बढ़ा।
उसके कदमों में अब हड़बड़ाहट नहीं थी।
उसकी आवाज़ उतनी ही शांत थी
जितनी उसकी आँखें।
“बहुत दिन बाद…”
Prakhra ने हल्की मुस्कान दी।
वो मुस्कान जिसमें पुरानी झिझक नहीं थी,
बस अपनापन था।
“हाँ… बहुत दिन बाद।”
इतने छोटे से वाक्य में
सालों की दूरी सिमट गई थी।
दोनों café के उसी कोने में बैठे,
जहाँ कभी पहली बार साथ बैठे थे।
वही मेज़,
वही खिड़की,
बस अब दोनों थोड़े बदल चुके थे।
चाय की भाप धीरे-धीरे उठ रही थी,
और दिल की धड़कनें उससे तेज़ थीं।
कुछ पल तक कोई नहीं बोला।
पर ये चुप्पी बोझ नहीं थी।
ये वो खामोशी थी
जो अब डराती नहीं थी।
आरव ने धीरे से कहा —
“तुम बदल गई हो।”
Prakhra ने मुस्कुरा कर जवाब दिया —
“हाँ… वक़्त सबको बदल देता है।”
थोड़ा रुककर उसने पूछा —
“और तुम?”
Aaravने खिड़की से बाहर देखते हुए कहा —
“मैं अब भी वैसा ही हूँ…
बस अब बोलना सीख लिया है।”
उस एक वाक्य में
उसकी सारी पिछली खामोशियाँ घुल गई थीं।
कुछ देर की चुप्पी के बाद
आरव ने अपनी bag खोली।
उसके हाथों में वही diary थी —
Pehli Chuppi — by P.
वो diary,
जो कभी library में देखी गई थी,
जो कभी अधूरी छोड़ दी गई थी।
उसने diary Prakhra के सामने रख दी।
“ये अब पूरी है।”
Aarav ने diary खोली।
हर पन्ना पलटते हुए
उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान आती रही।
हर शब्द जैसे
उसके अपने दिल का अनुवाद था।
आख़िरी पन्ने पर लिखा था —
“कभी-कभी किसी की खामोशी सबसे loud confession होती है,
बस सुनने वाला चाहिए होता है।”
आरव ने ऊपर देखा।
उसकी आँखों में हल्की नमी थी,
पर चेहरे पर सुकून।
“तो ये जवाब था…
तुम्हारी खामोशी का?”
Prakhra ने धीरे से कहा —
“हाँ…
और शायद तुम्हारी भी।”
दोनों हँस पड़े।
वो हँसी
जिसमें कोई शिकायत नहीं थी,
कोई मलाल नहीं था।
सालों का बोझ
एक पल में हल्का हो गया था।
उनके बीच जो खामोशी थी,
आज वो एक खूबसूरत सुकून में बदल चुकी थी।
आरव ने कहा —
“मुझे लगा था हम अधूरे रह जाएंगे।”
Prakhra ने जवाब दिया —
“कभी-कभी अधूरी चीज़ें ही
ज़्यादा पूरी लगती हैं।”
वक़्त की सुई आगे बढ़ती रही,
लोग आते-जाते रहे,
पर दोनों के दिल में वो पल थम गया।
कोई इज़हार नहीं,
कोई वादा नहीं —
बस समझे जाने का सुकून।
बाहर हल्की बारिश शुरू हो गई थी।
बूंदें ज़मीन पर गिर रही थीं
बिल्कुल वैसे ही
जैसे कभी उनकी पहली मुलाक़ात में गिरी थीं।
दोनों उठे।
छतरी वही थी —
पुरानी, यादों वाली।
आरव ने पूछा —
“चलो?”
Prakhra ने मुस्कुराकर कहा —
“इस बार…
बिना चुप्पी के।”
और दोनों चल दिए।
बारिश में भीगते हुए,
धीरे-धीरे,
बिना किसी जल्दबाज़ी के।
जैसे पहली चुप्पी का जवाब
आख़िरकार मिल ही गया हो। 🌧️
“कुछ मुलाक़ातें जवाब नहीं मांगतीं,
वो खुद जवाब बन जाती हैं।” 💫
✨ To be continued…
Next Episode — “मिलन या मोड़”
जहाँ वक़्त दोनों के सामने रखेगा
एक आख़िरी फैसला…