कभी-कभी silence भी बहुत कुछ कह जाती है…
और कभी-कभी वही silence सबसे बड़ा दर्द बन जाती है।
जहाँ शब्द खत्म हो जाते हैं, वहीं दिल की उलझनें शुरू होती हैं।
Aarav और Prakhra अब पहले जैसे नहीं रहे।
कभी दोनों एक-दूसरे के रोज़मर्रा के हिस्से थे,
पर अब उनकी routine में भी एक अजीब-सी कमी घुस गई थी।
जो बात कभी बिना बोले समझ आ जाती थी,
अब समझाने के लिए भी शब्द कम पड़ने लगे थे —
जैसे दोनों के बीच कोई अदृश्य दीवार खड़ी हो गई हो
जिसे कोई तोड़ना नहीं चाहता, पर दोनों महसूस कर रहे थे।
Prakhra अब library नहीं जाती थी।
वो जगह जहाँ कभी उनकी हँसी गूंजती थी,
जहाँ दोनों एक ही किताब शेयर करते थे,
अब वो जगह उसके लिए बोझ बन गई थी।
वो bench अब खाली रहती थी —
बस कभी-कभी हवा के साथ पुराने पन्ने पलटते थे,
जिनमें अब भी उनका नाम लिखा था… धुंधला-सा,
जैसे किसी ने यादों पर उंगलियों से धूल फेर दी हो। 🌫️
वो हर बार वहाँ से गुजरते हुए सिर्फ एक बात सोचती —
“क्या सच में इतना आसान होता है किसी को छोड़ देना?”
उधर Aarav ने भी कोशिश की थी —
कई बार उसने message टाइप किया,
लंबी-लंबी बातें लिखीं,
“कैसी हो?”,
“मुझसे बात कर लो?”,
पर हर बार “typing…” के साथ सब delete कर दिया।
जैसे हर शब्द से पहले ही उसे guilt घेर लेता हो।
क्योंकि अब डर था —
कहीं उसकी बात उसे और दूर न कर दे,
कहीं वो फिर वही सवाल न पूछ ले जिसका जवाब उसके पास नहीं था।
कुछ बातें दिल समझता है,
पर ज़ुबान उसे कह नहीं पाती…
और बस वहीं से गलतफहमियाँ शुरू होती हैं।
रात को Prakhra अपनी diary में लिखती —
> “हम दोनों अब कुछ नहीं हैं…
पर जब भी बारिश होती है, वो वही महसूस करवाती है —
जैसे वो अब भी यहीं हो, पास में।” ☔
बारिश की हर बूंद उसे वो दिन याद दिलाती जब
Aarav भीगा हुआ क्लास में आया था…
वो मुस्कान…
वो बालों से गिरती पानी की बूंदें…
वो हल्की सी awkward हँसी —
सब यादों की तरह वापस लौट आता।
कभी-कभी यादें इतनी सजीव होती हैं
कि लगता है वो शख्स सामने बैठा है —
बस बोल नहीं रहा।
जैसे किसी ने उसकी आवाज़ mute कर दी हो,
पर उपस्थिति अब भी वहीं हो।
एक शाम आरव college के पास वाले café में बैठा था।
वही corner वाली table जहाँ वो दोनों कभी हँसे थे,
जहाँ कभी उनका आधा cappuccino एक-दूसरे से share होता था।
वो table अब खाली थी,
पर उसके दिल में अब भी वही हँसी गूंज रही थी —
हल्की, मासूम, और थोड़ी सी shy.
उसने फोन निकाला और playlist चलाई —
वही गाना जो Prakhra को पसंद था।
हर lyric जैसे उसकी कहानी बयान कर रहा था —
> “खामोशियों में भी, तेरा नाम सुनाई देता है…” 🎶
Aarav ने आँखें बंद कीं और सोचा,
कितना अजीब है ना —
जिसे सबसे ज़्यादा सुनना चाहो,
वो अब बस यादों में ही बोलता है।
जैसे distance किसी ने नहीं बनाया,
बस वक्त ने धीरे-धीरे दोनों की आवाज़ें दबा दीं।
कुछ दिन बाद, उसे library के पुराने shelf में वो diary मिली —
जिस पर लिखा था —
“Pehli Chuppi – by A.”
वो diary उसके हाथ में आते ही
जैसे कोई पुराना दरवाज़ा खुल गया हो —
जहाँ Prakhra की हँसी, उसके शब्द, उसके एहसास
सब एक-एक पन्ने में जिंदा थे।
उसने हौले से खोला…
हर पन्ने में एक याद थी,
हर शब्द में एक आवाज़ —
जो अब सिर्फ उसके लिए थी।
> “अगर चुप रहना ही प्यार था,
तो शायद मैं आज भी उसी चुप्पी में हूँ।” 💭
Aarav मुस्कुरा दिया —
थोड़ा टूटा, थोड़ा हल्का हुआ,
थोड़ा सुकून भी मिला
कि वो अकेला नहीं था जो महसूस कर रहा था।
कभी-कभी प्यार का अंत अलगाव नहीं होता,
बस एक लंबी चुप्पी होती है —
जो हर रात तुम्हें सुनाई देती है,
पर तुम किसी को सुना नहीं पाते। 🌙
Prakhra और Aarav दोनों अब भी वहीं थे —
बस अपनी-अपनी दुनियाओं में बंद,
जहाँ feelings थीं,
पर रास्ते नहीं।
वो एक ऐसा दर्द था
जिसे कोई देख नहीं सकता था,
पर दोनों जी रहे थे।
✨ To be continued...
Next Episode — “फिर से वही रास्ता”
जहाँ किस्मत दो खामोश दिलों को दोबारा आमने-सामने लाएगी... 💫