यह कहानी पूरी तरह काल्पनिक है। इसका उद्देश्य किसी भी वर्तमान व्यवस्था, व्यक्ति या प्रक्रिया से जोड़ना नहीं है
बहुत पुराने समय की बात है। एक विशाल और समृद्ध सल्तनत थी, जहाँ राजा अकबर का शासन था। जनता सुख-शांति से रहती थी, लेकिन जैसे ही राजमहल से यह घोषणा हुई कि पूरे राज्य में एक पहचान का फ़ॉर्म भरवाया जाएगा, वैसे ही हवा में एक अजीब-सा डर तैरने लगा। लोग समझ नहीं पाए कि यह फ़ॉर्म किस उद्देश्य से है। किसी ने कहा कि यह ज़मीन छीनने के लिए है, किसी ने कहा कि यह लोगों को देश से बाहर करने की साज़िश है, तो किसी ने यह अफ़वाह फैलाई कि जिनके पास काग़ज़ पूरे नहीं होंगे, उन्हें रातों-रात उठा लिया जाएगा।
धीरे-धीरे यही डर आग बन गया। बाज़ारों में चर्चाएँ होने लगीं, चौपालों पर चीख-पुकार मच गई। बूढ़े काँपने लगे, औरतें रोने लगीं और बच्चे मासूमियत से पूछने लगे कि क्या उन्हें अपना घर छोड़ना पड़ेगा। तभी कुछ चालाक लोग सामने आए, जिन्होंने इस डर को और भड़काया। वे ऊँची आवाज़ में कहने लगे कि राजा जनता का दुश्मन बन गया है, कि यह फ़ॉर्म सल्तनत को तोड़ने का हथियार है, कि आज फ़ॉर्म है और कल बेदखली होगी। हर गली, हर नुक्कड़ पर यही बातें दोहराई जाने लगीं। डर को सच की तरह परोसा गया, झूठ को सच्चाई का लिबास पहनाया गया, और लोग उनकी बातों में आने लगे, क्योंकि डर सोचने नहीं देता, डर सिर्फ़ भगाता है।
इन्हीं अफ़वाहों के बीच विरोधियों ने भी मौका देखा। जो लोग वर्षों से राजा की ताक़त से जलते थे और तख़्त पर नज़र गड़ाए बैठे थे, उन्होंने आग में घी डालना शुरू कर दिया। किसी ने कहा कि राजा जनता की गिनती कर रहा है ताकि वफ़ादार और ग़ैर-वफ़ादार अलग किए जा सकें, किसी ने कहा कि यह विदेशी ताक़तों की चाल है। किसी ने राजा की तस्वीरें फाड़ीं, किसी ने महल के बाहर नारे लगवाए। हर तरफ़ से हमला होने लगा—शब्दों से, अफ़वाहों से, डर से और झूठ से। राजा को कमज़ोर दिखाने की कोशिश की गई, यह साबित करने का प्रयास हुआ कि राजा अपनी ही जनता के ख़िलाफ़ हो गया है। तख़्त पलटने की हवा बनाई गई, ताकि लोग राजा से भरोसा खो दें, और जैसे ही भरोसा टूटे, सल्तनत अपने आप गिर जाए।
इन हालात में राजा अकबर भी चिंतित हो उठा। उसने देखा कि बिना तलवार चले, बिना युद्ध लड़े, सिर्फ़ डर के ज़रिये उसकी सल्तनत की नींव हिलाई जा रही है। तब उसने बीरबल को बुलाया। बीरबल ने सारा हाल सुना, लोगों की बातें सुनीं और भड़काने वालों की चाल समझी। अगले ही दिन दरबार में घोषणा करवाई गई कि हर गली और हर गाँव से लोग आएँ—डर लेकर नहीं, बल्कि सवाल लेकर।
दरबार भरा हुआ था। चेहरे सहमे हुए थे, आँखों में शंका थी। तभी बीरबल आगे आया और बोला—जो लोग कहते हैं कि यह फ़ॉर्म लोगों को बाहर करने के लिए है, मैं उनसे पूछता हूँ, किसे बाहर किया गया? जो कहते हैं कि राजा गिनती कर रहा है ताकि जनता को बाँटा जाए, मैं उनसे पूछता हूँ, क्या आज तक कोई राजा अपनी ही सल्तनत को गिनती से कमज़ोर करता है? बीरबल ने कहा कि अफ़वाहें वही लोग फैलाते हैं जिन्हें सच से डर लगता है, क्योंकि सच सामने आया तो उनकी साज़िश पकड़ी जाएगी।
फिर राजा की अनुमति से बीरबल ने सबको समझाया कि यह फ़ॉर्म किसी को देश से निकालने के लिए नहीं है, बल्कि यह जानने के लिए है कि सल्तनत में कितने लोग जीवित हैं, कितने इस दुनिया से जा चुके हैं लेकिन अभी भी काग़ज़ों में ज़िंदा दिखाए जा रहे हैं, कितने लोग ऐसे हैं जो बरसों पहले दूसरी सल्तनतों में बस गए लेकिन नाम यहाँ चल रहा है, कितने ऐसे नाम हैं जो एक जैसे हैं और जिनकी वजह से भ्रम और झगड़े होते हैं, कौन सच में इस देश का है और कौन केवल नाम के लिए। यह फ़ॉर्म कोई तलवार नहीं है, बल्कि एक आईना है, जिसमें सल्तनत अपनी असली तस्वीर देखना चाहती है, ताकि योजनाएँ सही बनें, अनाज सही बँटे, सुरक्षा मज़बूत हो और कोई भी ग़लत फायदा न उठा सके।
बीरबल ने साफ़ कहा कि जो लोग डर फैलाते हैं, वे राजा के नहीं बल्कि जनता के दुश्मन हैं, क्योंकि डर में इंसान सच नहीं देख पाता, और जब जनता सच नहीं देखती, तभी तख़्त हिलते हैं और सल्तनतें टूटती हैं। दरबार में सन्नाटा छा गया। लोगों को समझ आ गया कि उनसे सवाल नहीं पूछे जा रहे थे, बल्कि उनकी सही जानकारी जुटाई जा रही थी, ताकि ज़िंदा और मरे हुए का फर्क साफ़ हो सके, अपने और पराए का भ्रम खत्म हो सके और व्यवस्था मज़बूत बन सके। उसी दिन यह भी साफ़ हो गया कि सबसे बड़ा खतरा कोई फ़ॉर्म नहीं होता, बल्कि वह डर होता है जिसे कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए फैलाते हैं।