Shadows Of Love - 17 in Hindi Adventure Stories by Amreen Khan books and stories PDF | Shadows Of Love - 17

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Shadows Of Love - 17

करन ने खिड़की की ओर देखा, मगर वहाँ कुछ भी नज़र नहीं आया। वो परछाई जैसे चाहकर खुद को करन की आँखों से छुपा रही थी।

करन ने गहरी साँस ली और बोला,
“अनाया, तुझे अब अकेला नहीं छोड़ सकता। जहाँ तू जाएगी, मैं भी साथ रहूँगा। चाहे दिन हो या रात, मैं तेरी ढाल बनकर खड़ा रहूँगा।”

अनाया ने उसकी तरफ़ देखा, उसके होंठ काँप रहे थे,
“पर करन… अगर ये साया तुझसे लड़ाई ही नहीं चाहता? अगर वो हमें तोड़ना चाहता है? अगर उसके जाल में फँसकर मैं ही तुझसे दूर हो गई तो?”

करन ने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया,
“ये तेरे डर नहीं, तेरे ज़हन में भरी उसकी ज़हर है। मैं तेरे अंदर से भी उसे मिटाऊँगा।”

इतने में खिड़की के बाहर से एक धीमी हँसी गूँजी। हवा का झोंका भीतर आया और कमरे की सारी मोमबत्तियाँ एक साथ बुझ गईं। अंधेरे में बस वो आवाज़ गूँज रही थी—

“करन… देखता हूँ तेरे इश्क़ का किला कितना मज़बूत है। हर क़िला कभी न कभी ढह ही जाता है।”

अनाया चीख़ पड़ी और करन ने उसे सीने से कसकर लगा लिया। करन की आँखों में अब सिर्फ़ एक जंग का संकल्प था।

वो धीरे से फुसफुसाया,
“अगर साया मोहब्बत से खेलना चाहता है… तो अब ये खेल उसकी बर्बादी बनेगा।”

और उस रात पहली बार करन ने ठान लिया कि वो सिर्फ़ अनाया को नहीं बचाएगा, बल्कि उस साये का सच भी सामने लाकर उसे हमेशा के लिए ख़त्म करेगा।
करन और अनाया उस रात सो भी न पाए। कमरे में अंधेरा था और खामोशी इतनी गहरी कि दिल की धड़कनें भी साफ़ सुनाई दे रही थीं। अनाया बार-बार करन की छाती से लिपट जाती, जैसे वहाँ ही उसे चैन मिलता हो। लेकिन करन की आँखों में नींद नहीं थी, वहाँ बस एक आग जल रही थी—उस आग का नाम था साया।

रात गहराती गई, बाहर हवाओं में सिसकियाँ सी सुनाई देतीं। कभी खिड़की पर दस्तक सी होती, कभी दरवाज़े पर परछाईं सी लहराती। अनाया काँप उठती मगर करन हर बार उसका हाथ पकड़कर कहता, “डर मत, मैं हूँ।” मगर करन के दिल में भी एक बेचैनी घर कर चुकी थी। उसे समझ आ गया था कि साया अब सिर्फ़ डराने तक सीमित नहीं रहेगा, वो धीरे-धीरे उनके बीच घुसपैठ करने लगा है।

सुबह होते ही करन ने तय किया कि अब और खामोश रहना खतरनाक होगा। उसने अनाया से कहा, “अब वक्त है उस साए के सच को सामने लाने का। वो आखिर है कौन? और क्यों तेरा पीछा कर रहा है?” अनाया की आँखों में डर झलकने लगा, उसने धीरे से कहा, “करन… मुझे लगता है ये सब मेरी गलती है। बचपन में… मैंने कुछ ऐसा देखा था जो शायद मुझे नहीं देखना चाहिए था।”

करन ने हैरानी से पूछा, “क्या देखा था तूने?” अनाया की आँखें भीग गईं। उसने बताया कि जब वो बहुत छोटी थी, अपने दादी के पुराने मकान में अक्सर अजीब घटनाएँ होती थीं। एक बार उसने तहखाने में जाकर देखा था कि उसकी दादी किसी अजनबी से मंत्र पढ़ रही थीं। वह अजनबी पूरी तरह काले कपड़ों में था, उसका चेहरा छिपा हुआ था। जब उनकी नजरें अनाया पर पड़ीं तो उसकी दादी ने उसे ज़ोर से कमरे से बाहर धकेल दिया। उस दिन के बाद से उसकी दादी कुछ दिनों में ही अचानक चल बसीं।

अनाया ने रोते हुए कहा, “मुझे लगता है वही अजनबी… वही साया है। उसने कसम खाई थी कि जो उसके सामने आएगा, वो उसकी ज़िंदगी तबाह कर देगा।”

करन के भीतर ग़ुस्सा उमड़ पड़ा। उसने अनाया के आँसू पोंछते हुए कहा, “तो अब खेल साफ़ है। ये साया तेरा अतीत है जो आज तक तेरा पीछा कर रहा है। लेकिन अब ये पीछा खत्म होगा।”

दिन ढलने ही वाला था कि करन अकेला निकल पड़ा। वह उस पुराने मकान की ओर गया जहाँ कभी अनाया की दादी रहा करती थीं। घर जर्जर हालत में खड़ा था, दीवारों पर सीलन और खिड़कियों से आती बदबू जैसे किसी अनकही कहानी की गवाही दे रही थी। करन ने कदम अंदर रखे तो मकड़ी के जाले और टूटी लकड़ियों ने उसका रास्ता रोका, मगर वो बिना रुके आगे बढ़ता गया।

तहखाने का दरवाज़ा अब भी वहीं था। उसने उसे खोला तो अंधेरा अंदर से उसे खींचने लगा। जैसे ही उसने पैर अंदर रखा, एक ठंडी हवा का झोंका उसके चेहरे से टकराया और दीवारों पर बनी पुरानी लकीरें लाल चमकने लगीं। तभी वही आवाज़ गूँजी—“करन, तुझे लगा तू आसानी से मुझे ढूँढ लेगा? ये खेल इतना आसान नहीं है। तू अनाया को चाहता है, और मैं चाहता हूँ तेरे इश्क़ को नष्ट करना।”

करन ने दाँत भींचते हुए कहा, “अगर तू सामने आने की हिम्मत रखता है तो बाहर आकर बात कर। परछाइयों में छिपना तेरी औक़ात को दिखाता है।”

तभी अंधेरे से धुंध की तरह एक आकृति बनी। लाल आँखें, काले कपड़े, और चेहरा अब भी धुँध में छिपा हुआ। उसने हँसते हुए कहा, “करन, तू सोचता है मोहब्बत ढाल बन जाएगी? मोहब्बत ही तेरी सबसे बड़ी कमज़ोरी है। मैं उसे तेरे ही सामने तुझसे छीन लूँगा।”

करन ने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं। उसने पहली बार महसूस किया कि ये लड़ाई सिर्फ़ साया और उसके बीच नहीं है, बल्कि मोहब्बत और नफ़रत के बीच की जंग है।

उसने चीखकर कहा, “तू चाहे जितनी परछाइयाँ बुन ले, अनाया मेरी थी, है और हमेशा रहेगी। और अगर तूने उसके करीब आने की कोशिश की, तो कसम है, तुझे उसी अंधेरे में दफन कर दूँगा जिससे तू निकला है।”

साया की हँसी तहखाने की दीवारों से टकराकर गूँज उठी। उसकी लाल आँखें और चमकने लगीं, जैसे वो करन की चुनौती को स्वीकार कर रहा हो।

उस रात करन और साया के बीच पहली बार आमना-सामना हुआ। लेकिन ये तो बस शुरुआत थी। क्योंकि साया ने साफ़ कह दिया था—“अब खेल शुरू हुआ है, करन। और इस खेल का अंजाम तेरे दिल के टुकड़ों में लिखा जाएगा।”

करन जान गया था कि आने वाले दिन आसान नहीं होंगे। अब उसे न सिर्फ़ अनाया की हिफाज़त करनी थी बल्कि साया के अतीत का राज़ भी खोजना था।
अगली सुबह सूरज की रोशनी खिड़की से छनकर अंदर आई, लेकिन करन और अनाया की ज़िंदगी में अंधेरा पहले से और गहरा चुका था। पिछली रात तहखाने में जो हुआ, उसने करन के भीतर एक जंग छेड़ दी थी। उसकी आँखों में अब डर नहीं था, बल्कि एक अडिग इरादा जल रहा था। उसने ठान लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, साया का सच सामने लाकर ही रहेगा।

अनाया करन के पास बैठी थी, उसके हाथ काँप रहे थे। उसने धीमी आवाज़ में कहा, “करन, मुझे बहुत डर लग रहा है। ऐसा लगता है जैसे वो अब और क़रीब आ चुका है। उसकी परछाईं अब मेरे सपनों में भी उतरने लगी है।”

करन ने उसका हाथ पकड़कर कहा, “अनाया, अब डरने का वक़्त चला गया। अब लड़े बिना कोई चारा नहीं। लेकिन इसके लिए मुझे तेरे अतीत की गहराइयों में उतरना होगा। तुझे याद करना होगा कि दादी के उस मकान से जुड़ा हर राज़ क्या था।”

अनाया की आँखों में धुंधले से चित्र तैरने लगे। उसने बताया कि उसकी दादी अक्सर रात को कमरे में अकेली बैठकर मंत्र पढ़ती थीं। कभी घर में अजीब आवाज़ें गूँजतीं, कभी दरवाज़े अपने आप खुल जाते। तब वो बच्ची थी, उसे समझ नहीं आता था कि ये सब क्यों हो रहा है। लेकिन एक रात उसने देखा था कि तहखाने में दादी उस अजनबी आदमी को कुछ दे रही थीं—एक पुराना, लोहे से बना छोटा-सा संदूक।

करन ने तुरंत पूछा, “वो संदूक कहाँ है अब?”

अनाया ने सिर झुकाते हुए कहा, “पता नहीं। दादी की मौत के बाद वो संदूक कभी मिला ही नहीं। सबने कहा कि शायद खो गया। लेकिन मुझे लगता है, वही संदूक इस साए का राज़ है।”

करन खड़ा हो गया। उसकी आवाज़ में अब एक ठंडा इरादा था, “तो मुझे उस संदूक को ढूँढना होगा। वही इस खेल की चाबी है।”

उस शाम करन अकेला फिर से पुराने मकान पहुँचा। मकान जैसे किसी परछाईं में डूबा हुआ था। चारों ओर सन्नाटा और हवा में सीलन का बोझ। इस बार उसने तहखाने से आगे बढ़कर पूरा घर खंगालना शुरू किया। दीवारों में अजीब निशान उकेरे हुए थे, मानो किसी ने खून से बनाए हों। दरवाज़ों के पीछे टूटी हड्डियाँ और राख पड़ी थी।

करन धीरे-धीरे ऊपर वाले माले पर पहुँचा। वहाँ एक कमरा बंद था। जब उसने दरवाज़ा खोला तो भीतर गहरी बदबू और अँधेरा था। दीवारों पर पुरानी तस्वीरें टंगी थीं—तस्वीरों में अनाया की दादी और वही काला अजनबी। करन का दिल धक से रह गया। तस्वीरों में उस अजनबी की आँखें लाल चमक रही थीं, मानो वो तस्वीर से बाहर निकलकर देख रहा हो।

अचानक कमरे की कोठरी से खटखटाहट सुनाई दी। करन ने उसे खोला तो अंदर धूल और मकड़ी के जालों के बीच वही संदूक पड़ा था। पुराना, जंग खाया हुआ, लेकिन अब भी मजबूती से बंद।

जैसे ही उसने संदूक को छुआ, कमरा काँप उठा। खिड़कियाँ अपने आप बंद हो गईं, दरवाज़ा ज़ोर से पटका और अँधेरे में वही आवाज़ गूँजी—“करन! उस संदूक को छूने की जुर्रत मत करना। उसमें मेरी रूह कैद है। अगर तूने उसे खोल दिया… तो तेरा और अनाया का अंत निश्चित है।”

करन ने दाँत भींचते हुए संदूक को कसकर पकड़ लिया और कहा, “अगर तेरा अंत इसी में है, तो अब यही मेरी तलाश है।”

अचानक उसके सामने वही परछाईं उभर आई। इस बार वो और साफ़ थी। उसके चेहरे का कुछ हिस्सा उजागर हुआ—आधा चेहरा इंसान का और आधा किसी दैत्य का। उसकी हँसी दीवारों को हिला रही थी।

उसने कहा, “करन, तू समझ नहीं रहा। मैं कोई आम इंसान नहीं हूँ। मैं उसी खून का हिस्सा हूँ जिससे अनाया पैदा हुई है। मैं उसके परिवार का श्राप हूँ। तू चाहे जितनी कोशिश कर ले, अनाया मेरी ही बनेगी।”

करन के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उसके दिल में पहली बार सवाल उठा—क्या सचमुच अनाया और साया का रिश्ता खून से जुड़ा है?

लेकिन अगले ही पल उसने अपने डर को झटक दिया। उसने संदूक को सीने से लगाया और बाहर की ओर दौड़ा। परछाईं पीछे-पीछे गरज रही थी, “करन, ये खेल तेरे हाथ में नहीं है। तूने आग से खेलना शुरू किया है, और अब जलना तय है।”

करन भागकर मकान से बाहर निकला। आसमान में बादल गरज रहे थे, हवाएँ चीख़ रही थीं। संदूक उसके हाथ में था और उसके दिल में संकल्प—अब चाहे जो भी हो, इस श्राप का सच सामने लाकर ही रहेगा।

जब वो वापस अनाया के पास पहुँचा, उसकी आँखों में डर और बेचैनी साफ़ थी। अनाया ने काँपते हुए पूछा, “करन, तेरे हाथ में ये क्या है?”

करन ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा, “ये वही संदूक है… जिसमें उस साए का सच कैद है। और अब मैं ये ताला तोड़कर उसकी हकीकत उजागर करूँगा।”

अनाया रात गहरी हो चुकी थी। आसमान पर काले बादल छाए थे, बिजली की चमक कभी-कभी खिड़की से भीतर आकर दीवारों पर डरावने साये बना देती। करन और अनाया संदूक के सामने बैठे थे। कमरे में इतनी खामोशी थी कि घड़ी की टिक-टिक भी तूफ़ान जैसी सुनाई दे रही थी।

करन ने गहरी साँस ली और संदूक पर हाथ रखा। ताला जंग खा चुका था, मगर अब भी मज़बूत था। अनाया ने काँपती आवाज़ में कहा, “करन… मत खोल इसे। मुझे डर है कि इसमें ऐसा राज़ छिपा है जिसे हम दोनों सह नहीं पाएँगे।”

करन ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा, “अनाया, अगर ये राज़ नहीं खुला तो साया हमें चैन से जीने नहीं देगा। डर से भागने के बजाय हमें उसका सामना करना होगा।”

उसने लोहे की छेनी से ताले को ज़ोर से मारा। पहली चोट पर ताला हिला, दूसरी चोट पर उसमें दरार पड़ी, और तीसरी चोट पर ताला टूटा और ज़मीन पर गिर पड़ा। जैसे ही संदूक खुला, कमरे में ठंडी हवा का भयानक झोंका भर गया। मोमबत्ती की लौ काँपी और बुझ गई। अँधेरे में सिर्फ़ संदूक से आती हल्की लाल चमक दिखाई दी।

करन ने सावधानी से ढक्कन उठाया। अंदर एक पुरानी काली किताब थी, कुछ पीले पड़े कागज़ों के बंडल और एक चाँदी की शीशी, जिसमें गाढ़ा काला तरल भरा हुआ था। किताब पर अजीब-सी भाषा में लिखा था—शब्द जो इंसानी आँखों के लिए अजनबी थे।

अनाया की आँखें फैल गईं। उसने काँपते हुए कहा, “ये… ये तो दादी की किताब है। उन्होंने हमेशा कहा था कि हमारे खानदान पर एक पुराना श्राप है। शायद इसी किताब में लिखा है वो श्राप।”

करन ने किताब खोली। पन्ने पुराने थे, मगर शब्द अब भी जिंदा लगते थे। उसमें लिखा था कि सदियों पहले अनाया के पूर्वजों में से एक ने काले जादू की ताक़त हासिल करने की कोशिश की थी। उसने एक दैत्य से सौदा किया था—शक्ति और अमरता के बदले अपने ही वंश की एक बेटी की आत्मा दैत्य को समर्पित करनी थी। लेकिन उस पूर्वज ने धोखा दिया और बेटी को बचा लिया। दैत्य क्रोधित हो गया और उसने वंश को श्राप दिया कि हर पीढ़ी में एक लड़की उसकी हो जाएगी।

करन ने गहरी साँस ली और कहा, “तो साया… कोई परछाईं नहीं, वो दैत्य है। वही जो इस वंश पर दावा करता आया है।”

अनाया के होंठ काँपने लगे। उसकी आँखों में आँसू भर आए। “मतलब… मैं ही वो लड़की हूँ? जिस पर उसका हक़ है?”

करन ने उसका चेहरा थाम लिया और दृढ़ आवाज़ में कहा, “नहीं अनाया। तू किसी का श्राप नहीं, तू मेरी मोहब्बत है। और मैं तुझे किसी अंधेरे के हवाले नहीं करूँगा।”

अचानक किताब के पन्ने अपने आप पलटने लगे। कमरे की दीवारों पर लाल रोशनी तैरने लगी। आवाज़ गूँजी—“करन, अब तुझे सच्चाई पता चल गई है। हाँ, अनाया मेरी है। उसके खून में मेरा हिस्सा है। तू चाहे जितना भी जतन कर ले, उसका नसीब तुझसे नहीं, मुझसे जुड़ा है।”

अनाया चीख़ पड़ी और करन ने उसे बाँहों में कस लिया। उसकी आँखों में अब डर नहीं, आग जल रही थी।

उसने साए की आवाज़ को चुनौती दी, “अगर तेरे हिसाब से ये खेल नसीब का है… तो मैं तेरे नसीब को बदल दूँगा। तू अनाया का मालिक नहीं, उसकी तबाही है। और मैं कसम खाता हूँ, तुझे उसी किताब में क़ैद कर दूँगा जिससे तू निकला है।”

संदूक में रखी चाँदी की शीशी अचानक काँपने लगी। उसका ढक्कन हिला और उससे काले धुएँ का गुबार निकला, जो धीरे-धीरे परछाईं का रूप लेने लगा। लाल आँखें और भयानक चेहरा, कमरे के बीचोंबीच खड़ा था।

उसने गरजकर कहा, “तो आ जा करन। देखता हूँ तेरी मोहब्बत कितनी मज़बूत है।”

और इस तरह करन और साया के बीच पहली असली टक्कर शुरू होने वाली थी।
पीछे हट गई। उसकी साँसें तेज़ थीं। उसने धीमी आवाज़ में कहा, “करन… अगर ये सच बहुत डरावना हुआ तो? अगर ये सच हमें हमेशा के लिए अलग कर दे तो?”

करन ने दृढ़ता से उसका हाथ पकड़ा और बोला, “अनाया, सच चाहे कितना भी काला क्यों न हो, हम मिलकर उसका सामना करेंगे। क्योंकि मोहब्बत तब तक अधूरी है जब तक वो अंधेरों को चीरकर रोशनी तक न पहुँचे।”

संदूक उनके सामने रखा था। और अब वो पल आ चुका था—जब उसका ताला टूटेगा और सदियों से छिपा हुआ रहस्य बाहर आएगा।
करन ने अनाया को अपने पीछे कर लिया। कमरे के बीचोंबीच साया का रूप पूरी तरह से उभर चुका था—लंबा, काला, और उसकी लाल आँखें ऐसे चमक रही थीं जैसे आग की लपटें अंधेरे में नाच रही हों। हवा इतनी भारी हो गई कि अनाया को साँस लेना मुश्किल लगने लगा।

करन ने संदूक से किताब और चाँदी की शीशी उठाई। किताब के पन्ने अपने आप पलटने लगे, मानो कोई अदृश्य ताक़त उसे पढ़वाना चाहती हो। एक पन्ने पर लाल निशान चमक उठा। करन ने देखा, वहाँ एक मंत्र लिखा था—वही भाषा जो उसे समझ नहीं आती थी, लेकिन जैसे ही उसने शब्दों को देखा, वे उसके ज़हन में उतरते चले गए।

साया ने हँसकर कहा, “करन, तू सोचता है कि इंसान होकर तू मुझे हरा देगा? ये किताब मेरे ही खून से लिखी गई है। हर शब्द में मेरी ताक़त है।”

करन ने दाँत भींचे और किताब के शब्द ज़ोर से पढ़ने लगा। अनाया डर से काँप रही थी, मगर करन की आवाज़ जैसे-जैसे ऊँची होती गई, कमरे की दीवारें थरथराने लगीं। साया गरज उठा, “चुप! ये शब्द तुझ पर भारी पड़ेंगे!”

अचानक साया ने अपना हाथ उठाया और करन को पीछे धकेल दिया। करन ज़मीन पर गिर पड़ा, किताब उसके हाथ से छूट गई। साया ने हँसते हुए कहा, “तेरी औक़ात इतनी ही है।” उसने अनाया की तरफ़ कदम बढ़ाए।

अनाया की आँखों से आँसू बहने लगे। उसने करन की ओर देखा और चीख़कर कहा, “करन, उठ! तू हार नहीं सकता। अगर तू हार गया तो मैं भी हार जाऊँगी।”

करन ने पूरी ताक़त से खुद को सँभाला। उसने चाँदी की शीशी उठाई। उसकी ठंडी धातु को छूते ही करन की हथेलियाँ जलने लगीं, मगर उसने छोड़ने से इनकार कर दिया। उसने ढक्कन खोला। अंदर का काला तरल अचानक नीली रोशनी में बदल गया।

साया चीख़ उठा, “नहीं! ये शीशी मेरी कमज़ोरी है। इसे बंद कर, करन! वरना तेरी मौत निश्चित है।”

करन डगमगाते हुए खड़ा हुआ और बोला, “तेरी मौत ही मेरी ज़िंदगी है।” उसने शीशी की नीली रोशनी साए की तरफ़ फेंकी। रोशनी ने पूरे कमरे को भर दिया। साया की परछाईं चटकने लगी, उसकी लाल आँखें धुंधली पड़ने लगीं। वो तड़पकर गरजने लगा, “करन! ये लड़ाई यहीं ख़त्म नहीं होगी। मैं लौटूँगा… तेरे खून के ज़रिए… अनाया के खून के ज़रिए!”

रोशनी के आख़िरी विस्फोट के साथ साया गायब हो गया। कमरे में खामोशी छा गई। किताब ज़मीन पर पड़ी थी और उसके पन्ने अपने आप बंद हो गए। शीशी अब खाली थी, सिर्फ़ हल्की नीली चमक उसमें बाकी रह गई।

अनाया दौड़कर करन से लिपट गई। उसकी आँखों में डर के साथ-साथ राहत भी थी। उसने रोते हुए कहा, “करन… तू जीत गया। लेकिन उसने कहा कि वो लौटेगा… क्या सचमुच ये ख़त्म हो गया?”

करन ने उसकी पीठ थपथपाई और धीमी आवाज़ में कहा, “नहीं अनाया, ये अभी ख़त्म नहीं हुआ। उसने वादा किया है कि वो लौटेगा। इसका मतलब है कि ये लड़ाई लंबी चलेगी। लेकिन अब मेरे पास उसकी किताब है। इसी में उसकी बर्बादी का रास्ता छिपा है।”

अनाया ने उसका चेहरा थाम लिया और कहा, “जो भी हो करन, मैं तेरे साथ हूँ। चाहे ये जंग कितनी भी लंबी क्यों न हो।”

करन ने किताब उठाई और संदूक को फिर से बंद किया। उसकी आँखों में अब डर नहीं था, बल्कि एक ठंडी आग जल रही थी। उसने मन ही मन कहा—अब ये जंग सिर्फ़ अनाया की हिफ़ाज़त की नहीं, बल्कि उस अंधेरे को हमेशा के लिए मिटाने की है।
करन और अनाया की ज़िंदगी उस रात के बाद पहले जैसी नहीं रही। साया का गायब होना एक अस्थायी जीत थी, मगर करन अच्छी तरह जानता था कि ये तूफ़ान की पहली लहर थी। अब असली लड़ाई बाकी थी।

अगली सुबह दोनों ने किताब खोली। किताब के पन्नों पर अजीब भाषा के अक्षर नाचते से नज़र आते थे, जैसे वो खुद ज़िंदा हों। करन ने पन्ने पलटते हुए देखा कि हर अध्याय में अलग-अलग प्रतीक और नक्शे बने थे। एक पन्ने पर सुनहरी स्याही से एक तलवार की आकृति बनी थी, जिसके चारों ओर मंत्र लिखे थे। उसके नीचे एक नक्शा बना था—पुराने पहाड़ों का नक्शा।

करन ने गहरी साँस ली और कहा, “अनाया, ये वही हथियार है जिससे हम साया को हमेशा के लिए खत्म कर सकते हैं। ये तलवार साधारण नहीं, बल्कि पवित्र शक्ति से बनी है। और शायद ये अब भी कहीं मौजूद है।”

अनाया ने काँपते हुए पूछा, “लेकिन कहाँ? ये नक्शा तो बहुत पुराना लगता है।”

करन ने नक्शे पर उँगली रखते हुए कहा, “ये पहाड़… ये तो ‘कालवन घाटी’ के हैं। मैंने इनके बारे में सुना है। लोग कहते हैं वहाँ कोई नहीं जाता क्योंकि वहाँ अजीब परछाइयाँ भटकती हैं। शायद उसी घाटी में ये तलवार छुपी है।”

अनाया डर से सिहर उठी, “मतलब हमें वहाँ जाना होगा?”

करन ने दृढ़ नज़र से कहा, “हाँ। अगर हम वहाँ नहीं गए तो साया फिर लौटेगा और इस बार शायद हम उसके सामने टिक न पाएँ। हमें इस तलवार को ढूँढना ही होगा।”

शाम ढलते ही दोनों सफ़र पर निकल पड़े। रास्ता लंबा और डरावना था। पहाड़ों की ओर जाते हुए गाँवों से गुज़रना पड़ा। कई जगह लोग उन्हें देखकर फुसफुसाने लगे, मानो किताब और साया के बारे में सबको पता हो। एक बूढ़ी औरत ने अनाया का हाथ पकड़कर कहा, “बेटी, उस घाटी में मत जाना। वहाँ वो सोया हुआ है, जो जग गया तो दुनिया काँप उठेगी।”

अनाया काँप गई, मगर करन ने बूढ़ी औरत को झुककर सलाम किया और बोला, “माँजी, अगर वो सोया हुआ है, तो अब उसे हमेशा के लिए मिटाना होगा।”

कई दिनों के सफ़र के बाद वे दोनों कालवन घाटी पहुँचे। घाटी घने जंगलों से घिरी थी। पेड़ों की शाखाएँ इतनी उलझी थीं कि सूरज की रोशनी भी भीतर नहीं आती थी। हवाओं में अजीब सी फुसफुसाहट थी, जैसे कोई नाम ले-लेकर पुकार रहा हो।

घाटी के बीचोंबीच एक प्राचीन मंदिर खड़ा था। उसकी दीवारें टूटी हुई थीं, मगर उस पर वही प्रतीक उकेरे हुए थे जो किताब में थे। करन ने किताब खोली और मंत्र पढ़ना शुरू किया। जैसे ही उसने पहला शब्द बोला, ज़मीन काँप उठी और मंदिर के अंदर की सीढ़ियाँ अपने आप नीचे खुल गईं।

अनाया ने करन का हाथ कसकर पकड़ लिया। “ये रास्ता… बहुत डरावना लग रहा है।”

करन ने उसकी आँखों में देखकर कहा, “डर जितना बड़ा होगा, जीत भी उतनी ही बड़ी होगी।”

दोनों नीचे उतरते गए। सीढ़ियाँ अंतहीन लग रही थीं। नीचे पहुँचकर उन्होंने देखा कि एक विशाल कक्ष है, जिसके बीचोंबीच पत्थर पर तलवार गड़ी हुई है। तलवार चाँदी की थी, लेकिन उस पर हल्की नीली आभा चमक रही थी।

अनाया की साँस थम गई। उसने धीमी आवाज़ में कहा, “ये वही है… किताब वाली तलवार।”

करन तलवार की ओर बढ़ा, मगर तभी पूरा कक्ष गूँज उठा। दीवारों पर लाल रोशनी फैल गई। और हवा में वही आवाज़ गूँजी—साया की आवाज़।

“करन… मुझे लगा तू भाग जाएगा, मगर तू तो मेरे पास चला आया। ये तलवार मेरी कैद है। अगर तूने इसे छुआ तो तेरा अंत यहीं होगा।”

अचानक अंधेरे से कई परछाइयाँ उभर आईं, हर एक साया की तरह, लाल आँखों वाली। वे करन और अनाया को घेरने लगीं।

करन ने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं और बोला, “तो आ जा, देखता हूँ तेरी परछाइयाँ कितनी ताक़तवर हैं। ये तलवार मेरी मंज़िल है और इसे छुए बिना मैं वापस नहीं जाऊँगा।”

और इसी के साथ घाटी के उस अंधेरे में करन और अनाया की अब तक की सबसे बड़ी जंग शुरू हो गई।

घाटी के अंधेरे कक्ष में हवा की गूँज ऐसी थी जैसे सैकड़ों आत्माएँ एक साथ चीख रही हों। चारों ओर लाल आँखों वाली परछाइयाँ फैल चुकी थीं। हर परछाईं साया का ही रूप लग रही थी, मानो उसका टुकड़ा-टुकड़ा अलग होकर करन और अनाया को घेरने आ गया हो।

करन ने तलवार की तरफ़ नज़र गड़ाई। वो अब भी पत्थर में गड़ी चमक रही थी। उसका दिल जानता था कि वही एक हथियार है जिससे ये अंधेरा मिट सकता है। लेकिन परछाइयाँ रास्ता रोक रही थीं।

करन गरजकर आगे बढ़ा। पहली परछाईं ने हमला किया, उसकी लंबी काली बाँह करन पर झपटी। करन ने किताब से पढ़ा हुआ मंत्र दोहराया और अपनी मुट्ठी से परछाईं को मुक्का मारा। जैसे ही उसका हाथ टकराया, परछाईं धुएँ की तरह छिटककर गायब हो गई।

अनाया ने चीख़कर कहा, “करन! और भी आ रही हैं!” सचमुच, दर्जनों परछाइयाँ उनकी ओर बढ़ रही थीं। करन ने एक-एक से भिड़ते हुए अनाया से चिल्लाकर कहा, “अनाया, किताब खोल! देख उसमें इस तलवार को छूने का मंत्र लिखा होगा। जल्दी ढूँढ!”

अनाया काँपते हाथों से किताब पलटने लगी। उसके पन्ने अपने आप तेज़ी से घूमते गए और एक पन्ने पर ठहर गए। वहाँ सुनहरी स्याही से लिखा मंत्र चमक रहा था। जैसे ही अनाया ने पढ़ने की कोशिश की, उसके कानों में एक फुसफुसाहट गूँजी—“ये मत पढ़, अनाया। ये मंत्र तुझे मुझसे दूर कर देगा।”

अनाया की साँस अटक गई। उसने चारों ओर देखा—एक परछाईं उससे अलग होकर उसके बिल्कुल सामने आ खड़ी हुई थी। उसका चेहरा धीरे-धीरे साफ़ होने लगा और अनाया का दिल थम गया। वो चेहरा… उसके अपने पिता का था।

अनाया की आँखों से आँसू छलक पड़े। “पापा… आप?”

परछाईं मुस्कुराई, “हाँ बेटी। मैं तेरा ही खून हूँ। तू मेरी रगों से निकली है। तू मेरा हिस्सा है। करन तुझे नहीं समझ सकता, पर मैं तुझे कभी छोड़ नहीं सकता। ये मंत्र पढ़ेगी तो तेरा और मेरा रिश्ता टूट जाएगा। सोच ले… तुझे किसे चुनना है?”

अनाया के हाथ काँपने लगे। किताब उसके हाथों से छूटने लगी। करन ने देखा कि वो मंत्र पढ़ने से रुक रही है। उसने परछाइयों से लड़ते हुए चिल्लाकर कहा, “अनाया! ये तेरे पिता नहीं, ये तेरी यादों में घुसा हुआ साया है! पहचान उसे!”

अनाया की आँखों में आँसू और डर एक साथ तैर रहे थे। साया का चेहरा और भी मोहक बनने लगा, मानो सचमुच उसका अपना खून हो।

तभी करन घायल होते हुए भी ज़ोर से चिल्लाया, “अनाया! याद कर मैंने तुझसे क्या वादा किया था—मोहब्बत डर से बड़ी होती है! अगर तूने हार मानी तो हम दोनों खत्म हो जाएँगे!”

अनाया का दिल धड़क उठा। उसने आँखें बंद कीं और करन की आवाज़ को याद किया। उसके भीतर अचानक हिम्मत जाग उठी। उसने आँखें खोलकर किताब को कसकर पकड़ लिया और ज़ोर से मंत्र पढ़ना शुरू किया।

जैसे ही उसके होंठों से मंत्र निकला, कक्ष की दीवारें काँपने लगीं। पत्थर में गड़ी तलवार नीली रोशनी से चमकने लगी। परछाइयाँ चीख़ने लगीं और एक-एक करके धुएँ में बदलकर ग़ायब होने लगीं।

करन ज़ख़्मी हालत में लड़ते हुए तलवार तक पहुँचा। उसने दोनों हाथों से उसे पकड़कर पत्थर से खींचा। ज़मीन काँप उठी, बिजली कड़कने लगी, और तलवार पत्थर से निकल आई।

तलवार उसके हाथ में आते ही मानो जीवित हो उठी। उसकी धार से नीली लपटें फूट रही थीं।

साया की असली आवाज़ गूँजी, “नहीं! ये तलवार मेरी कैद है! इसे छूने की जुर्रत तूने कैसे की, करन?”

करन ने तलवार को ऊँचा उठाया और बोला, “क्योंकि अब तेरा खेल ख़त्म होगा। ये तलवार मेरी नहीं, हमारी मोहब्बत की है।”

अनाया ने मंत्र पूरा किया और कक्ष की छत फट गई। ऊपर से चाँदनी की एक सीधी किरण तलवार पर पड़ी। तलवार और भी चमक उठी।

अब साया की परछाई पूरी ताक़त से प्रकट होने लगी। उसका असली रूप धीरे-धीरे उभर रहा था—आधा इंसान, आधा दैत्य, और उसकी आँखें रक्त से भरी थीं।

करन ने तलवार को मज़बूती से थामा और अनाया के पास खड़ा हो गया। “अब ये आख़िरी जंग होगी, अनाया। या तो वो जीतेगा… या हम।”
कक्ष अब रणभूमि बन चुका था। दीवारें काँप रही थीं, छत से पत्थर गिर रहे थे, और हवा में दहकती गंध भर गई थी। साया का असली रूप सामने आ चुका था—वो आधा इंसान और आधा दैत्य था। उसका शरीर काले धुएँ से ढका था, मगर उसकी लाल आँखें खून की तरह चमक रही थीं।

करन तलवार थामे खड़ा था, उसकी हथेलियाँ तलवार की गरमी से जल रही थीं। मगर उसने पकड़ ढीली नहीं की। अनाया उसके पीछे नहीं रही, बल्कि उसके साथ आ खड़ी हुई। उसकी आँखों में अब डर नहीं, बल्कि वही जज़्बा था जो करन की आँखों में था।

साया ने गूँजती आवाज़ में कहा, “मूर्ख इंसानों! तुम सोचते हो कि एक तलवार और कुछ मंत्र मेरी सदियों की ताक़त को तोड़ देंगे? मैं अनाया के खून में हूँ। जब तक उसकी साँसें चलती हैं, मैं अमर हूँ।”

अनाया काँप उठी। उसका दिल ज़ोर से धड़कने लगा। मगर करन ने उसका हाथ पकड़कर कहा, “अनाया, सुन। तेरे खून में जो ज़हर है, उसे सिर्फ़ तेरी हिम्मत ही मिटा सकती है। इस लड़ाई में तुझे मेरे साथ खड़ा होना होगा।”

अनाया ने सिर हिलाया। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे, मगर उनमें अब दृढ़ता झलक रही थी।

साया गरजता हुआ उन पर झपटा। उसका पूरा शरीर काले तूफ़ान जैसा घूम रहा था। करन ने तलवार घुमाई, उसकी धार से नीली लपटें निकलीं और साया से टकराईं। एक भयंकर विस्फोट हुआ और पूरा कक्ष गूँज उठा।

साया दर्द से चीखा, मगर उसकी आवाज़ में अब भी घमंड था। “तलवार मुझे चोट पहुँचा सकती है, मगर मिटा नहीं सकती। मुझे खत्म करने के लिए अनाया को खुद अपने खून का बलिदान देना होगा।”

अनाया का चेहरा सफ़ेद पड़ गया। “मतलब… मुझे अपनी जान देनी होगी?”

करन का दिल डूब गया। “नहीं अनाया! मैं तुझे खो नहीं सकता।”

साया हँस पड़ा। “यही तेरी कमजोरी है, करन। मोहब्बत… यही तेरे पतन का कारण बनेगी।”

करन ने ज़ोर से तलवार लहराई और साया पर टूट पड़ा। हर वार नीली आग में बदल जाता और साया की परछाईं को काट डालता। मगर जितना वो कटता, उतना ही फिर से जुड़ जाता।

अनाया ने किताब उठाई और काँपते हाथों से पन्ने पलटने लगी। तभी उसे एक मंत्र दिखाई दिया—“बंधन तोड़ो, रक्त शुद्ध करो।” उसकी आँखें फैल गईं। उसमें लिखा था कि अगर श्रापित खून को पवित्र किया जाए तो दैत्य का बंधन टूट जाएगा।

उसने चिल्लाकर कहा, “करन! मुझे तलवार चाहिए।, हमें दोनों को मिलकर इसे चलाना होगा।”

करन ने पलभर उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में वही दृढ़ता थी जो पहले कभी नहीं देखी थी। उसने तलवार उसके हाथ में थमा दी।

अनाया ने मंत्र पढ़ना शुरू किया। जैसे-जैसे उसके होंठों से शब्द निकलते, तलवार नीली नहीं, बल्कि सुनहरी रोशनी से चमकने लगी। उसकी धार से रोशनी की लपटें फैलकर पूरे कक्ष को रोशन करने लगीं।

साया चीख़ उठा। “नहीं! ये असंभव है। एक नारी अपने ही श्राप को तोड़े? ये नहीं हो सकता!”

अनाया ने गरजती आवाज़ में कहा, “मैं तेरी कैदी नहीं, मैं अपनी मोहब्बत की रक्षक हूँ।”

दोनों ने मिलकर तलवार उठाई और सीधे साया के सीने में उतार दी। एक विस्फोट हुआ। साया दर्द से तड़पने लगा। उसका शरीर फटने लगा, उसकी लाल आँखें बुझने लगीं।

उसने आख़िरी बार करन और अनाया को देखा और कराहकर कहा, “ये जंग… अभी… पूरी नहीं हुई…” फिर उसका शरीर धुएँ में बदल गया और पूरा कक्ष ढहने लगा।

करन ने अनाया का हाथ पकड़कर उसे ऊपर की ओर खींचा।जैसे ही वे घाटी से बाहर आए, मंदिर पूरी तरह धराशायी हो गया।

करन और अनाया धड़कते दिलों के साथ खड़े थे। उनके हाथ अब भी तलवार थामे थे, जो धीरे-धीरे सामान्य चाँदी की चमक में बदल रही थी।

अनाया ने करन की ओर देखा। उसकी आँखों में आँसू थे। “करन… क्या सचमुच सब ख़त्म हो गया?”