Mohabbat ke wo Din - 5 in Hindi Love Stories by Bikash parajuli books and stories PDF | मोहब्बत के वो दिन - 5

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मोहब्बत के वो दिन - 5

सुबह का सूरज अभी पूरी तरह निकला नहीं था, लेकिन Bikash की नींद खुल चुकी थी।
रात की डायरी और Maina के शब्द—“इसे नाम न दें, धीरे-धीरे बढ़ने दें”—उसके दिमाग में गूंज रहे थे।
ये वाक्य हल्का भी था और भारी भी।
हल्का इसलिए कि उम्मीद थी, और भारी इसलिए कि जिम्मेदारी थी।

वो छत पर गया। ठंडी हवा चेहरे से टकराई।
आज दिल में जल्दबाज़ी नहीं थी—बस सुकून था।

कॉलेज में बदला हुआ एहसास

कैंपस में कदम रखते ही Bikash ने महसूस किया—सब कुछ वैसा ही है,
पर फिर भी… कुछ बदला हुआ।

Maina दूर से आती दिखी।
आज वो सादे नीले सूट में थी, बाल खुले, कंधों पर गिरते हुए।
उसकी चाल में वही आत्मविश्वास, पर आँखों में कुछ नया—
पहचान।

Maina ने उसे देखते ही मुस्कुराकर हाथ हिलाया।
वो मुस्कान अब सिर्फ दोस्ती की नहीं लग रही थी,
उसमें अपनापन था।

“Good morning, writer sahab.”
उसने शरारत से कहा।

Bikash हँसा—
“Good morning… reader madam.”

दोनों साथ चलने लगे।
कदम पहले जैसे ही थे, पर दूरी अपने-आप कम थी।

क्लास में छुपी नज़दीकियाँ

क्लास के दौरान दोनों अलग-अलग बेंच पर बैठे थे,
लेकिन नजरें बार-बार मिल जातीं।

Maina नोट्स लिखते हुए बीच-बीच में उसकी ओर देखती,
और Bikash हर बार खुद को संभालता—
दिल की धड़कन तेज़ न हो जाए।

एक पल ऐसा आया जब टीचर ने सवाल पूछा।
Maina ने जवाब दिया, पर बीच में अटक गई।
Bikash ने बिना आवाज़ किए उसे सही शब्द बता दिया।

Maina ने राहत की साँस ली और मुस्कुराकर थैंक्यू कहा—
सिर्फ होंठों से, आवाज़ नहीं।

उस छोटी-सी बात में भी भरोसा था।

कैंटीन की चाय और नई सीमाएँ

लंच में दोनों कैंटीन पहुँचे।
पहले जैसी मस्ती नहीं थी,
पर अजीब सी शांति थी।

Maina ने चाय का कप उठाते हुए कहा—
“कल जो हुआ… उसके बाद मुझे डर था कि शायद चीज़ें अजीब हो जाएँगी।”

Bikash ने सिर हिलाया—
“मुझे भी।
पर अभी ऐसा नहीं लग रहा।”

Maina ने मुस्कुराकर कहा—
“क्योंकि हम दिखावा नहीं कर रहे।
ना प्यार जताने की कोशिश, ना दूर भागने की।”

Bikash ने धीरे कहा—
“बस… साथ हैं।”

Maina ने उसकी बात पूरी की—
“हाँ, बस साथ हैं।”

कैंटीन के शोर के बीच वो पल बहुत निजी था।

लाइब्रेरी में पढ़ाई और भरोसा

शाम को दोनों फिर लाइब्रेरी पहुँचे।
इस बार Bikash की डायरी बैग में नहीं थी।
Maina ने गौर किया।

“आज डायरी नहीं लाए?”

Bikash मुस्कुराया—
“आज नहीं।
आज पढ़ाई करनी है।”

Maina हँस दी—
“अच्छा है, वरना मैं फिर पढ़ लेती।”

दोनों साथ बैठे,
नोट्स बनाए, एक-दूसरे से सवाल पूछे।

बीच-बीच में Maina Bikash के नोट्स देखती,
और कभी-कभी उसके हाथ पर उंगली रखकर कहती—
“यहाँ ये वाला पॉइंट जोड़ो।”

वो स्पर्श छोटा था,
पर दिल के लिए काफी।

कॉलेज की बातें और बाहरी दुनिया

कॉलेज के कुछ दोस्त अब नोटिस करने लगे थे।
कोई फुसफुसाता, कोई मुस्कुराता।

एक दोस्त ने Maina से पूछा—
“ये Bikash के साथ इतना टाइम?”

Maina ने सहजता से जवाब दिया—
“हम अच्छे दोस्त हैं।”

ये शब्द सुनकर Bikash के दिल में हल्की कसक हुई,
पर उसने खुद को रोका।

Maina ने बाद में खुद ही कहा—
“बुरा मत मानना।
अभी यही ठीक है।”

Bikash ने गहरी साँस लेकर कहा—
“मुझे समझ है।”

यही समझ शायद इस रिश्ते की सबसे मजबूत नींव थी।

शाम की सैर और अनकहे वादे

कॉलेज से निकलकर दोनों थोड़ी देर पैदल चले।
सड़क किनारे पेड़, ढलती शाम, हल्की हवा।

Maina ने कहा—
“तुम्हें पता है,
मुझे अच्छा लगता है कि तुम मुझसे कुछ माँगते नहीं।”

Bikash ने पूछा—
“क्या मतलब?”

“मतलब,
तुम मुझ पर दबाव नहीं डालते।
न जवाब का, न वादे का।”

Bikash ने धीरे कहा—
“क्योंकि मैं चाहता हूँ कि जो भी हो,
तुम्हारी मर्जी से हो।”

Maina ने चलते-चलते उसका हाथ थाम लिया—
कुछ सेकंड के लिए।
फिर खुद ही छोड़ दिया।

वो पल किसी वादे से कम नहीं था।
रात का मैसेज

उस रात पहली बार Maina का मैसेज आया—
 “आज अच्छा लगा।
बिना किसी नाम के,
बिना किसी डर के।”



Bikash ने जवाब दिया—

“मुझे भी।
शायद यही सबसे सही शुरुआत है।”



फोन साइड में रखकर Bikash मुस्कुराया।
आज वो जान गया था—

प्यार हमेशा तेज़ नहीं होता।
कभी-कभी वो धीरे-धीरे, दोस्ती की शक्ल में
दिल तक पहुँचता है।