Mohabbat ke wo Din - 3 in Hindi Love Stories by Bikash parajuli books and stories PDF | मोहब्बत के वो दिन - 3

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मोहब्बत के वो दिन - 3

कॉलेज का दिन हमेशा जैसा नहीं था। आज हल्की धूप थी, हवा में नमी कम और कैंपस में एक अलग-सी हलचल। Bikash जल्दी उठा, जल्दी तैयार हुआ और घर से निकलते समय कुछ अलग आत्मविश्वास महसूस कर रहा था।

शायद वजह वही थी — Maina।

रात तक उसके चेहरे और उसकी हँसी याद आते रहे।
डायरी के सारे पन्ने उसका नाम बोलते रहे।
Bikash को अब हर सुबह किसी उम्मीद से शुरू होती थी — आज वो मिलेगी।

कैंपस में नई रौशनी

कॉलेज पहुँचा तो देखा, Maina फव्वारे के पास बैठी हुई कुछ लिख रही थी।
उसके बाल हवा में उड़ रहे थे, पैर हल्के-हल्के जमीन पर झूल रहे थे, और चेहरे पर वही पुरानी कोमल मुस्कुराहट।

Bikash थोड़ा ठहरा, जैसे यह दृश्य देखकर दिल भर आया हो।
फिर धीरे-धीरे उसके पास गया।

"Good Morning, Maina."
उसने उतनी ही सादगी से कहा।

Maina ने चेहरा उठाया—
"Good Morning, Bikash! आज काफी खुश लग रहे हो।"

बिकाश ने हल्की हँसी में कहा—
"शायद आज का दिन अच्छा होने वाला है।"

Maina ने पेन बंद किया और बैग उठाया—
"तो चलो, दिन अच्छा बनाते हैं।"

दोनों साथ कॉरिडोर की ओर बढ़ने लगे।
पर किसी को क्या पता था — यह दिन सिर्फ अच्छा नहीं, यादगार बनने वाला है।

क्लास खत्म और अचानक की जल्दी

लंच ब्रेक के बाद दोनों को तीसरी मंज़िल वाले विभाग में जाना था।
Maina थोड़ा लेट हो गई थी, और Bikash उसके साथ चलने लगा।
सीढ़ियाँ चढ़ना थोड़ा लंबा था, इसलिए उन्होंने लिफ्ट का रास्ता लिया।

दोनों अंदर घुसे —
लिफ्ट में दो और छात्र थे।
लिफ्ट ऊपर जाने लगी, 1st… 2nd… फिर अचानक झटका— और रुक गई।

अंधेरा नहीं था, पर लिफ्ट थम गई थी।

दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा।
Maina ने हल्की साँस छोड़ी —
"Oh no… ये तो अटक गई।"

दूसरे दो छात्र थोड़ी देर बाद मदद बुलाने के लिए अलार्म बटन दबाकर चिल्लाने लगे, फिर कुण्डी खोलने की कोशिश में लग गए।
देखा कि ऊपर थोड़ी जगह है, और किसी तरह वो दोनों बाहर निकल गए।

अब लिफ्ट में सिर्फ Bikash और Maina बचे थे।

दो लोग, एक बंद जगह, और अनकही बातें

कुछ पल दोनों चुप रहे।
हवा थोड़ी भारी लगने लगी थी।
लेकिन Bikash ने धीरे से पूछा—

"डर लग रहा है?"

Maina ने मुस्कुराकर सिर हिलाया—
"थोड़ा-सा। लेकिन तुम हो ना?"

Bikash के अंदर कहीं कुछ गरमाहट सी फैल गई।
उसने कहा—
"हाँ, मैं हूँ। जब तक बाहर नहीं निकलते, हम साथ हैं।"

Maina टाइट जगह में बैठ गई और बैग गोद में रख लिया।
Bikash भी फर्श पर शांत होकर उसके पास आ गया।

"कभी-कभी जिंदगी भी ऐसी फँसी हुई लगती है…"
Maina की आवाज़ बहुत धीमी थी।

"कैसे?" Bikash ने पूछा।

"जैसे सब रास्ते बंद हैं, बस इंतज़ार है कि कोई दरवाज़ा खुलेगा।"

Bikash ने उसे ध्यान से देखा।
आज उसकी मुस्कुराहट के पीछे छिपा सच थोड़ा दिख रहा था।

दिल खोलकर पहली बार

Maina ने दीवार पर सिर टिकाया।
कंधे झुके हुए, आँखों में नमी — जैसे उसके भीतर कुछ भारी था।

"Bikash… तुम्हें पता है, मैं हमेशा खुश नहीं रहती।
मैं मुस्कुराती हूँ क्योंकि उदासी दिखाने से लोग दूर चले जाते हैं।"

Bikash पास आकर सहज स्वर में बोला—
"मैं दूर नहीं जाऊँगा।"

उसने धीरे से Maina की तरफ देखा,
"कभी जाना चाहो, तब भी नहीं?"

Bikash की आवाज़ शांत पर दृढ़ थी—
"नहीं।"

Maina ने आँखें बंद कर लीं।
शायद पहली बार उसे किसी ने ऐसा वादा किया था।

बातें जो दिलों को करीब लाती हैं

लिफ्ट में समय जैसे थम गया था।
बाहर मदद की आवाज़ें हल्की सुनाई दे रही थीं, पर अंदर सिर्फ दो दिलों की बातचीत चल रही थी।

Maina ने हौले से कहा—
"मैं कभी-कभी अकेलापन महसूस करती हूँ।
घर में सब बिज़ी रहते हैं, मेरी बातें सुनने का किसी के पास समय नहीं।
मैं हँसती हूँ ताकि कोई पूछे ही नहीं कि मैं ठीक हूँ या नहीं।"

Bikash ने धीरे से उसका हाथ पकड़ा।
Maina ने हाथ नहीं हटाया — शायद उसे आज सहारा चाहिए था।

"कभी दिल भारी लगे तो मुझे बता देना। मैं सुनने के लिए हूँ।"
Bikash ने कहा।

Maina धीरे-धीरे मुस्कुराई—
"तुम अच्छे हो, Bikash। बहुत अच्छे।"

उसने हाथ को थोड़ा कसकर पकड़ा —
खामोशी में भी अपनापन था।

लिफ्ट खुली — पर रिश्ता नया हुआ

करीब पंद्रह मिनट बाद ऊपर से आवाज़ आई—
"लिफ्ट ठीक हो गई है, धीरे से बाहर आइए!"

दरवाज़ा खुला।
लोगों ने दोनों को बाहर आने में मदद की।

Maina ने राहत की लंबी साँस ली,
पर जाते-जाते एक पल ठहरी और Bikash की ओर मुड़कर बोली—

"धन्यवाद… मेरे साथ रहने के लिए।"

Bikash ने बस इतना कहा—
"कभी भी।"

दोनों नीचे की ओर चल पड़े।
रास्ता वही था, कॉलेज वही था, पर कुछ चीज़ें बदल चुकी थीं।

आज सिर्फ लिफ्ट नहीं रुकी थी—
दूरी भी रुकी थी।
और दिलों के दरवाजे खुल गए थे।

शाम का फोन कॉल — पहली बार बिना झिझक

उस रात पहली बार Maina ने खुद कॉल किया।
कॉल रिसीव होते ही उसकी धीमी-सी आवाज़…

"Bikash… तुम हो?"

"हाँ, हमेशा।"

दोनों देर तक बातें करते रहे—
क्लास, बारिश, सपने, डर, हँसी…
सब कुछ जैसे आज सहज था।

कॉल के अंत में Maina ने कहा—
"अच्छा लगता है तुमसे बात करके।"

Bikash के चेहरे पर हल्की मुस्कान फैली।
वो बोला—
"मुझे भी।"

फोन रख दिया गया, पर धड़कनें नहीं रुकीं।
नींद आज आसानी से नहीं आने वाली थी — दोनों के लिए।

 आज रिश्ता सिर्फ मुलाकात या मुस्कान नहीं रहा।
आज Bikash ने Maina को समझा, सुना, थामा।
और Maina… उसने Bikash पर भरोसा किया।

शायद प्यार अभी नाम नहीं बना,
पर उसकी नींव आज और मजबूत हो गई।