Mohabbat ke wo Din - 2 in Hindi Love Stories by Bikash parajuli books and stories PDF | मोहब्बत के वो दिन - 2

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मोहब्बत के वो दिन - 2

सुबह का मौसम शांत था। आसमान हल्का धुंधला, हवा नम और ठंडी। कॉलेज की घंटी बजने में अभी कुछ समय था, कैंपस लगभग खाली। घास पर बुझे हुए पत्ते, फव्वारे के पास हल्की धूप — सब कुछ किसी कहानी के पहले पन्ने जैसा।

Bikash अपनी बैग की स्ट्रैप ठीक करते हुए धीरे-धीरे कॉलेज की ओर चल रहा था। आज उसका मन अलग ही तरह का था। कल की मुलाकात ने दिल में कुछ ऐसा जगह बना दी थी कि रात को नींद भी पूरी नहीं आई।

क्या Maina आज मिलेगी?
क्या वो उसी तरह मुस्कुराएगी?
या शायद उसे याद ही नहीं होगा…

पर Bikash ने खुद को तसल्ली दी —
"जो होना होगा, खुद हो जाएगा।"

लाइब्रेरी में फिर मुलाकात का इंतज़ार

पहली क्लास खत्म हुई, पर Bikash का ध्यान कहीं और था।
पेन घूमता रहा, नोटबुक खाली रही, शब्द कहीं खो गए।

लंच ब्रेक जाते ही वह फिर लाइब्रेरी पहुँच गया।
वही पुराना शेल्फ, वही खिड़की से आती हल्की रोशनी, और वही उम्मीद।

कुछ मिनट तक वह किताबों में दिखता व्यस्त रहा, पर हर आहट पर सिर उठाकर देखता कि शायद Maina है।
लेकिन लाइब्रेरी आज चुप थी — जितनी किताबें मौन, उतना ही उसका मन बेचैन।

करीब दस मिनट बाद दरवाज़ा खुला।
धीमे कदमों की आहट, फिर वही आवाज़ — न बहुत तेज़, न बहुत धीमी।
"हाय Bikash..."

Bikash ने सर उठाया —
Maina सामने खड़ी थी, वही हल्की मुस्कान, जैसे किसी ने उसके इंतज़ार को रंगों में भर दिया।

"हाय… तुम आ गई!"
Bikash ने थोड़ा ज्यादा खुश होकर कहा, खुद को तुरंत संयमित भी कर लिया।

"हाँ, कल नोट्स पूरे नहीं हुए थे।"
Maina टेबल पर बैग रखकर बैठी।
Bikash भी बगल वाली सीट पर बैठ गया, जैसे यह उसका तय हुआ स्थान हो।

धीमी-धीमी बातें, जो दिल खोलती हैं

कुछ मिनट तक दोनों किताब पढ़ने का नाटक करते रहे।
बाहरी दुनिया शांत थी, अंदर धड़कनें तेज़।

तभी Maina ने धीरे पूछा —
"तुम हमेशा इतने चुप रहते हो?"

Bikash ने धीरे कहा —
"सबके सामने नहीं… पर अपने लोगों के साथ बोल लेता हूँ।"

Maina ने भौंहें उठाईं —
"मतलब मैं अभी ‘अपने लोगों’ में नहीं आती?"

अब Bikash मुस्कुरा दिया।
"हम्म… शायद आज से आ गई हो।"

Maina हँसी, वह हँसी जैसे पूरे कमरे में रोशनी भर गई हो।
उसने अपने बालों को धीरे से एक तरफ किया, और Bikash ध्यान में खो गया।

बारिश और भीगोती यादें

लाइब्रेरी से बाहर निकले तो आसमान अचानक बदल चुका था।
बादल घने थे, हवा तेज़।
कुछ ही मिनट में बारिश होने लगी — पहले धीरे, फिर तेज़।

लोग छतों के नीचे भाग रहे थे, कैंटीन के बाहर भीड़ जमा होने लगी।
Maina बारिश को देखने में मग्न थी, उसकी आँखों में चमक थी —
जैसे उसे बारिश पसंद हो। बेहद।

"चलो, भीगते हैं?"
उसने अचानक कहा।

Bikash चौंका —
"भीगेंगे? पर छाता नहीं है मेरे पास…"

Maina मुस्कुराई —
"तो? कभी-कभी बिना छाते भीगना चाहिए। जीवन में यादें बनती हैं।"

Rain drops उनके बालों, कपड़ों और पलकों पर उतरने लगीं।
Bikash ने पहली बार महसूस किया — बारिश सिर्फ मौसम नहीं, एहसास है।

दोनों छत से हटकर खुले लॉन में चले गए।
Maina ने हाथ फैलाकर बारिश को गले लगाया, Bikash उसे देखता रहा।
हर बूंद उसके दिल तक पहुँच रही थी।

वो पहली बार खुलकर बोला —
"तुम्हें बारिश बहुत पसंद है?"

Maina ने आँखें बंद कर कहा —
"हाँ। बारिश में दुनिया धीमी लगती है। दर्द नहीं रहता, बस शुद्धता रहती है।"

Bikash ने पूछा —
"और खुशियाँ?"

Maina ने उसकी ओर देखकर कहा —
"वो भी भीगने लगती हैं।"

उसकी आँखों की गहराई में कुछ छिपा था —
कुछ दर्द, कुछ कहानियाँ, कुछ अनकहे सवाल।

कॉरिडोर की गर्म चाय और गहरी बातें

बारिश कम होते ही दोनों कैंटीन पहुँचे।
भाप उड़ती चाय, हल्का संगीत, गीली खुशबू — माहौल खूबसूरत था।

Maina ने चाय का कप हाथ में लिया, उंगलियाँ गर्म भाप से गुलाबी सी हो गईं।
Bikash ने पूछा —

"तुम इतनी खुश रहती हो, जैसे दुनिया में कोई गम नहीं।"

Maina कुछ पल चुप रही।
फिर धीरे बोली —

"खुश दिखना सीखा है Bikash।
ज़रूरी नहीं कि जो हँसता है वो दर्द से दूर हो।"

Bikash ने पहली बार महसूस किया कि Maina सिर्फ मुस्कान नहीं, एक रहस्य है।
एक कहानी… और शायद वो कहानी जानने की इच्छा अब उससे छुपी नहीं।

"अगर कभी दिल चाहे, तो मैं सुनूँगा,"
उसने धीरे कहा।

Maina ने उसे थोड़ी देर देखा, जैसे परख रही हो।
फिर धीमी हँसी के साथ बोली —
"शायद एक दिन बताऊँगी।"
वापसी का रास्ता और बढ़ती नज़दीकियाँ

बारिश हल्की-हल्की फिर शुरू हुई।
दोनों साथ-साथ कॉलेज गेट की ओर चले।
Bikash की चाल पहले से धीमी थी — शायद वो चाहता था कि यह रास्ता लंबा हो जाए।

Maina ने अचानक पूछा —
"तुम सपने क्या देखते हो?"

Bikash ने कुछ सोचा —
"मिडिल-क्लास लड़के के वही सपने।
एक अच्छी जॉब, माँ-बाप की जिम्मेदारी पूरी…
और कभी शायद किसी को इतनी मोहब्बत करूँ कि वो भी गर्व से मेरा नाम ले।"

Maina की आँखें चमकीं,
"खूबसूरत सपना है।"

और फिर उसने पूछा —
"अगर मैं कहूँ, कि तुम अच्छा लिखते हो, अच्छा बोलते हो,
तो क्या तुम खुद को मुझसे अलग समझोगे?"

Bikash मुस्कुराया,
"शायद नहीं।
शायद मैं तुम्हारी वजह से खुद को थोड़ा बेहतर महसूस करूँगा।"

एक पल के लिए दोनों ने एक-दूसरे की तरफ देखा।
नज़रें मिलीं, और कुछ अनकहा सा दिल में उतर गया।
न कोई इकरार, न कोई वादा —
बस एक गहरा अहसास कि ये रिश्ता अब सिर्फ दोस्ती नहीं रहने वाला।

रात का अंत, भावनाओं की शुरुआत

घर लौटकर Bikash ने बैग एक तरफ रखा और सीढ़ियों पर बैठ गया।
बारिश की बूंदें अब भी छत से गिर रही थीं, जैसे दिन की यादें दोहरा रही हों।
उसने अपनी डायरी खोली — पहली बार लिखने का मन किया।
"आज वो फिर मिली।
बारिश में भीगी, हँसी और थोड़ी उदास भी लगी।
उसके हर जवाब में कहानी है।
नज़दीक आ रही है — शायद मैं भी।
दिल अब सिर्फ धड़कता नहीं… वो किसी का इंतज़ार करता है।"

डायरी के आखिरी पेज पर Bikash ने लिखा —
Maina.
और फिर बस उसे लंबे समय तक देखता रहा।

किस्मत ने दोनों को तीसरी बार मिलाया था।
अहसास अब शब्द बन रहे थे…
और शब्द धीरे-धीरे प्यार बनने लगे थे।