The Last Door – The True Power of a Woman in Hindi Short Stories by Tanya Singh books and stories PDF | आखिरी दरवाज़ा — एक औरत की असली ताकत

Featured Books
Categories
Share

आखिरी दरवाज़ा — एक औरत की असली ताकत

राधिका एक साधारण-सी दिखने वाली, लेकिन अंदर से बेहद संवेदनशील लड़की थी। दिनभर ऑफिस में मेहनत करती, बॉस की डांट सहती, घर लौटकर माँ की दवाइयाँ बनाती—उसकी ज़िंदगी किसी और को बहुत सामान्य लगती थी। मगर मन के एक कोने में छुपी उसकी अपनी लड़ाइयाँ किसी को नज़र नहीं आती थीं।
लोग कहते थे,
“राधिका बहुत सीधी है… दुनिया से कैसे लड़ेगी?”
वो बस मुस्कुरा देती—क्योंकि उसे भी नहीं पता था कि उसके अंदर कितना दम है।

एक रात जिसने सब बदल दिया

दिसंबर की ठंडी रात थी। ऑफिस से काम ज्यादा मिल जाने के कारण वो देर से निकली। सड़कें लगभग खाली थीं, हवा में धुंध थी, और गली के दोनों तरफ़ अँधेरा पसरा हुआ था। गली में कदम रखते ही उसे अपनी धड़कन थोड़ी तेज़ महसूस हुई।

उसी समय, दो परछाइयाँ उसके पीछे चलने लगीं।
पहले तो उसने ध्यान नहीं दिया, पर जैसे-जैसे कदमों की आवाज़ मिलती गई, उसे एहसास हुआ कि कुछ ठीक नहीं है।

उसकी रफ्तार बढ़ी।
उनकी रफ्तार भी बढ़ी।

राधिका ने पलटकर देखा—दो अनजान आदमी, शराब की बदबू और गंदी मुस्कान के साथ उसके पीछे आ रहे थे।
उसकी रीढ़ में सिहरन दौड़ गई।
हाथ पसीने से भर गए।

डर पहली बार नहीं था, पर आज की रात अलग थी।

टूटने और खड़े होने के बीच एक सेकंड

इमारत की सीढ़ियों पर जैसे ही वो कदम रखती है, उनमें से एक आदमी आगे बढ़कर उसकी राह रोक देता है।
दूसरा उसके पीछे खड़ा हो जाता है।

“घबराओ मत, हम तो मदद करने आए हैं…”
उनकी हँसी राधिका की नसों को जमा देने वाली थी।

उस पल में उसे अपने सारे डर याद आए—
बचपन में पड़ोस का अंकल जिससे वो डरती थी,
कॉलेज में लड़कों की बदतमीज़ी,
ऑफिस में छुपी हुई टिप्पणियाँ…

लेकिन फिर उसे एक और चीज़ याद आई—
पिता की आवाज़:
“डर लगने लगे तो भागो मत… एक सेकंड रुककर सोचना कि तुम गिरोगी या खड़ी हो जाओगी।”

उस पल वो रुक गई।
उसकी आँखों में आया भय अचानक साफ़, स्थिर और तेज़ हो गया।

और फिर… आग जाग गई

जैसे ही आदमी ने उसकी कलाई पकड़ने की कोशिश की—
राधिका ने उसकी उंगलियों को इतनी ताकत से मोड़ा कि उसकी चीख सुनसान सड़क पर गूंज उठी।
दूसरा उस पर झपटा, लेकिन राधिका ने सीढ़ी का सहारा लेकर खुद को घुमाया और उसके पेट में जोरदार घूँसा मारा।

वो दोनों लड़खड़ा गए—पर राधिका रुकी नहीं।
उसके भीतर की औरत अब सिर्फ़ बच नहीं रही थी…
लड़ रही थी।

उसने अपने बैग से टॉर्च निकाली, उसकी तेज़ रोशनी दोनों की आँखों पर मारी।
आसपास का दरवाज़ा पीटकर मदद के लिए चिल्लाई,
“कोई है? नीचे आइए! अभी!”

चौकीदार भागता हुआ आया, इमारत के लोग बाहर निकलने लगे।

आदमियों ने भागने की कोशिश की,
लेकिन राधिका ने उनकी ओर देखकर इतनी दृढ़ आवाज़ में कहा—
“जहाँ खड़े हो वहीं रुको। आज तुम गलत औरत पकड़े हो।”

उसकी आवाज़ में ऐसी शक्ति थी कि दोनों एक पल को जम गए।

लोगों की भीड़ और एक नई पहचान

कुछ ही मिनटों में पुलिस आ गई।
दोनों आदमी पकड़ लिए गए।
उसकी बयान रिकॉर्ड हुआ।

इमारत की महिलाएँ उसे देखकर फुसफुसा रहीं थीं—
“राधिका? ये इतनी बहादुर है? हमें तो लगता था बहुत दब्बू है…”
“काश हममें भी ऐसा दम होता…”

राधिका पहली बार सबकी निगाहों से नहीं घबराई।
उसके पास डरने का कोई कारण बचा ही नहीं था।
वो जान चुकी थी कि ताकत किसी बॉडी में नहीं, किसी आवाज़ में नहीं…
ताकत फैसले में होती है।
आज उसने वही फैसला लिया था—
“मैं डरकर नहीं जिऊँगी।”

उस रात के बाद…

उसी रात राधिका अपनी छत पर खड़ी होकर शहर की रोशनी देख रही थी।
ठंडी हवा उसके चेहरे को छू रही थी, लेकिन उसके अंदर कहीं गर्माहट थी—आत्म-सम्मान की।

उसने सोचा—
अब अगर कोई उस पर उंगली भी उठाएगा तो वो चुप नहीं रहेगी।
ऑफिस में अपने हक के लिए बोलेगी।
घर में अपने फैसले खुद लेगी।
सड़क पर किसी को उसके साथ गलत करने नहीं देगी।

और सबसे ज़रूरी—
वो किसी और लड़की को भी चुप रहने की सलाह नहीं देगी।

उस रात राधिका ने एक दरवाज़ा हमेशा के लिए बंद कर दिया—
डर का दरवाज़ा।

और खोल दिया—
अपने असली रूप का।

वो रूप जिसमें एक औरत सिर्फ़ नाज़ुक नहीं होती—वो आग भी होती है।
वो सिर्फ़ शांति नहीं… तूफान भी होती है।
वो सिर्फ़ सहारा नहीं… अपना सहारा खुद बन सकती है।

राधिका मुस्कुराई।
उसे अब खुद से डर नहीं लगता था।
क्योंकि वो जान चुकी थी—
एक औरत बिल्कुल तब सबसे ज्यादा खतरनाक होती है,
जब वो खुद को पहचान लेती है।

समाप्त।


By - Tanya Singh