(एक टूटी हुई शादी की कहानी)
शादी के पाँच साल बाद, आर्या और नील के घर में अब सिर्फ दो चीज़ें बची थीं — खामोश दीवारें और अनकही बातें।
कभी ये घर हँसी की गूंज से भरा रहता था — आर्या की खिलखिलाहट, नील के मज़ाक, और शाम को बजते उनके पसंदीदा गाने।
लेकिन अब, उस जगह पर बस घड़ी की टिक-टिक सुनाई देती थी।
आर्या खिड़की के पास बैठी थी, हाथ में कॉफी का मग था, लेकिन कॉफी ठंडी हो चुकी थी।
नील कमरे में था, अपने लैपटॉप पर किसी फाइल में डूबा हुआ — या शायद दिखा रहा था कि वो बहुत व्यस्त है।
उन दोनों के बीच सिर्फ दो कदम का फासला था,
पर वो दो कदम अब दो दुनियाओं का फासला बन चुके थे।
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शुरुआत
जब आर्या और नील की शादी हुई थी, तब सबने कहा था — “कितनी परफेक्ट जोड़ी है।”
दोनों कॉलेज के दोस्त थे, तीन साल तक रिलेशनशिप में रहे, और फिर सब कुछ ठीक लगता था।
शादी के पहले साल तक सब कुछ खूबसूरत था — लंबी बातें, छोटी-छोटी नोकझोंक, और फिर जल्दी-जल्दी मनाना।
पर धीरे-धीरे प्यार की जगह एगो और ईगो के बीच की लड़ाई ने ले ली।
नील हर चीज़ में जीतना चाहता था।
आर्या हर चीज़ में समझना चाहती थी।
लेकिन जब एक इंसान सिर्फ जीतने लगे और दूसरा सिर्फ समझाने लगे —
तो रिश्ता हार जाता है।
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दरार
एक शाम आर्या ने कहा था,
“नील, हमें बात करनी चाहिए…”
नील ने जवाब दिया था,
“हर बार तुम ‘बात’ की आड़ में लड़ाई शुरू करती हो, आर्या।”
उस दिन के बाद आर्या ने बोलना कम कर दिया।
धीरे-धीरे उसने अपने मन की बातें डायरी में लिखनी शुरू कर दीं।
वो डायरी अब उसकी एकमात्र साथी बन गई थी।
उसमें उसने लिखा था —
> “हम अब साथ तो रहते हैं, पर एक-दूसरे के नहीं रहे।”
“हमारा रिश्ता अब ज़िम्मेदारी से बंधा है, मोहब्बत से नहीं।”
और शायद वो सही थी।
अब उनके बीच मोहब्बत नहीं थी — बस आदत थी।
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मोड़
एक दिन आर्या ने नील के ऑफिस बैग में एक नोट देखा।
नील ने किसी “रिया” के लिए लिखा था — “तुमसे बात करके सुकून मिलता है।”
वो सुकून जो उसे अपनी पत्नी से मिलना चाहिए था, अब किसी और के पास था।
आर्या ने कुछ नहीं कहा।
वो सिर्फ मुस्कुराई, जैसे किसी पुराने ज़ख्म पर नया वार हो गया हो।
वो समझ चुकी थी — अब प्यार सिर्फ एक कहानी रह गया था।
उस रात उसने पहली बार खुद से कहा,
> “अब मुझे खुद को बचाना है, इस रिश्ते को नहीं।”
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अलगाव
अगली सुबह, उसने चुपचाप अपना सूटकेस निकाला।
कपड़े तह किए, कुछ किताबें रखीं, और वो डायरी — जो अब उसके आँसुओं की गवाह थी।
नील कमरे में आया, हैरान था।
“क्या मतलब तुम जा रही हो?” उसने पूछा।
आर्या शांत स्वर में बोली —
“मतलब वही जो तुम सालों से करते आ रहे हो — दूर रहना।”
नील ने उसकी आँखों में देखा — वहाँ ग़ुस्सा नहीं था,
बस थकान थी, और एक अजीब-सी शांति।
शायद उसने मान लिया था कि हर लड़ाई का एक अंत होता है,
और अब उनका रिश्ता उस अंत पर पहुँच चुका था।
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आख़िरी मुलाक़ात
आर्या जब दरवाज़े तक पहुँची,
नील ने धीमे से कहा,
“आर्या… अगर मैं सच में बदल जाऊँ तो?”
वो रुकी।
उसने पीछे मुड़कर कहा —
“नील, जो चीज़ एक बार टूट जाए,
वो जुड़ तो सकती है,
पर पहले जैसी नहीं हो सकती।”
वो चली गई — बिना आँसू, बिना शोर, बस एक सुकून के साथ।
नील दरवाज़े पर खड़ा रहा,
उसके हाथों में वो डायरी थी जो आर्या भूल गई थी।
उसने पहली बार उसके पन्ने खोले —
हर शब्द में खुद की परछाई थी।
हर पंक्ति में वो गलती थी जो उसने कभी स्वीकार नहीं की।
> “मैं अब भी नील से प्यार करती हूँ,
लेकिन अब मैं खुद से नफ़रत नहीं करना चाहती।”
नील ने वो लाइन पढ़ी और पहली बार रो पड़ा।
वो जान गया — उसने सिर्फ एक औरत नहीं खोई,
उसने अपने अंदर का इंसान खो दिया।
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समय के बाद
छह महीने बीत गए।
आर्या अब एक स्कूल में पढ़ाती थी।
वो बच्चों के बीच हँसती थी, पर भीतर अब भी एक खालीपन था।
वो जानती थी — कुछ रिश्ते कभी पूरी तरह खत्म नहीं होते,
वो बस हमारे अंदर कहीं अधूरे रह जाते हैं।
एक दिन उसे एक पार्सल मिला।
अंदर एक किताब थी — “अधूरा रिश्ता” — लेखक: नील अरोड़ा।
उसके पहले पेज पर लिखा था —
> “तुम्हारे बिना भी लिखना सीखा,
पर तुम्हारे बिना जीना नहीं।”
आर्या ने किताब को छाती से लगाया और मुस्कुरा दी।
उसके आँसू पहली बार दर्द से नहीं,
बल्कि मुक्ति से बहे थे।
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अंत
कभी-कभी नफ़रत भी प्यार की ही एक परत होती है —
बस फर्क इतना होता है कि अब वो प्यार हमें नहीं,
हमारे पुराने ‘खुद’ को याद करता है।
आर्या और नील का रिश्ता भले ही खत्म हो गया,
पर उनकी कहानी ने सिखाया —
> “कुछ मोहब्बतें पूरी नहीं होतीं,
पर अधूरी ही सबसे सच्ची होती हैं।”
- By Tanya Singh