दिल्ली की हल्की सर्दी ने शहर को एक मुलायम धुंध से ढक रखा था। सड़क के दोनों ओर लगे गुलमोहर के पेड़ों के नीचे लोग अपने-अपने सफ़र में भाग रहे थे। लेकिन कैफ़े “Blue Mug” के एक कोने में बैठी रिया जैसे किसी और ही दुनिया में खोई थी। उसकी मेज़ पर एक अधूरी कॉफी रखी थी, जो अब ठंडी हो चुकी थी — ठीक वैसे ही जैसे उसका रिश्ता आर्यन से।
रिया एक ग्राफ़िक डिज़ाइनर थी, दिल्ली की एक बड़ी विज्ञापन एजेंसी में काम करती थी। अपने काम में डूबी रहने वाली, हंसमुख, और हर किसी से अपनापन जताने वाली लड़की। वहीं आर्यन एक फोटोग्राफ़र था — आज़ाद ख्यालों वाला, जो रिश्तों को भी कैमरे की तरह देखता था: “जब तक फ़्रेम खूबसूरत लगे, क्लिक करो… फिर आगे बढ़ जाओ।”
दोनों की मुलाक़ात तीन साल पहले इसी कैफ़े में हुई थी।
रिया अपने लैपटॉप पर एक प्रोजेक्ट पूरा कर रही थी, और आर्यन बगल की टेबल पर किसी मॉडल की तस्वीरें एडिट कर रहा था।
“Excuse me, WiFi पासवर्ड मिलेगा?” — आर्यन ने मुस्कुराते हुए पूछा।
रिया ने हल्की सी मुस्कान के साथ पासवर्ड बताया — और शायद उसी मुस्कान ने दोनों की ज़िंदगियों में एक नया पन्ना खोल दिया।
धीरे-धीरे मुलाक़ातें कॉफी कप्स के साथ बढ़ती गईं।
कभी काम की बातें, कभी सपनों की, कभी बचपन की यादें।
रिया को आर्यन में वो सादगी दिखती थी जो बड़े शहरों में खो गई थी। और आर्यन को रिया में वो अपनापन जो उसे कहीं नहीं मिला था।
कई शामें ऐसे ही बीत गईं।
आर्यन अक्सर कहता —
“रिया, जब मैं कैमरा उठाता हूं, तो हर तस्वीर में तुम्हारा चेहरा दिखता है।”
रिया हँस देती —
“फिर मैं दुनिया की सबसे सुंदर लड़की बन गई क्या?”
“नहीं,” आर्यन कहता, “सबसे सच्ची।”
धीरे-धीरे दोनों के बीच वो रिश्ता पनपने लगा, जिसे नाम देने की ज़रूरत नहीं थी।
लेकिन शहर की तेज़ रफ़्तार और ज़िम्मेदारियों की भी अपनी माँग होती है।
रिया को प्रमोशन मिला, और साथ ही काम का बोझ भी।
वहीं आर्यन को एक इंटरनेशनल प्रोजेक्ट मिला — यूरोप में।
“बस कुछ महीनों की बात है,” आर्यन ने कहा था, “फिर लौट आऊँगा।”
रिया ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया, लेकिन उसके अंदर एक अनकहा डर बैठ गया था —
कहीं वो लौटेगा नहीं।
तीन महीने बीत गए।
रिया हर सुबह अपने फ़ोन पर नोटिफ़िकेशन देखती, शायद आर्यन का कोई मैसेज, कोई फोटो, कोई कॉल...
पर कुछ नहीं।
उसने कई बार मैसेज किया —
“कैसी चल रही है शूटिंग?”
“मुझे तुम्हारी याद आती है…”
“कम से कम एक बार बात तो करो आर्यन…”
लेकिन हर बार सिर्फ़ “seen” का नीला निशान दिखाई देता।
धीरे-धीरे उसकी रातें लंबी होने लगीं।
कॉफी के प्याले बढ़ते गए, पर जवाब नहीं आया।
काम में डूबी रहने वाली रिया अब हर चीज़ में सुन्न हो गई थी।
एक दिन, ऑफिस की मीटिंग के दौरान ही उसका फ़ोन वाइब्रेट हुआ।
आर्यन का नाम स्क्रीन पर चमक रहा था।
दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं।
उसने बिना सोचे कॉल उठाया —
“आर्यन?”
फोन के उस पार एक ठंडी सी आवाज़ थी —
“रिया… मैं वापस नहीं आ पाऊँगा।”
“क्या मतलब?” — रिया की आवाज़ काँप गई।
“मुझे यहां रहना है। कुछ नया शुरू किया है। और… किसी से मिला भी हूँ।”
कमरे की दीवारें जैसे सिकुड़ने लगीं।
रिया ने कुछ नहीं कहा। बस फोन कट गया।
वो कुछ देर तक स्क्रीन को देखती रही।
फिर धीरे से बोली —
“कम से कम अलविदा तो कह देते…”
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साल बीत गया।
रिया अब भी उसी कैफ़े “Blue Mug” में जाती थी,
जहाँ उसने पहली बार आर्यन से मुलाक़ात की थी।
वो उसी कोने की टेबल पर बैठती, वही कॉफी मंगवाती —
बस अब उसके सामने कोई नहीं बैठता।
कभी-कभी वो सोचती, शायद उसने कुछ गलत किया होगा।
शायद उसने प्यार को बहुत गंभीरता से ले लिया।
या शायद शहर की रफ़्तार ने उनके रिश्ते को रौंद दिया।
एक दिन उसने आर्यन का इंस्टाग्राम खोला।
वहाँ उसकी नई तस्वीरें थीं —
हँसता हुआ चेहरा, नई लड़की के साथ।
कैप्शन था —
“New Beginnings ☀️”
रिया ने उस तस्वीर को देखा,
फिर मोबाइल बंद कर दिया।
उसकी आंखों से आँसू नहीं निकले —
क्योंकि कुछ दर्द रोने से नहीं, खामोशी से जीये जाते हैं।
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कुछ महीनों बाद रिया की ज़िंदगी फिर पटरी पर आने लगी।
उसने एक नया प्रोजेक्ट शुरू किया —
“Broken Stories” नाम से एक आर्ट एग्ज़िबिशन,
जिसमें उसने अधूरी मोहब्बतों को डिज़ाइन और चित्रों में उतारा।
एग्ज़िबिशन के पहले दिन मीडिया आई, लोग आए, तालियाँ बजीं।
रिया मुस्कुराई, लेकिन उस मुस्कान में अब एक गहराई थी।
शाम को जब सब जा चुके थे,
वो फिर उसी कैफ़े के पास से गुज़री।
दरवाज़े पर रुककर उसने अंदर देखा —
वही टेबल, वही कुर्सी, वही कोना।
वेटर मुस्कुराते हुए बोला,
“मैम, वही usual coffee?”
रिया ने कहा,
“हाँ… आख़िरी बार।”
कॉफी आई, उसने कप उठाया।
धीरे से खिड़की से बाहर देखा —
सड़क पर चहल-पहल थी,
लेकिन उसके दिल में अब सन्नाटा नहीं था।
वो जान चुकी थी कि कुछ लोग हमें प्यार करना सिखाते हैं,
लेकिन साथ नहीं निभाते।
कुछ रिश्ते मुकम्मल नहीं होते,
फिर भी वो हमारी रूह में हमेशा ज़िंदा रहते हैं।
उसने कॉफी का आख़िरी घूंट लिया —
और धीरे से कहा,
“शुक्रिया, आर्यन… मुझे सिखाने के लिए कि मोहब्बत सिर्फ़ साथ रहना नहीं होती, बल्कि यादों में भी जी जा सकती है।”
फिर वो उठी, बाहर निकली, और भीड़ में खो गई —
जैसे कोई कहानी खत्म हो गई हो,
पर एहसास बाकी रह गया हो।
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समापन
उस रात दिल्ली की हवा में फिर हल्की ठंड थी,
लेकिन रिया के अंदर अब एक सुकून था।
उसने अपने दिल का दर्द शब्दों में बदल लिया था —
और वही उसके लिए प्यार का सबसे सच्चा रूप बन गया।
कभी-कभी प्यार लौटता नहीं,
पर उसका असर हमेशा रह जाता है —
एक ठंडी कॉफी की तरह,
जो खत्म तो हो जाती है,
पर उसका स्वाद… देर तक महसूस होता है।
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लेखिका: Tanya Singh
(एक ऐसी कहानी जो अधूरी होकर भी पूरी लगती है…) 💔☕