पहला इज़हार-ए-प्यार और जिंदगी का नया मोड़ मुंबई की रात हमेशा से शोर भरी मानी जाती है,पर उस रात…स्टेशन पर सिर्फ दो दिलों की धड़कनें सुनाई दे रही थीं।आदित्य और अन्या एक-दूसरे को थामे खड़े थे—एक साल का दर्द, इंतज़ार, तड़पउस एक पल में पिघल कर आँखों से बह रहा था।अन्या ने आदित्य की बाहों से अलग होकरधीरे से उसका चेहरा अपने हाथों में लिया—“कितना इंतज़ार करवाया तुमने…”उसकी आवाज़ काँप रही थी।आदित्य ने हल्की मुस्कान दीऔर सांकेतिक भाषा में कहा—“किसी का इंतज़ार हमेशा की तरह खूबसूरत बना देता है।”अन्या ने उसकी उंगलियाँ पकड़ लीं—“आज अगर तुम कुछ कहोगे नहीं…तो मैं खुद कहूँगी।”आदित्य ने इशारों से पूछा— “क्या?”अन्या गहरी सांस लेकर बोली—“मैं तुमसे प्यार करती हूँ आदित्य।इतना कि खुद से भी ज्यादा।”आदित्य की आँखों से आँसू गिर पड़े।वह घुटनों पर बैठकर जमीन पर उंगलियों से लिखा—I LOVE YOU ANANYAअन्या हँसते-रोते झुककर उसे गले लगा लिया—दिल की हर धड़कन जैसे चिल्ला रही थी—ये मोहब्बत बेजुबान नहीं रही अब…---नई शुरुआतअगले ही दिन, दोनों मरीन ड्राइव पर बैठे सूरज उगते देख रहे थे।लहरों की आवाज़ उनके वादों की गवाह बनी हुई थी।अन्या ने कहा—“अब हम सबको बता देंगे। किसी से डरकर नहीं जीना।”आदित्य ने सिर हिलाया,पर उसकी नजरों में हल्की सी बेचैनी थी।अन्या ने पूछा—“क्यों? क्या हुआ?”आदित्य ने मोबाइल पर टाइप किया—“क्योंकि यश भैया मुझे कभी स्वीकार नहीं करेंगे…मैं बोल नहीं सकता, और उनके हिसाब सेतुम्हें एक परफेक्ट लड़का चाहिए।”अन्या ने गुस्से से कहा—“प्यार परफेक्ट नहीं होता, सच्चा होता है।और तुम मेरे लिए सबसे सच्चे हो।”दोनों ने हाथ थाम लिए और तय किया—अब वो लड़ेंगे। साथ मिलकर। दुनिया से भी, और किस्मत से भी।लेकिन किस्मत ने फिर खेल खेल दिया…---ट्विस्ट उसी शाम,अन्या के घर का फोन बजा।अन्या ने उठाया—दूसरी तरफ उसकी माँ की घबराई हुई आवाज़—“अन्या, तुरंत घर आओ…तुम्हारे पापा की तबियत बहुत खराब है!”अन्या का चेहरा सफेद पड़ गया।आदित्य की आँखें भी चिंता से भर गईं।अन्या बोल पाई—“मैं अभी आती हूँ!”आदित्य ने उसका हाथ पकड़ा—आँखों में सवाल— “मैं साथ चलूँ?”अन्या ने लंबे रुककर कहा—“हाँ… अब मैं किसी से नहीं डरूँगी।”दोनों तेज़ी से घर की ओर बढ़े…लेकिन उन्हें नहीं पता था—उनका सबसे बड़ा इम्तिहान अभी शुरू हुआ था।-- (सच का सामना और सबसे बड़ा इम्तिहान)मुंबई की सड़कें रात के सन्नाटे में तेज़ी से पीछे छूट रही थीं।अन्या की आँखों से आँसू रुक नहीं रहे थे—पापा की हालत की चिंता, और साथ में आदित्य का हाथ कसकर पकड़े हुए।आदित्य उसकी हर साँस, हर डर को महसूस कर रहा था—बिना शब्दों के भी, वो सब समझ रहा था।अन्या का घरदरवाज़ा खुलते ही, घर में घबराहट का माहौल था।डॉक्टर बाहर खड़े थे, नर्स अंदर भाग-दौड़ कर रही थी।अन्या की माँ ने उसे गले लगा लिया—“पता नहीं क्या हुआ अचानक…दिल का अटैक है… हालत बहुत नाज़ुक है।”इतना कहकर माँ की नजर आदित्य पर पड़ी।चेहरा तुरंत सख्त हो गया।“ये कौन है यहाँ?”अन्या ने धीमे पर दृढ़ शब्दों में कहा—“माँ, ये आदित्य है… मेरा प्यार।”माँ के चेहरे पर एक झटका,और तभी पीछे से भारी कदमों की आवाज़—यश प्रवेश करता हैगुस्से से भरा चेहरा,आग जैसी आँखें।“मैंने कहा था ना, इस लड़के को मेरी बहन से दूर रहना चाहिए!”यश ने चीखते हुए कहा और आदित्य के कॉलर पकड़ लिया।अन्या चिल्लाई—“भैया प्लीज़! अभी झगड़े का समय नहीं है!”लेकिन यश और भड़क गया—“तुम्हारे पापा मर रहे हैं, और तुम इस गूंगे लड़के को लेकर आई हो?”ये सुनते ही आदित्य की आँखों में दर्द, पर चेहरे पर गरिमा थी।उसने खुद को छुड़ाकर सीधा खड़ा हो गया।और फिर उसने अपने हाथों से सांकेतिक भाषा में बहुत शांति से कहा—“मैं अन्या की खुशी हूँ… बोझ नहीं।”अन्या रोते हुए बोली—“भैया, आवाज़ होना ही सबकुछ नहीं होता… दिल होना भी जरूरी है।”यश चिल्लाया—“मुझे ऐसे आदमी से नफरत है जो बोल भी नहीं सकता!कैसे संभालेगा तुम्हें? कैसे चलेगा ये रिश्ता?”कुछ सेकंड की खामोशी—फिर आदित्य ने जेब से एक बड़ा सफेद लिफाफा निकाला और यश के हाथ में दे दिया।और मोबाइल पर टाइप किया—“ये मेरा नया अपॉइंटमेंट लेटर है—मैं दिल्ली के एक बड़े डिज़ाइन स्टूडियो में क्रिएटिव डायरेक्टर बना हूँ।मेरी सैलरी तुम्हारी सोच से भी ज्यादा है।मेरी बीमारी कमजोरी नहीं—मेरी ताकत है।”सन्नाटा छा गया।यश की आँखें हैरानी से फैल गईं।अन्या गर्व से मुस्कुराई—“किसी की आवाज़ नहीं, उसकी क्षमता देखो भैया।”उसी पल डॉक्टर बाहर आए—“ओपरेशन सफल रहा है, मरीज अब खतरे से बाहर है।लेकिन उन्हें तनाव बिल्कुल नहीं होना चाहिए।”सभी ने राहत की साँस ली।अन्या ने आदित्य को गले लगा लिया।यश उन्हें देख रहा था—पहली बार उसके चेहरे पर गुस्से की जगह सोच दिखाई दी।वह बोला—“अभी कुछ नहीं कहूँगा…लेकिन याद रखना—प्यार सिर्फ जज़्बात नहीं, जिम्मेदारी भी है।”और वह वहाँ से चला गया।अन्या ने धीरे से आदित्य का चेहरा छुआ और बोली—“तुमने आज मेरे लिए, हम दोनों के लिए खड़े होकर दिखाया…धन्यवाद।”आदित्य ने मुस्कुराकर इशारों में कहा—“मैं हमेशा साथ रहूँगा… हर तूफ़ान में।”दोनों हाथों में हाथ डालकर अस्पताल के कमरे की तरफ चले।आज रात… उनका बेजुबान प्यार और मजबूत हुआ था।--- (नई शुरुआत या नई मुश्किल?)अगली सुबह अस्पताल की खिड़की से हल्की धूप अंदर आ रही थी।रात भर जागने के बाद भीअन्या और आदित्य के चेहरे पर राहत थी—क्योंकि सबसे ज़रूरी इंसान अब सुरक्षित था।पापा के कमरे के बाहर सभी खड़े थे।डॉक्टर ने कहा—“मरीज को होश आ गया है, आप मिल सकते हैं…लेकिन ध्यान रहे, भावनात्मक टकराव या तनाव बिल्कुल नहीं।”अन्या के कदम काँप रहे थे,पर आदित्य ने हाथ थामकर उसे हौसला दिया।दोनों कमरे में साथ अंदर गए।पापा के साथ पहली मुलाकातपापा ने धीरे-धीरे आँखें खोलीं,अन्या को देखा—और आंखें भर आईं।“बेटा… डर गयी थी ना?”अन्या ने सिर उनके सीने पर रख दिया—“बहुत…”पापा ने उसके सिर पर हाथ फेरा—फिर उनकी नजर आदित्य पर पड़ी।आदित्य सम्मान से थोड़ा झुक गया,आँखों में विनम्रता थी।पापा ने पूछा—“ये कौन है?”अन्या ने गहरी सांस ली—“पापा… ये आदित्य है।ये मेरी जिंदगी की खुशी है।”पापा कुछ पल उसे देखते रहे—फिर बोले—“मुझे सब पता है।यश ने कल रात सब बता दिया।”अन्या डर गई,लेकिन पापा की आवाज़ बेहद शांत थी।“बोल नहीं पाता, ये लोग कहते हैं।पर मैंने अभी उसकी आँखों में सब सुन लिया है।प्यार शब्दों से नहीं, एहसास से होता है।”अन्या की आँखों से आँसू गिर पड़े।आदित्य भी भावुक हो उठा।पापा ने इशारा किया और आदित्य का हाथ पकड़कर अन्या के हाथ में रख दिया—“अगर तुम दोनों सच्चे हो…तो मैं रास्ते में नहीं खड़ा रहूँगा।”अन्या ने पापा को गले लगा लिया—“थैंक यू पापा!”आदित्य की आँखें नम थीं,वह हाथ जोड़कर पापा को धन्यवाद कहने ही वाला थाकि तभी दरवाजा ज़ोर से खुला।---नया मोड़ — नई एंट्रीअंदर आया एक सख्त चेहरा,काली शर्ट, गुस्से से जलती आँखें—रोहित मल्होत्रा।(अन्या का बचपन का दोस्त, और पापा के बिज़नेस पार्टनर का बेटा)उसकी नजर आदित्य पर पड़ी और वह तड़पकर बोला—“ये लड़का यहाँ क्या कर रहा है?”अन्या हैरान—“र—रोहित? तुम यहाँ?”रोहित ने गुस्से में कहा—“हाँ, क्योंकि तुम्हारे पापा की हालत की खबर मुझे मिली थी।और मैं उनकी बेटी को इस तरह किसी अजनबी, गूंगे लड़के के साथ देखूँगा—ये सोचा नहीं था।”आदित्य शांत रहा,लेकिन उसकी आँखें दृढ़ थीं।रोहित आगे बढ़ा और बोला—“अन्या, तुम अच्छी तरह जानती हो—मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ।हमारे परिवारों ने हमेशा यही चाहा है।”पूरा कमरा जम सा गया।अन्या स्तब्ध,पापा भी चुप…और यश दरवाज़े पर खड़ा सब देख रहा था।अन्या ने धीमे पर साफ शब्दों में कहा—“रोहित… मैं किसी और से प्यार करती हूँ।”रोहित ने हँसकर पूछा—“इससे?ये तुम्हारी रक्षा भी नहीं कर सकता।तुम्हारे शब्द तक नहीं समझ सकता!”आदित्य ने फौरन सांकेतिक भाषा में जवाब दिया—“दिल समझ सकता हूँ।और वह ही काफी है।”अन्या ने दृढ़ होकर आदित्य का हाथ पकड़ा—“मैं इसी के साथ अपनी जिंदगी बिताऊँगी।”रोहित की आँखें गुस्से से लाल हो गईं—“ठीक है।तो अब लड़ाई होगी।प्यार की नहीं… हक़ की।”और वह दरवाज़ा जोर से बंद करके चला गया।कमरे में सन्नाटा…अन्या ने घबराकर आदित्य की ओर देखा—“अब क्या होगा?”आदित्य ने उसके हाथ पर हाथ रखा,आँखों में अडिग चिंगारी—“लड़ेंगे।साथ मिलकर।किस्मत से भी, और रोहित से भी।”---- next part