Bade dil wala - Part - 3 in Hindi Motivational Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | बड़े दिल वाला - भाग - 3

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बड़े दिल वाला - भाग - 3

अभी तक आपने पढ़ा कि अनुराग और अनन्या का विवाह मंत्रों और सात फेरों के साथ संपन्न हुआ, विदाई पर अनन्या अपने माता-पिता से लिपटकर रोती रही। अनुराग ने उसे सांत्वना दी, लेकिन कार में बैठते ही अनन्या ने भीड़ में अपने प्रेमी वीर को देखकर घबराहट से अपना सिर हटा लिया। आगे क्या हुआ अब पढ़िए: -

वीर को इस तरह बारातियों के बीच खड़ा देखकर अनन्या घबरा रही थी, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। तभी उसने देखा वीर ने अपनी आंखों पर काला चश्मा चढ़ा लिया और सर पर लगी टोपी को काफ़ी नीचे सरका लिया। उसके बाद वह धीरे-धीरे कार के नज़दीक आने लगा। अनन्या के हाथ-पांव कांप रहे थे।

अनुराग के दोस्त आकर खिड़की से ही उससे हाथ मिलाकर उसे बधाई दे रहे थे।

उन्हीं के बीच वीर भी खिड़की पर आ पहुँचा। उसने अनुराग से हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो अनुराग ने कहा, "माफ़ कीजिए, मैंने आपको पहचाना नहीं।"

वीर ने कहा, "आप कैसे पहचानोगे, मैं आपसे आज पहली बार मिल रहा हूँ।"

अनुराग आश्चर्यचकित होकर उसे देख रहा था।

तब फिर वीर ने कहा, "आपकी धर्म पत्नी मेरी दोस्त है, परंतु वह मुझे शादी में बुलाना भूल गई। इसलिए मैं बिन बुलाए ही चला आया।"

अनुराग ने अनन्या की तरफ़ देखा, वह असहज हो रही थी।

अनुराग ने उससे कहा, "अनु, तुम्हारा कोई दोस्त ..."

अनन्या ने संभलते हुए बाहर देखकर कहा, "अरे वीर, तुम?"

वीर ने कहा, "तुम्हें बधाई देने आया था। इतनी ख़ुशी के अवसर पर तुम मुझे बुलाना कैसे भूल गईं," कहते हुए उसने अपना हाथ आगे बढ़ाकर कहा, "कंग्रैजुलेशंस।"

ना चाहते हुए अनन्या को भी हाथ बढ़ाना ही पड़ा। हाथ मिलाते हुए वीर ने ज़ोर से अनन्या का हाथ दबाया। ऐसा लग रहा था मानो उसका पूरा गुस्सा वह अनन्या के हाथ को दबाकर निकालेगा। अनन्या की चीख निकलने ही वाली थी कि वीर ने उसका हाथ छोड़ दिया। लेकिन उसने एक छोटा-सा कागज़ अनन्या के हाथ में पकड़ा दिया। इस समय अनुराग बाहर की तरफ़ देख रहा था। अनन्या ने जल्दी से कागज़ अपने ब्लाउज के अंदर रख लिया।

वीर ने जानबूझकर हंसते हुए पूछा, "अरे अनु, भूल तो नहीं जाओगी ना बचपन के दोस्तों को?"

अनन्या ने कोई जवाब नहीं दिया।

उसके बाद वीर ने अनुराग से पूछा, "अनुराग जी, आइए कभी अनु को लेकर हमारे घर। दोस्ती यारी बनी रहनी चाहिए।"

"ज़रूर-ज़रूर, आप भी आइए।"

"बिल्कुल, मुझे दोस्ती करना बहुत पसंद है। हमारी दोस्त के पति यानी हमारे भी दोस्त, वह तो आप अब बन ही चुके हैं।"

अनुराग कुछ कहता, उससे पहले वीर ने अनन्या की तरफ़ देखकर कहा, "अनु, देख इजाज़त मिल गई है। अब आना-जाना जारी रखना। मैं तो आने ही वाला हूँ तेरे घर।"

तब तक ड्राइवर ने कार आगे बढ़ा दी।

वीर की बातें अनुराग को अजीब लगीं, तो उसने अनन्या से पूछा, "ऐसा कैसा दोस्त है आपका, जो ख़ुद ही ख़ुद को इनवाइट कर ले रहा है?"

अनन्या ने कहा, "वह ऐसा ही है, सबसे इसी तरह से दोस्ती कर लेता है।"

अनुराग ने कहा, “पर मुझे तो वह थोड़ा चिपकु लगा।"

"जाने दीजिए ना, हमें कहाँ उससे मिलने उसके घर जाना है और ना ही हमें उसे अपने घर बुलाना है। वह तो बस वैसे ही कह रहा था।"

अनुराग ने कहा, "हो सकता है पर मुझे उसका व्यवहार थोड़ा अजीब लगा। खैर छोड़ो," कहते हुए उसने वापस अनन्या के सिर को अपने कंधे पर टिकाते हुए कहा, "सो जाओ, तुम बहुत थक गई होगी।"

अनन्या ने अपना सिर अनुराग के कंधे पर टिका दिया। परंतु उसके मन में तो वीर ही वीर था। आंखों में उसी का चेहरा समाया हुआ था। उसे ऐसा लग रहा था मानो किसी ने उसे एक अँधेरे कुऍं में धक्का दे कर गिरा दिया हो।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक 
क्रमशः