योगेश और संगीता का घर जगमगा रहा था। सुंदर बिजली की लड़ियाँ मानो बार-बार खिलखिला कर हँस रही थीं। आने-जाने वालों का मन मोहने वाली इस घर की सुंदरता में ताज़े फूलों की ख़ुशबू अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही थी। शहनाई की मद्धम-मद्धम आवाज़ लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। आज योगेश और संगीता की बेटी अनन्या की शादी थी। चमकती रोशनी और फूलों को कहाँ मालूम था कि उनकी चमक और ख़ुशबू भले कितनी ही मनमोहक क्यों न हो, लेकिन किसी एक को वह खल रही थी।
मंडप में बारात आ चुकी थी। अनन्या को मंडप में लाने से पहले सुंदर आभूषणों, लाल रंग के जोड़े और मेकअप से सजाया जा रहा था। वह तो यूं भी काफ़ी खूबसूरत थी लेकिन लाल रंग के जोड़े ने उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा दिए थे। अनन्या अपनी सहेलियों और परिवार के साथ धीरे-धीरे मंडप में आ रही थी। उधर अनुराग मंडप में बैठा, अपनी होने वाली पत्नी का इंतज़ार कर रहा था। जैसे ही उसकी नज़र अनन्या पर पड़ी, उसकी सुंदरता देखकर अनुराग की नज़र वहीं स्थिर हो गई। कितनी सुंदर लग रही है अनन्या, यह सोचते ही अनुराग को अनन्या की आंखों में आंसू दिखाई दिए। इतनी ख़ुशी के मौके पर आंसू देख कर अनुराग को आश्चर्य हो रहा था। परंतु उसने सोचा शायद परिवार से बिछड़ने का दुख ही इसका कारण होगा। अनन्या की आंखें तो कुछ भी छुपा नहीं पा रही थीं। लेकिन उसकी जीभ और उसका दिलो-दिमाग़ सब कुछ छुपाने के लिए मजबूर था।
दरअसल सच बात तो यह थी कि अनन्या यह शादी करना ही नहीं चाहती थी। परंतु माता-पिता की ज़िद ने उसे मजबूर कर दिया था। अनन्या जिस लड़के से प्यार करती थी, उसी से शादी भी करना चाहती थी। लेकिन उसकी माँ संगीता और पापा योगेश के इंकार को वह इकरार में नहीं बदल पाई। उसे उन दोनों के आगे झुकना ही पड़ा। अनन्या उनकी लाडली इकलौती बेटी थी, जिसकी हर ख़्वाहिश बचपन से अब तक पूरी होती चली आई थी। लेकिन उसके जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण निर्णय पर उसे माता-पिता का साथ नहीं मिला। अनन्या भी अपने माँ और पापा से बहुत प्यार करती थी। वह उनकी सारी बातें भी मानती थी। यह पहला मौका था जब उनके परिवार में ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई थी।
योगेश को अनन्या का प्रेमी वीर बिल्कुल पसंद नहीं था। इसलिए नहीं कि वह देखने में अनन्या के आगे कुछ भी नहीं था, बल्कि इसलिए कि उसके बारे में उन्हें जो कुछ भी सुनने को मिला था, वह उन्हें पसंद नहीं था। वीर से अपनी बेटी की प्रेम लीला का पता चलने के बाद से ही योगेश ने वीर के ऊपर नज़र रखना शुरू कर दिया था। उन्हें उसका आचरण ठीक नहीं लगा था। उसका आती-जाती लड़कियों को देखकर उन्हें छेड़ना और रास्ते में दोस्तों के साथ खड़े होकर सिगरेट पीना। इन्हीं सब कारणों से योगेश ने काफ़ी कड़क रुख अपना कर अनन्या को रोका था। इसीलिए आज शादी के दिन अनन्या चाह कर भी अपनी आंखों को नियंत्रित नहीं कर पा रही थी। उसके दिल में तूफान उठ रहा था। उसे लग रहा था कर दे इंकार, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है, चली जा अपने वीर के पास और सुख को चुन कर अपना जीवन संवार ले।
अनन्या जैसे ही वीर के पास जाने का सोचती, उसे अपने मम्मी-पापा का चेहरा आंखों के सामने दिखाई देने लगता। हर वह क्षण याद आने लगता जब उसकी हर ज़िद पूरी होती, उस पर हर पल प्यार की बारिश होती थी। लेकिन जो ज़िद पूरी होनी चाहिए थी, वही अधूरी छूटी जा रही थी।
धीरे-धीरे कदमों को बढ़ाते हुए वह मंडप तक पहुँच गई। अनुराग के बाजू में बैठते हुए भी उसे पीड़ा हो रही थी। जहाँ वीर होना चाहिए था, वहाँ यह कौन आकर बैठ गया। लेकिन इस सब से अंजान पंडित तो लगातार मंत्र उच्चारण करने में व्यस्त था। उसे तो शादी पूर्ण करवानी थी।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः