दुनिया भर में जब हिटलर के अत्याचारों के कारण यहूदियों पर भीषण संकट आया, तब लगभग हर देश ने उनका साथ छोड़ दिया था। यूरोप में यहूदियों के खिलाफ नफरत, हिंसा और नरसंहार ने उनकी पूरी जाति को खत्म होने की कगार पर ला दिया था। इसी समय यहूदियों ने एक ऐसे देश की कल्पना की जहाँ वे सुरक्षित रह सकें, अपनी संस्कृति और पहचान को बचा सकें। यही सपना आगे चलकर इज़रायल के जन्म का कारण बना। लेकिन एक नया देश बन जाना ही सारी समस्याओं का अंत नहीं था। इज़रायल को जन्म लेते ही ऐसे हालातों का सामना करना पड़ा कि वह तुरंत युद्ध के कगार पर पहुँच गया। यहूदी लोग जो यूरोप में हिटलर का आतंक झेलकर आए थे, उन्हें यह समझ ही नहीं आ रहा था कि अब भी उनकी जिंदगी पर खतरा क्यों बना हुआ है। मगर हकीकत यह थी कि इज़रायल के अस्तित्व को स्वीकार करने के लिए उसके पड़ोसी देश तैयार नहीं थे। इसलिए नए बने राष्ट्र को अपनी जमीन, अपने लोग और अपने भविष्य को बचाने के लिए शुरुआत से ही संघर्ष का रास्ता चुनना पड़ा।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद लाखों यहूदी विस्थापित हो गए थे। उनके पास घर नहीं थे, परिवार टूट चुके थे और उन्हें कहीं शरण नहीं मिल रही थी। संयुक्त राष्ट्र ने यहूदियों के लिए एक अलग देश के प्रस्ताव पर मतदान कराया और 1947 में एक योजना बनी कि फिलिस्तीन की जमीन के दो हिस्से होंगे, एक यहूदियों के लिए और एक अरबों के लिए। यहूदियों ने इस योजना को स्वीकार किया क्योंकि उन्हें आखिरकार अपना देश मिल रहा था। लेकिन अरब देशों ने इसे नकार दिया और कहा कि यह जमीन पहले से अरबों की है, इसलिए यहूदियों के लिए कोई नया देश बनाना स्वीकार्य नहीं है। यह असहमति आगे चलकर युद्ध और शत्रुता की नींव बनी। 1948 में इज़रायल ने अपने स्वतंत्र देश की घोषणा की, लेकिन यह घोषणा होते ही पाँच पड़ोसी अरब देशों, मिस्र, जॉर्डन, सीरिया, लेबनान और इराक ने इज़रायल पर हमला कर दिया। यह किसी नवजात देश के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी। इज़रायल के पास न तो बड़ी सेना थी, न हथियार, और न ही सैन्य अनुभव। लेकिन यहूदियों के अंदर एक ही भावना थी, अब पीछे हटने का कोई रास्ता नहीं है। वे अपनी जमीन को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहते थे। इसलिए उन्होंने सीमित संसाधनों के बावजूद इस युद्ध का मुकाबला किया और अंततः अपनी धरती बचाई।
यह पहला युद्ध सिर्फ शुरुआत थी। आने वाले वर्षों में इज़रायल को कई बड़े युद्धों का सामना करना पड़ा। 1956, 1967 और 1973 के युद्धों ने देश को पूरी तरह हिला दिया। हर बार इज़रायल पर चारों ओर से कई अरब देश एक साथ हमला करते थे। लेकिन हर बार इज़रायल इस लड़ाई में न सिर्फ खुद को बचाने में सफल रहा, बल्कि उसने अपने सैन्य कौशल और रणनीति से पूरी दुनिया को चकित कर दिया। खासकर 1967 का छह-दिवसीय युद्ध तो दुनिया के सैन्य इतिहास में एक मिसाल बन गया। इस युद्ध में इज़रायल ने बहुत कम समय में अपने विरोधी देशों की एयरफोर्स को नष्ट कर दिया और यह दिखा दिया कि युद्ध सिर्फ संख्या से नहीं, बल्कि बुद्धि, तकनीक और रणनीति से जीते जाते हैं। 1973 के यौम किप्पुर युद्ध में भी इज़रायल पर अचानक हमला हुआ था। लेकिन देश की मजबूत सैन्य तैयारी और जुझारूपन के कारण वह एक बार फिर विजयी रहा।
इज़रायल की सबसे बड़ी ताकत उसका लोगों पर विश्वास, तकनीकी कौशल और ऊँचा मनोबल है। यह देश छोटा है, लेकिन यहाँ हर नागरिक को सैन्य प्रशिक्षण दिया जाता है। पुरुष हों या महिलाएँ, हर किसी को सेना में सेवा देना अनिवार्य है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि देश पर कोई भी खतरा आए, तो पूरा समाज एकजुट होकर उसका सामना कर सके। इज़रायल की खुफिया एजेंसी “मोसाद” दुनिया की सबसे ताकतवर एजेंसियों में मानी जाती है। चाहे जासूसी हो, आतंकवाद विरोधी अभियान हों, या दुश्मन देशों की गतिविधियों पर नजर रखना मोसाद अपने काम में बेहद माहिर है। कई बार मोसाद ने ऐसे ऑपरेशन किए हैं जिनकी कहानी आज भी दुनिया के देशों के लिए सीख बन चुकी है।
इज़रायल ने अपनी सुरक्षा व्यवस्था को इतना मजबूत बनाया है कि उसका “आयरन डोम” सिस्टम आज दुनिया में मिसाइल सुरक्षा का सबसे सफल मॉडल माना जाता है। यह सिस्टम आने वाली मिसाइलों को हवा में ही नष्ट कर देता है और नागरिकों की जान बचाता है। इसके अलावा इज़रायल ड्रोन टेक्नोलॉजी, साइबर सुरक्षा, आधुनिक हथियार निर्माण और खुफिया तकनीक में दुनिया से बहुत आगे है। इन सबका कारण सिर्फ यह नहीं कि देश युद्ध झेलता है, बल्कि इसलिए भी कि उसने हर संकट को अवसर में बदलना सीखा है।
इज़रायल ने सिर्फ सैन्य क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि कृषि, जल संरक्षण, शिक्षा और शोध के क्षेत्र में भी जबरदस्त प्रगति की। रेगिस्तान के बीच बसा यह देश आज आधुनिक सिंचाई तकनीकों का जनक है। “ड्रिप इरिगेशन” जैसी तकनीक का जन्म इज़रायल में हुआ और आज दुनिया भर में इसका उपयोग किया जाता है। पानी की कमी से जूझने वाले इस देश ने समुद्र के पानी को मीठा बनाने की तकनीक विकसित की और अपनी जरूरतें पूरी कीं। टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भी इज़रायल दुनिया का “स्टार्टअप नेशन” कहलाता है, क्योंकि यहाँ हजारों स्टार्टअप्स और इनोवेशन के केंद्र स्थापित हो चुके हैं। यह सब दिखाता है कि एक छोटा सा देश, जो कभी अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहा था, वह आज दुनिया में सबसे आगे कैसे पहुंच गया।
हिटलर के अंत के बाद भी यहूदियों की लड़ाई खत्म नहीं हुई थी। उनके सामने नए दुश्मन, नए खतरे और नए युद्ध थे। लेकिन इज़रायल ने यह साबित कर दिया कि कोई भी देश अपनी इच्छाशक्ति, मेहनत और एकता से दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति बन सकता है। आज इज़रायल एक आधुनिक, सशक्त और सुरक्षित देश है, जो दुनिया के सबसे विकसित राष्ट्रों में शामिल है। उसकी कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर किसी देश के नागरिक मजबूत हों, शिक्षित हों और संकटों से लड़ने का हौसला रखते हों, तो कोई उसे रोक नहीं सकता।